Tuesday, May 26, 2020

प्रकरण क्रमांक:- ( ३३) "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"

                "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



              "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                    प्रकरण क्रमांक (३३)

 "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"


प्रकरण क्रमांक:- (३३) "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"


       त्यागी बाबा जुमदेवजी के आदेशानुसार फंड अनुदान जमा किया गया। यह कार्य लगातार नौ वर्ष तक चलता रहा। इस समय सेवकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी। बूंद-बूंद से तालाब भरता है" इस कहावत के नुसार १९६६ से १९७५ इन नौ साल में उनतालीस हजार रुपये फंड अनुदान में जमा हुआ था। वह संपूर्ण राशि बैंक में  जमा ही रही थी। इस राशिपर उन्नीस हजार रुपये व्याज मिला था। इस प्रकार अठ्ठावन हजार रूपये जमा हुये थे।

           जनवरी १९७५ में बाबा जुमदेवजी की प्रमुख उपस्थिती में परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर के कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी गई थी। उसमे इस जमा हुए पैसे का कैसा उपयोग करना चाहिए। इस विषय पर चर्चा हुई तब अधिकतर कार्यकर्ताओं की ओर से ऐसा विचार व्यक्त किया गया की, इस राशि से क्रेडीट सोसायटी निर्माण
करनी-चाहिए, जिससे गरीब सेवकों को इसका लाभ मिलेगा। बाबांने सब के विचार शांतीपूर्वक सुन लिये। तत्पश्चात बाबाने अपने मार्गदर्शन में बताया की, "हमे खजिना तैयार करना है।" तब सेवकोंने बाबासे सर्विनय पुछा की, बाबा सहकारी बैंक स्थापना करना है क्या? तब बाबांने हाँ कहा और बैंक स्थापन करने के लिये लगनेवाली पूँजी ५० हजार रुपये चाहिये यह भी बताया। यह पचास हजार से अधिक पूँजी जमा होने पर कुछ कार्यकर्ताओं को बाबांने आदेश दिया की उपविधी (बायलॉज) की किताब लेकर बैंक का प्रपोजल तैयार करे। तदूनुसार उन कार्यकर्ताओंने बैंक का प्रपोजल १५ दिन में तैयार किया। जमा किये गये रुपयों को शेअर्स में अंतरित किए। इस प्रपोजल की प्रवर्तक कमेटी बनाकर श्री. महादेवरावजी कुंभारे इनको प्रमुख मनोनीत किया गया। वह प्रपोजल अतिशिघ्र सहकारी अधिनियम के अनुसार नागरिक सहकारी बैंक पंजीकृत करने के लिये सहकार विभाग की ओर आवश्यक संपूर्ण जानकारी के साथ प्रस्तुत किया गया, उस वर्ष तक अर्बन बैंक की पचास हजार पूँजी पर पंजीयन होता था।

         पंद्रह दिन बाद यह प्रपोजल सहकार विभाग से वापस आया उसकी सपूर्ण जॉँच पड़ताल करने से पता चला की बैक पंजीयन के लिये ५० हजार के स्थानपर १ लाख पूँजी  चाहिये। इसलिये १ लाख पूँजी होने पर प्रपोजल भेजे ऐसा फाईल पर लिखा था। क्योंकी उसी समय सहकार विभाग के नियमों में बदलाव हुआ था।

          महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके समक्ष प्रश्न निर्माण हुआ की नौ साल में ३९ हजार रुपये जमा हुए तो एक लाख रुपये जमा होने में कितना समय लगेगा? इसलिये फिरसे कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी गई और वहाँ विचार विमर्श शुरु हुआ। बाबांने कार्यकर्ताओं को योग्य मार्गदर्शन किया और बताया की, यदी कार्यकर्ता बाबाको साथ देते होंगे तो नागपूर के हरएक गट में सेवकों की बैठक लेकर मार्गदर्शन करेंगऔर इस तरह बाबा के साथ जो कार्यकर्ता घुमने के लिए तैयार है, उन्होने अपना नाम दै। इसके बावजूद अगर नागपूर में उतनी पूँजी जमा नहीं हुई तो बाहर गांव के सेवकों से जमा की जाएगी ऐसा भी तय हुआ। इस समय इस मागे के सात सौ (७००) सेवक थे।

