"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (२०)
"ढोंगी साधू"
प्रकरण क्रमांक:- (२०) "ढोंगी साधु"
सन १९७० के जनवरी की घटना सन १९६९ मे महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के पुत्र महादेव ने विश्वेश्वरय्या रिजनल कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग नागपूर से बी.ई. की। परिक्षा प्रथम मेरीट क्रमांक से उत्तीर्ण करने पर आगे की उच्च स्तरीय पढाई हैतु विदेश जाने का प्रयास किया। तब अमेरिका के सुप्रसिध्द न्युयर्क युनियह्सिटी में मेटॅलर्जी एवं मटेरियल सायन्स इस विषय में एम.एस. की स्नातकोत्तर परिक्षा हेतु उसे दाखिला मिला। महादेव हवाई-जहाज से अमेरिका जाने वाला था। उसे बिदाई देने हेतु महादेव के साथ महानत्यागी बाबा जुमदेवजी, माँ सौ. वाराणसीबाई उनकी मौसी सौ. चंद्रभागाबाई। निखारे, मामी सौ. गयाबाई बुरडे तथा उसका मित्र विठ्ठल राऊत इतने लोग दिल्ली गये थे।
दिल्ली में विठ्ठल राऊत का बड़ा भाई रहता था। उसके यहाँ सभी लोग रुके थे। दो दिन सभीने दिल्ली दर्शनीय स्थल देखे। ताजमहल, कुतुबमिनार, जंतरमंतर, लाल किल्ला आदि स्थलों को देखा। तत्पश्चात दुसरे दिन रात्री की उड़ान से महादेव को अमेरिका जाने के लिये पालम हवाई अड्डे पर छोड़ा। बाद में सभी अपने मुकाम पर वापस आये। रात में रुक कर सभीने सोचा की, यहाँ से पास ही हरिव्दार, ऋषीकेश यह
ऐतिहासिक तीर्थक्षेत्र है। वही तीर्थक्षेत्र देखकर आना चाहिए। तदनुसार दुसरे दिन सभी लोग सुबह रेल्वे से ऋषीकेश जाने के लिये निकले। उन्होने साथ में फलाहार रखा था।
जनवरी माह होने से ऋषिकेश में बहुत ठंड थी। ऋषिकेश रेल्वे स्टेशन से ऐतिहासिक स्थल तक जाने के लिये घोडागाडी की गई। उससे पुर्व ही बाबांने सभी लोगों को स्टेशन पर ही बता दिया की, हम लोग एक ही भगवान को मानते हैं, भगवान हमारा आत्मा है इसलिये कोई भी मंदिर में नमस्कार नही करेंगा। हुम केवल मानव की बनायी कलाकृती देखेंगे। मानवी हाथों से निर्मित पत्थर की निर्जीव मुर्ती में परमेश्वर नही रहता, तो वह सजीव आत्मा में निरंतर निवास करता है तथापि वे सभी लोग ऐतिहासिक तथा दर्शनिय स्थल देखने हेतु ऋषिकेश के लिये रवाना हुए। रास्ते में उनका गुजरात से आये एक मारवाडी दंपत्ती से परिचय हुआ था। उन सभी ने समस्त स्थान देखने के बाद अंत में "लक्ष्मण झूला" देखा। बतायेनुसार किसी ने भी किसी भी मंदिर में नमस्कार नहीं किया। लक्ष्मण झुला पवित्र गंगा नदी पर स्थित है। उस पुल पर से गंगा नदी के दुसरे किनारे पर पहुँचे।
दोपहर का समय था। वहाँ सभी ने स्नान किया उसी जगह उन्हे वह मारवाडी परिवार मिला। वे पती-पत्नी थे। मारवाड़ी समाज में एक प्रथा है की, जब वे ती्थ यात्रा को जाते हैं। यदी उसका सगा भाई साथ में ना हो। तब वह स्त्री किसी अन्य पुरुष को । अपना भाई मानकर उस भाई को भेट स्वरूप कोई बस्तु प्रदान करती है। उससे उस स्त्री का उद्धार होता है ऐसी मान्यता है। तदनुसार सभी के नहाने के बाद उस स्त्री ने बाबा को अपना भाई मानकर वस्तुएं भेट की एवं प्रथानुसार उनकी पुजा की। तत्पश्चात बाबाने उन्हें परमेश्वर के प्रति मार्गदर्शन किया। तथा उसे बनाये रखने के लिये मानव ने हमेशा सत्य, मर्यादा और प्रेम से रहना चाहिये ऐसा उपदेश किया। तत्पश्यात बाबाने उन्हें फलाहार करने का आग्रह किया। लेकीन ये हिचकिचाने लगे उन्होने सोचा की यह ठीक नहीं, क्योंकी हमने उन्हें भेट दी। इसलिये वे हमें बुला रहे हैं। इस पर बाबाने पुनः मार्गदर्शन किया की, इस पृथ्वी पर किसी भी मानव ने संकुचित विचार न रखते हुए मानव ने एक दुजे का दिल जीतकर एकता निर्माण करना चाहिए। सभी मानव परमेश्दर की संतान होने से सभी समान है। मानव कर्मकर्ता है इसलिए सभी के विधार समान होने चाहिए, जो परमेश्वर को प्रिय है तत्पश्यात उन्होंने बाबां के साथ फलाहार किया एवं वहाँ से हरिद्वार जाने के लिये उस परिवार के साथ रेल्वे स्टेशनपर गये।
