Thursday, May 7, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (६ ) "एक भगवत की प्राप्ति का मार्ग"


                "मानवधर्म परिचय"

"मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर

                         
     

                  प्रकरण क्रमांक (६)

        "एक भगवत की प्राप्ति का मार्ग"


प्रकरण क्रमांक:- (६ ) "एक भगवत की प्राप्ति का मार्ग"


       बाबानें‌ भगवान बाबा हनुमानजी की प्राप्ति करने पर भी उनके परिवार के लोग हिन्दू धर्म के सभी देवों को उदा. राम, कृष्ण, शंकर-पार्वती, देवी इ. मानते थे। उनकी पूजा - अर्चना करते थे। जिससे उनके परिवार का दुःख पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था। परिवार में दुःख आने से बाबा मंत्रोच्चार से फुंक मारते थे। मंत्रोच्चार से तीर्थ करके देते और दुःख दूर करते थे। लेकिन वह थोड़े समय के लिए ही होता था।
     

      अन्य लोगों को यह मालूम होने पर वे दुखी त्रस्त लोग बाबांकी ओर आने लगे। बाबा मंत्रोच्चार से फुंक मार कर उनके दुःख दूर करने लगे। बाबा यह विधी करनेवाले होने पर भी उन्हें इसमें से कुछ भी नहीं समझता था, वे अज्ञातवास में थे। लेकिन उनके मंत्र से लोगो को भगवंत के गुण मिलते थे।
  

      एक दिन रंगारी समाज की शांताबाई नामक स्त्री अपना दुःख लेकर बाबा के पास आयी। वह कैलास टॉकीज के पीछे रहती थी। उसके शरीर में बहुत भूत आते थे। बाबा जुमदेवजी बाबा हनुमानजी का नाम लेकर हाथ में झाड़ू लेकर उसे मंत्रोच्चार से उसके सिर पर मारते थे। मगर वह मार उसे नहीं लगता था। उसके शरीर में आने वाले भूत पिशाच नहीं निकलते थे। यह पिशाच निकालने की क्रिया निरंतर ढाई ( २ १/२ ) वर्ष शुरू थी। अन्य लोगो को केवल भगवंत के गुण मिलते थे। मगर केवल उसे नहीं मिलते था। उसके शरीर में इतने जोरदार पिशाच आते थे की, इस दरम्यान स्वयं के ही गालों का मांस अपने ही हाथो के नाखूनों से खरोचती और खाती थी। इतनी बेहोश अवस्था में वह थी। उसके गालों पर बहुत बड़ा जख्म हुआ था। बाबा सोच में पड़ गए की, हनुमानजी इस कल्पनारूपी शक्ति पर मात क्यों नहीं करते। उन्होंने बयालीस दिन हवन करने का निश्चय किया। जिससे उसे आराम मिलेगा ।   निश्चयानुसार दूसरे दिन से बाबा ने अपने घर में ही सायंकाल में एक निश्चित समय पर बयालीस दिन के हवन कार्य के लिए शुरुवात की। वह १९४८ का जुलाई माह था। वह बाई रोज हवन के लिए आकर बैठती। उसे इन बयालीस दिन के हवन में रोज कुछ दिखता रहता , उसी प्रकार वह लगातार बड़बड़ करती थी।
  

       हवन कार्य शुरू रहते वह ऐसा उल्लेख करती की यह हवन झूठा है। लेकिन कृष्ण भगवान हवन में खड़े है। वे आसमान को टिके हैं। बाबा हनुमानजी पाताल में घूम रहे है। और भूतो को खोज कर अपनी पूंछ में लपेट कर दस हजार , बीस हजार, चालीस हजार, सत्तर हजार, एक लाख इतने भूत लाकर वे हवन में डाल रहे है। जैसे - जैसे हवन के बयालीस दिन पूर्ण हो रहे थे। भूतो की संख्या बढ़ती ही जाती। बाबा हनुमानजी पूछ में एक लाख , दो लाख , पचास लाख भूतों को लाकर हवन में डाल रहे है। और वे हवन में जल रहे है। अखिरिट आखिरी में तो भूतों की करोड़ों और अरबों में गिनती करनेलगी और हवन में डालने के बारे कहने लगीं। तब बाबा ने मन में इतने शैतान कहां से आये? बाबा को लगा की जितने लोग मरते है। वह सब भूत - शैतान बनते है। उन्हें मुक्ति नहीं मिलती इसलिए मुक्ति पाने के लिए परमेश्वरी कार्य करना महत्वपूर्ण है, इस प्रकार बाबा ने बयालीस दिन हवन विधी कर उस स्त्री के शरीर में आने वाले भूत- पिशाच निकाले। इस दौरान हवन की राख ( अंगारा ) से उसके गालों की जख्म पूरी भर गई। और मांस निकालने की क्रिया बंद हुई।