           निश्चित किये अनुसार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी और ९० से १०० सेवक मंडली हरदिन सुबह आठ बजे निकलकर रात बारा बजे तक नागपूर के सेवकों के यहां घर-घर जाकर उन्हें कठिनाई बताकर उनसे पैसा जमा करने लगे। इस समय इस मार्ग में  अधिकतर गरीब लोग सेवक थे। उन्होने बाबां के आदेशो का पालन कर ज्यादा से ज्यादा सहायता की। नागपूर के सेवकों की ओर से जमा हुई राशि सहकार विभाग की सीमा पूरी  नहीं कर सकी। इसलिये बाबा और सेवक बाहरगांव में रहनेवाले सेवकों के घर गये और  सामान्यतः दो महिनों में ५० हजार पूंजी जमा की। यह पूंजी जमा करने के दौरान बाबांने  खाने-पीने की परवाह नहीं की। वे गर्मी-धूप में निरंतर घूमते थे। किसी के भी यहाँ चाय नही लेते थे। घन्य है महानत्यागी बाबा जुमदेवजी।

       पूँजी की एक लाख की सीमा पूर्ण होने पर प्रपोजल पुनः पंजीयन हेतु सहकार विभाग में प्रस्तुत किया। उस विभाग ने वह प्रपोजल मुंबई को भेजा। लेकीन उसका जवाब ६ माह होने पर भी नही आया  नागपूर में पूछताछ करने पर हमेशा टालमटोल का जवाब मिलता था। इसलिये बाबां के मन में शंका निर्माण हुई। उस समय बाबां के साले श्री सोमाजी बुरडे हमेशा काम के सिलसिले में मुंबई जाते रहते थे इसलिये बाबांने उन्हे इस प्रपोजल की पूछताछ करने को बताया। तदनुसार उन्होने पत्र क्रमांक और तारीख नोट की और नागपूर आनेपर उन्होने वह जानकारी बाबा को दी। बाबा स्वयं इस प्रपोजल के प्रमुख प्रवर्तक श्री. महादेवरावजी कुंभारे इनके निवासस्थान पर गये और उन्हें वह जानकारी देकर नागपूर के सहकार विभाग में पूछताछ के लिये भेजा।

