"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (३२)
"फंड अनुदान"
प्रकरण क्रमांक:- (३२) "फंड अनुदान"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके मार्गदर्शन से इस मार्ग के सेवकों को परमेश्वरी कृपा का लाभ मिला है। इसी कारण उन्हें शारिरीक और मानसिक समाधान मिला। तथापि, भगवत्कृपा उनके साथ खड़ी रही। बाबां के यहाँ आनेवाले बहुत से सेवक विशेषतः अधिक संख्या में आर्थिक दृरष्टी से पिछडे वर्ग के गरीब, मेहनत, मजदुरी करनेवाले, खेतमजदुर, बुनकर इत्यादी बहुजन समाज के लोग है। वे सेवक दुखो के जलजले मे धुसने के कारण उनकी आर्थिक परिस्थिती अत्यंत कमजोर थी।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवासस्थान पर हर शनिवार को सायंकाल में निराकार बैठक होती थी। सन १९६६ की बात है। ऐसे ही एक शनिवार को निराकार बैठक के दौरान सेवकों की आर्थिक परिस्थिती सुदृढ हो और आर्थिक स्थिरता मिले इसलिये सेवकोंने बाबां को इस बाबत मार्गदर्शन करने की बिनती की।
एक बार बाबा निराकार स्थिती में विदेह अवस्था में रहने पर उनके मुखकमल से शब्द बाहर निकले की, इस मार्ग में आये हुए सेवक बुध्दीहीन श्रमिक, गरीब और मेहनतकश है। इस कलियुग में असत्य व्यवहार के कारण उनको उनके परिश्रम का लाभ उनके जीवन में नही मिलता। बाबा ने आगे कहा-इस मार्ग में आये हुए सेवकों पर नियम के रूप में सभी प्रकार के 'बंधन लगाये' और बुरे मार्ग से जाने वाला पैसा बचाए। इसी कारण उनके जीवन में प्रगती हुई, उनकी बुरी भावनाएँ समाप्त हुई, इसलिये उनकी आर्थिक परिस्थिती में उत्तरोत्तर प्रगती होनी चाहिए। इसलिये उन्होने सत्य निर्माण करने के लिये और मानव जीवन का स्तर उपर लाने के लिये फंड अनुदान देने का सेवकों
को आदेश दिया।
इसके बाद में अगली बैठक इस मार्ग के वरिष्ठ सेवक श्री बाजीरावजी माटे इनके निवासस्थान पर हुई। उस बैठक में सेवक और जबाबदार कार्यकर्ता उपस्थित थे। इस बैठक में बाबां के आदेशानुसार एक सेवकने सभी सेवकों को बताया की, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनका ऐसा उद्देश है की, इस मार्ग में दीन दुःखी, गरीब सेवक हैं वे आशिक्षित है। इसलिये वे साहूकार से पैसे व्याज पर लेते हैं। परिश्रम से कमाया हुआ समस्त पैसा व्याज के रूप में साहूकार के पास जाता है, यह अच्छा नहीं। साहुकार के फाँसे से मुक्त होने के लिये, मानव मंदिर सजाने के लिये, सत्य काम निर्माण करने के लिए फंड अनुदान जमा करना आवश्यक है। इसके लिये अपने-अपने विचार रखे की फंड अनुदान किस तरह जमा किया जाये। जिससे वह इन गरीब सेवकों के उपयोग में आएगा।
इस पर कुछ सेवकों नें अपने-अपने विचार निम्नानुसार प्रदर्शित किये। कुछ सेवकोंने कहा की बाबांने सेवकों का पैसा बचाया है। इसलिए दस रुपये महिना फंड अनुदान जमा करें। इससे मानवी जीवन साध्य होगा। कुछ लोगों ने कहा की, हम दस रूपये क्या पांच रूपये महिना भी जमा नही कर सकते। इसपर जबाबदार सेवकोंने कहा की, चार आणा, आठ आणा, एक रुपया इस तरह महिने के अंत तक जमा करें कन लोगोंने यही राशी प्रत्येक सप्ताहू को जमा करना चाहिये ऐसे विचार रखें। सबसे अंत में बाबांने इस पर मार्गदर्शन किया की सेवकोंने अपनी परिस्थिती अनुसार और सामर्थ्य अनुसार जमा करना होगा और मार्ग लेनेवाले नये सेवकों को फंड अनुदान जमा करना होगा। हर सप्ताह में होनेवाली चर्चा बैठक में सेवकोंने उपस्थित रहना चाहिये। ध्येय घोरण से चले ऐसा आदेश दिया। तदनुसार सभी सेवक बाबांके आदेश का पालन कर पाच रुपये महिना अथवा सवा रुपया हप्ता इस प्रकार सेवक फंड अनुदान में राशि जमा करने लगे। इस कार्य के लिये श्री. रामाजी मौंदेंकर और श्री. मोतीराम हरडे इन्हे राशि(पैसा) जमा करने के लिये नियुक्त किया गया।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर
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