      "भगवान की लीला निराली" इस कहावत के अनुसार उस महिला के शरीर में पुरी तरह भूत आना बंद नही हुआ था । वह पुनः दुसरे दिन यानि त्रैयालिस वे दिन प्रातः छ: बजे बाबा के घर आयी और अपना शरीर घुमाने लगी । बाबा उसी समय प्रातः विधी से निवृत्त होकर बैठे थे । उन्होने हवन का अंगारा लिया और मंत्रोव्दारा फुक मारकर उसके शरीर में आने वाले भूत को बाहर निकाला । समाधान मिलने पर वह घर जाने के लिए निकली । लेकीन आधे रास्ते से ही वापस बाबा के यहाँ आयी पुनः शरीर घुमाने लगी । बाबाने मंत्रोच्चार से उपचार किया और शरीर घुमाना बंद किया । वह होश में आकर घर जाने लगी आधे रास्ते तक जाकर फिर वापस बाबा के यहाँ आती और शरीर घुमाती । बाबा उपचार करके उसे होश में लाते । ऐसा दिन भर शुरु था । बाबाने मंत्रोच्चार से सारा दिन उसके शरीर से भूत निकालकर उसे होश में लाने का प्रयास किया । लेकीन वे उसे पूर्णतः समाधान नहीं दे सके । 


       उस दिन बाबाने स्नान नही किया । सारा दिन खाना नही खाये और उसके शरीर से भूत नष्ट करने में ही सारा समय व्यतीत किया । जी - तोड कोशिश की । लेकीन भूत निकला नही । उसे समाधान नही मिला था । शाम तक प्रयास चालू थे। दिनभर बाबांने संघर्ष कर के वे त्रस्त हुए थे। शाम को वह पुनः आने पर बाबा विचार करने लगे की बाबा हनुमानजी की शक्ति  के सामने यह कल्पनारुपी शक्ती टिकी हुई है। इसका यही अर्थ है की, हनुमानजी, राम, शंकर, देवी इनमें इस कल्पनारूपी शक्ति को नष्ट करने का सामर्थ्य नहीं है। तब बाबा ने हनुमानजी को बिनती की, की "हे हनुमानजी, आपने सारे दैवत की पहचान कराई और इस औरत का एक शैतान नही निकाल सकते। हे हनुमानजी, आप मुझे बताओं, ऐसी कौन सी शक्ति है जो एक पलमे इसे निकालेगा। मैं इसके बाद किसी भी देवता को नहीं मानूंगा"। ऐसी बाबा ने प्रतिज्ञा की और वे उस बाई से बोले, यह आखरी फुंक है बाई। इसके बाद नहीं आना।इतना कहकर अंगारा लेकर उसके शरीर पर मंत्रोच्चार से फुंक मारी तब उसके शरीर का भू निकला तथा वह जो घर गई तो पुनः वापस नहीं आयी। इस प्रकार उसके शरीर से भूत नष्ट हुआ और उसे समाधान मिला।


     यह देखकर बाबा को आश्चर्य हुआ और उसका ध्यान उन्होंने की हुई प्रतिज्ञा की ओर गया । उन्हें लगा कि वह कौन सी शक्ति हैं जिससे उस बाई के शरीर का भूत नष्ट किया । तद्नुसार उन्होंने उस शक्ति को खोज पाने का निश्चय किया। इस प्रकार बाबा को एक भगवंत प्राप्ति का मार्ग मिला।

       लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


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🔶  ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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2 comments:

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    1. धन्यवाद जी दादा आपण सुचविल्या प्रमाणे आम्ही प्रयत्न करण्यास प्रयत्नशील आहोत. नमस्कार...!

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