      बाबा का आदेश लेकर श्री. महादेवरावजी कुंभारे सहकार विभाग, नागपूर में तुरंत उसी दिन पूछताछ करने के लिये गये लेकीन इस भ्रष्टाचार के जमाने में नौकरशाही किसी की सुनेंगे तो ना? वह दिन पूछताछ करने में गया। इस भ्रष्टाचार के समय में नौकरशाही किसी की सुनेंगे वह दिन अच्छा समझना चाहिए। सभी नियम उनके हाथ में होते है। लोगो नें उन्हें सलाम करना ही चाहिए। पूछताछ के पश्चात श्री. कुंभारे जी ने बहुत बिनती की की, आप जाँच कर देखो। शायद आया है ऐसा लगता है। यदि किसी ने सुन लिया तो वह नौकरशाही (लालफिताशाही) कैसी ? उलटे वे कुंभारेजी पर क्रोधीत हुए। ऑफिस में काम हम करते है या आप? फाइल न ढूंढते ही उन्होने कहा की, आपके प्रपोजल की स्विकृती आयी नही। एक माह का समय लगेगा. आप जाईये, हम आपको सुचित करेंगे। यह सुनकर श्री. कुंभारेजी को बहुत बुरा लगा। कुंभारे जी के पास प्रपोजल स्विकृत होने की जानकारी रहने से उन्होने उनको बताने के बावज़ुद वे सुनने को तैयार  नही थे। इससे लालफिताशाही कितनी सख्त होती है यह सिध्द होता है। महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने श्री. कुंभारेजी को बताये अनुसार उनकी शिकायत "जाँईंट रजिस्टार" को की और सभी सत्य परिस्थितीयों से अवगत कराया गया। उन्होने शांततापुर्वक सुन लिया सहकार विभाग को फोन करके उन्होने संपूर्ण  प्रपोजन अपने पास मँगवाया। उनके पास संपूर्ण रिकॉर्ड के साथ फाईल गई। उन्होंने स्वयं वह केस देखी और तुरन्त चार दिन बाद प्रवर्तक को उनके विभागीय सह निबंधक
(असि. रजिस्ट्र), सहकारी संस्था इनकी ओर से उनके पत्र क्र. एन.जी.पी./बी.एम.के./२३८/७५ अनुसार दि.१९/०९/१९७५ को संस्था रजिस्टर्ड (पंजीकृत) होने बाबत सूचित किया लालफिताशाही वरिष्ठ अधिकारी पूरी  तरह ध्यान नहीं दे पाते, इसलिये लोगो ने हमेशा सजग रहना चाहिए, यह इससे स्पष्ट होता है। उपरोक्त पत्रानुसार "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, नागपूर" कार्यक्षेत्र संपूर्ण नागपूर जिला निर्धारित कर पंजीकृत की गई।

         बैंक का नियमानुसार पंजीकरण होने के बाद बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने के  लिए रिजर्व बैंक के पास अनुमती के लिये आवेदन प्रस्तुत किया गया। लेकीन इस समय भी कठीनाई आयी। इसी दरम्यान रिझव््ह बैंक के नियम बदले थे इसलिये नये बदले हुए मियमानुसार तीन लाख रुपये पुँजी जमा हुए बिना बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने की अनुमती नही दी जा सकती, ऐसा सुचित किया गया। यह जानने पर बाबा के समक्ष पुन: प्रश्न उपस्थित हुआ की एक लाख रुपये जमा करने में बहुत कष्ट उठाना पड़ा तो तीन लाख रुपये जमा करने के लिये कितना समय लगेगा और कैसे जमा होंगे? क्योंकी इस मार्ग के सेवक गरीब और परिस्थिती से पिछडे थे दूसरी बात राशि केवल सेवकों से ही लेना यह बाबां का निश्चय था उस समय केवल ७०० सेवक थे। फिर से बाबांने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर उन्हें संपूर्ण परिस्थिती बाबत मार्गदर्शन किया और नागपूर में प्रत्येक गट में बैठक लेने का निश्चय किया।

          पहली बैठक बिनाकी मंगलवारी, नागपूर यहाँ हुई। इस बैठक में प्रवर्तक कमिटी के अलावा बाबा की प्रमुख उपस्थिती थी। इस बैठक में उस गट के सेवकों के अलावा अन्य गट के सेवक भी उपस्थित थे। प्रमुख कार्यकर्ताओंने बैठक के आयोजन के बारे में बता कर बैंक की निर्मिती के लिये आनेवाली दिक्कतों के विषय में विचार सेवकों के समक्ष रखे । तब कुछ सेवकों ने अपने विचार रखे की हम गरीब आर्थिक स्थिती से पिछड़े सेवक दो लाख रुपये कैसे जमा करेंगे? यह तो संभत नही होगा। तथापि बाबा हमें योग्य मार्गदर्शन रें। ऐसी सेवकों ने बिनती की।

