Sunday, May 17, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (१६) "पांच नियम"

             "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर



             "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                 प्रकरण क्रमांक (१६)

                    "पांच नियम"


प्रकरण क्रमांक:- (१६) "पांच नियम"


     महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने "मानव धर्म"" मार्ग के सेवकों को भगवत प्राप्ती के लिये तथा निष्काम कर्मयोग साधने के लिये चार तत्व, तीन शब्द व्यवहार में लाने हेतु । कहा है। सेवकों ने उसे व्यवहार में लाने पर, शुरुवात में उन्हें इस भगवत कृपा का पुरा लाभ मिला। लेकीन कुछ समय बाद कुछ सेवकों के परिवार में पुनः दुःख निर्माण होने लगे। उनकी संपर्ण भावनाएँ खत्म नही हुई थी। इसलिये वे भावनाओं के शिकार होते थे। उनके मन में शंका-कुशंकाएँ आती थी। इस मार्ग में आने वाले सेवकों की संख्या दिन-ब-दिन बढने लगी। नया धर्म होने के कारण उनकी एकता एवं संघटना होना जरुरी था।
   

     बाबांके निवास स्थान पर शनिचर को होने वाली निराकार बैंठक में बाबा विदेह अवस्था में आने पर उनके मुखकमल से ऐसे उद्गार निकले की, इस मार्ग पर आनेवाले सेवक बुध्दीहीन एवं श्रमिक है। उन्हें उनके जीवन में चलने के लिये उनकी गृहस्थी उच्च स्तर पर लाने के लिये, मानव जीवन के अनेक उद्देश सफल बनाने के लिये, बाबांने विदेहावस्था की स्थिती में उन्हें व्यवहार में लाने के लिये निम्नानुसार पांच नियम बताये है।


৭) ध्येय से एक भगवंत मानना।
२) सत्य, मर्यादा, प्रेम सेवकों और परिवार में स्थापित करना।
३) अनेक बुरे व्यसन बंद करना।
     (शराब, टॉनिक, सट्टा, जुव्वा, लॉटरी, मुर्गे की कत्ती, पटकी होड, चोरी करना, झूठ बोलना, क्रोध करना बंद करना, महिलाओंने अपने बच्चों एवं पतिदेव को बुरे शब्दों में ना बोले। इसके अलावा मानवी जीवन को निचा करनेवाले कोई भी बूरे व्यसन बंद करना।)
४) परिवार और सेवको में एकता कायम करना।
५) मानव मंदिर सजाने के लिये दान देना
(अपना परिवार मर्यादित रखना)
        इसके अलावा बाबा के आदेशों का समय-समय पर पालन करना।

   

     उपरोक्त नियमों का मानव ने पालन करने पर उसे जीवन में सुख, शांती एवं समाधान प्राप्त होता है, और उसका ध्यान केवल एक भगवंत की और रहता है। उनके मन में अन्य भावनाएँ निर्माण नही होती, बुरी भावनाएँ खत्म होती है। अंधश्रध्दा खत्म होती है। शंका कुशंकाओ का नाश होता है। अनेक बुरे मार्ग से जानेवाला धन बचता है। और उनके जीवन की दिनोंदिन प्रगती होती है। जीवन में अनेक पुजा बंद करने से मन की एकाग्रता बढती है और यह परमेश्वरी धारा मानव में निर्माण होकर वह आत्म बोध (आत्मप्रचिती) देता है। आत्मानुभव मिलता है। जिसके कारण आत्मबल बढता है तथा भगवंत पास रहुता है। दुःख निर्माण नही होता। इससे मानव अपना भविष्य उज्वल बनाता है।

नमस्कार....!


लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।


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1 comment:

परमात्मा एक मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.

  "परमात्मा एक" मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.         !! भगवान बाबा हनुमानजी को प्रणाम !!       !! महानत्याग...