         सेवकों की इच्छानुसार बाबांने मार्गदर्शन किया उन्होने कहा, बाबा जिसके लिये यहाँ उपस्थित हुए है इस बारे में प्रमुख कार्यकर्ताओंने जानकारी दी है, और अपने जो विचार रखे वह वाजीव (योग्य) और सत्य है। इसमें दोमत नही लेकीन आज की। आवश्यकता की पुर्ती के लिये थोडा कष्ट करना पडेगा। थोडा कष्ट सहन करना होगा। तभी भगवंत तुम्हारी गरज(आवश्यकता) पुरी करेगा लेकीन सेवक इन्कार ना करें। इस तरह से बाबांके मौलीक (अनमोल) मार्गदर्शन होने पर बैठक संपन्न हुई। दुसरी बैठक बुधवारी में श्री. हरिभाऊ भनारकर इनके यहाँ हुई। वहाँ भी बैंक निर्मिती के लिये आयी समस्या बताई गयी। उस पर सेवकों ने अपने-अपने विचार रखे । और गरीब परिस्थिती में पैसा कहा से लायेंगे यह प्रश्न उपस्थित किया। उस समय ऐसे  लग रहा था की, बैंक निर्माण करने के लिये किये गये सारे प्रयत्न और श्रम सेवकों की  समस्या रहने से बेकार जाते हैं क्या ? ऐसा कार्यकर्ताओं को लगने लगा। लेकीन भगवंत  की कृपा महान है। सेवकोंने बाबा को मार्गदर्शन करने की बिनती की। बाबांने सबके विचार सुने थे। सेवकों ने बाबा को मार्गदर्शन करने की बिनती की। बाबा निराकार में आयें और सभी सेवकों कों संबोधित करते गुससे से  बोले "बैठक बंद करो। बाबा किसी की नहीं सुनेगे। जब तक २ लाख रुपया जमा नहीं। होता तब तक बाबा किसी सेवक के घर में पानी तक नहीं पियेगे, यह बाबा का प्रण है"।
यह सुनते ही सभी सेवक चकीत और दुखी हुए तत्पश्यात बाबा पुनः सेवकों के यहाँ पेसा जमा करने के लिये कुछ सोवकों के साथ गाँव-गाँव, गर्मी-धुप में पैदल, बैलगाडी से धुमे लेकीन किसी के यहाँ पानी तक नही पीते थे। इस तरह बाबांने त्याग से, ओर सेवकों ने किये प्रयास से दो लाख रुपए केवल दो माह में जमा किये और यह संपूर्ण राशि ( रक्कम)  गरीब सेवकों की ओर से ही जमा की गई। सेवकों के अलावा किसी और लोगों से यह  राशि वसुल नही की गई। इन सेवक-सेविकाओं ने बहुत मेहनत-मजदूरी कर के कुछ सेविकाओं ने तो स्वयं के आभुषण बेचकर बाबा के आदेशों का पालन किया और उन्होंने किये त्याग फलस्वरूप यह कार्य भगवतने अल्प समय में पूरा किया।"भगवान के पास देर हैं। अंधेर नहीं" इस कहावत नुसार इन गरीब लोगों ने जो कष्ट झेला है उसकी पूर्णतः पूर्ती भगवंतने उन्हें शीघ्र ही कर दी।

         तीन लाख रुपये पूँजी पुरी होने पर रिझव्ह बैंक को सुचित किया गया और दि. ३० अगस्त १९७६ को रिझर्व्ह बैंक से नियमानुसार बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने का परवाना (अनुमती) प्राप्त हुआ। दिनांक ४ दिसंबर १९७६ को गोलीबार चौक यहं बैंक का कार्यालय प्रारंभ किया गया। उस समय के महाराष्ट्र राज्य महाराष्ट्र राज्य के सहकार मंत्री श्री. रामकृष्णाजी बेत इनकी अध्यक्षता में और श्री. व्ही. एम. जोगलेकर, रिटायई डायरेक्टर, महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक म.मुंबई इनकी प्रमुख उपस्थिती में बैंक के संस्थापक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी उनके हाथो बैंक का उद्घाटन शुभारंभ किया गया।

          इस तरह दरिद्री रेखा के नीचे जीवन जीने वाले मानवों की एक बैंक निर्माण हुई और एक-एक बुँद से बैंक रूपी तालाब बाबांने भर दिया है ऐसा कहना अतिष्योक्ती नहीं होगी। यह बैंक निर्माण करते समय गोलीबार चौक जैसे पिछड़े हुए क्षेत्र में यह बैंक कसी निर्माण होगी इस बारें में वहाँ के अन्य लोगों के मन में कुशंकाओं का बीज बोया गया था। क्योंकी व्यवसाय अमीर लोगों के हाथ में थे और दुनिया में सहकारी तत्वोंपर जो बैंक निर्माण हुई उनमें सब अमीर लोग भरे हैं ऐसी परिस्थिती में इस पर लोगों का विश्वास नहीं बैठता था। लेकीन बाबा जुमदेवजी का मार्गदर्शन और किया गया त्याग, कार्यकर्ताओं की जिज्ञासा, सेवकों ने दिया हुवा सहयोग और परमेश्वरी कृपा इससे यह महान कार्य हुआ। इरमें कोई शंका नही है।

          तत्पश्चात इस बैंक की स्वयं की वास्तु रहनी चाहिए। शहर के पिछड़ा वर्ग क्षेत्र में लोगों का विश्वास कायम हों और लोगों का बैंकीग व्यवसाय में सहकार्य मिले इस दृष्टि से  यहाँ के कार्यकर्ताओं ने विशेषतः बैंक के कार्यकारी मंडलने निष्काम भावना से सेवा की। बैंक के शेअर घारकों ने बँक को होनेवाले मुनाफे से आवश्यक वह प्रोबिजन करने पर। बाकी मुनाफा इमारत निरधी में अंतरित करने का निश्चय किया और जब तक बँंक की वास्तु तैयार नहीं होती तब तक लाभांश नही लेना ऐसा संकल्प शेअरधारकों ने किया। इस संकल्प के कारण ही अल्प समय में ही इस बैंक की स्वयं की वारतु तैयार हुई और २५ मार्च १९८४ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के हाथों उसका उद्घाटन हुआ। जिस समय यह वास्तु निर्माण हुई उस समय सहकारी क्षेत्र में शुरु रहनेवाली नागपूर की आठ बैंको में स्वयं की वास्तु रखने वाली यह एकमात्र बैंक बनी।

           महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने दिये हुए प्रेरणानुसार बँक के पदाधिकारी तथा कर्मचारी निष्काम सेवा से बँधे हुए है। बैंक का कोई भी पदाधिकारी सेवाबाबत किसी प्रकार का मानधन नही लेते। बैंक के संचालक मंडल की सभा में भी स्वयं के चाय-पान का खर्थ स्यं करते हैं। इतना ही नही जिस बाबांने इतनी बडी बैंक निर्माण की, मार्गदर्शन किया, स्वयं कष्ट किया, स्वयं शारिरीक कष्ट उठाया, वह महानत्यागी बाबा जुमदेवजी यहाँ के संस्थापक होकर भी यहाँ के पैसो पर जीना अथवा स्वयं के लिये कुछ पेसा खर्च करना, यह तो छोडिये, बैंक में गये तो वह बैंक के पैसे से चाय तक नही लेते है धन्य वह महानत्यागी बाबा जो हम सेवकों को मिले और इस देश में ही नही तो संपूर्ण दुनिया में तारीफ करने लायक, निष्काम भावना से कार्य करनेवाले, दारिद्री रेखा के नीचे के गरीब लोगों के उत्पन्न से निर्माण हुई, अलग थलग निराली बैंक "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक" मर्यादित नागपूर यह है।

      इस बैंक के भरोसे पर ही महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने रामटेक तालुका के सालईमेटा और भंडारा जिला के धोप इस गांव में दूध उत्पादक संस्था और बुधवारी  नागपूर में ग्राहक भांडार की स्थापना की है। और सामाजिक परिवर्तन लाया है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


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