हरिव्दार का टिकट लेकर हरिव्दार जानेवाली गाडी में सभी लोग एक ही बोगी में बैठे। उस बोगी के एक कंपार्टमेंट में एक महात्मा ऋ्षी बैठे थे। उसी कंपार्टमेंट में बाबा उनके पास बैठे और सामने वाली सीट पर महिलाये बैठी। बाबां का और उस तपस्वी का परिचय हुआ। उसके बाद तपस्वीनें बाबां से पुछा की आप लोग कहाँ से आ रहे है और कहाँ जा रहे हैं। तब बाबांने उन्हें जवाब दिया, हम नागपूर में रहते हैं। दिल्ली से बेटे को अमेरिका जाने के लिये छोड़ा और ऋषिकेश यह ऐतिहासिक स्थल देखने आये। तब उस ऋषी ने बाबां को प्रश्न किया की, आपने भगवान का मंदिर देखा क्या? तब बाबाने जवाब दिया। आपने बहुत अच्छा प्रयश्न पुछा। मात्माजी हमने यहाँ के सभी मंदिर देखे। मानव निर्मित कला देखी लेकीन किसी भी मंदिर में नमस्कार नही किया। क्योंकी सिर्फ निजिंह मुर्तियाँ दिखी, भगवान नहीं दिखा। तब ऋषीने कहा, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था तत्पश्चात बाबांने आगे कहा की इस देश की लोकवाणी क्या है। यह में नहीं जानता। लेकीन जो लोग परमेश्वर से संबंधित होते है उन्हे ऐसा लगता है की मंदिर में प्रणाम न करने से परमेश्वर का अपमान होता है। इसलिये मैने मंदिरों में प्रणाम न करने से परमेश्वर का अपमान किया है। ऐसा आपको लगता है तो आप ब्रम्हाण्ड चढाये एवं उस परमेश्वर को बताये की, हे परमेश्वर, नागपूर से एक व्यक्ती कुछ लोगों को लेकर इस तीर्थस्थान में आया है। वह मंदिर में गया। लेकीन वहाँ उसने तुझे नमस्कार नही किया उसके बाद जब परमेश्वर मुझे पुछेगाँ तब उस प्रश्न का उत्तर मैं उसे दूँगा, लेकीन आपको नही दुँगा।
तत्पश्चात वह महात्मा बहुत सोचने लगा। अंत में वह ब्रम्हाण्ड न चढाकर बेंच (सीट) से नीचे उतरा और बाबां के कदमों के पास बैठा उसने बाबां के पैर पकडे और कहा, आप धन्य है। आपके जैसा एक भी तपस्वी मैंने अपने जीवन में नही देखा। मैं हिन्दी भाषिक ब्राम्हण होकर स्नातक (ग्रेज्युएट) हूँ और पिछले तीस वर्षों से परमेश्वर प्राप्ती के लिये पहाड़ों पर जाकर ऋषिकेश हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल तथा हिमालय में जाकर आराधना कर रहा हूँ लेकीन मुझे अभी तक परमेश्वर प्राप्ती नही हुई। तथापी आज तक मैने हरिद्वार से कन्याकुमारी तक बहुत से ऋषीमुनी और महात्मा देखें, लेकीन आपके ध्येय का एक भी तपस्वी मिला नहीं। इतिहास में कालीदास एक महात्मा ऋषीमुनी हो गये। उनकी भी यही धारणा थी। तब बाबाने कहा, तुलसीदासजी ने भी यही कहा है की।
"पत्थर पुजे भगवान मिले, तो मैं पूजू पहार" उसी तरह"ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ऐसा भी बताया। तब उस महात्मा ने बाबा से कहा, आप परमेश्यर को जानते हैं। आप मुझे भगवान कहाँ है यह दिखाये। मैं आपका दास (गुलाम)बनके रहुँगा।
उस महात्मा की जटाएँ बहुत बढी हुई थी। उन बालो का सिर के बीचोंबीच अच्छा तरह चुंबड बनाया था। पेट तक दाढी बढी हुई थी। कानों में कुंडल पहने थे। गले में रुद्राक्ष मालाएँ थी, और शरीरपर लालरंग की दुपट्टी थी। हाथ में एक छोटी-सी लकडी और दानपात्र था।
उस महात्माने बाबा से बहुत बिनती की, लेकीन बाबा यकायक नही माने। उन्होंने उसे कुछ भी नही बताया। उसने बाबांकी बहुत प्रार्थना की। वह बाबा के पाँव नही छोड़ रहा था। उसने उनके पेरो पर सिर टिका दिया, वह सिर उपर नही उठता था। लेकीन बाबा किसी को भी अपने पैर नही पडने देते, इसलिये वह पैर छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे। अंत में बाबा ने उस उठाकर कहा आपको भगवान देखना हो तो आप मेरा नागपूर का पता लिख लो। पर मेरी एक शर्त है। वह शर्त पूरी होने पर ही मैं आपको भगवान दिखाऊँगा। तब वह उठकर बाबांके करीब बैठा और आगे क्या करना चाहिए इस बाबत मार्गदर्शन करने हेतु प्रार्थना की तब बाबाने उससे कहा की, आपको पहले दाढी, जटाएँ निकालनी होगी। कफनी कुंडल को फेंकना होगा। अपना भेष बदलकर मेरे जैसा सादा जीवन स्विकारना होगा। आपने तीस साल तत्पश्चर्या कर के भी भगवान की प्राप्ती नही कर सके। यह बहुत दुःख और शर्म की बात है। क्योकी आपने इस भेष से संपूर्ण संसार को लुभाया है। आप लोगों को परमेश्वर के नाम पर अंधे हो, तो पुरी दुनिया अंधी ऐसा मैं समझाता हूँ। यह सुनकर उस तपस्वीने बाबा से कहा, इस देश में होने वाले कुंभ मेले में विभिन्न प्रकार के तपस्वी महात्मा, मुनी आते है। सभी लोग मंदिर में जाकर प्रणाम करते है। उसे भोग चढाते है लेकीन आपने ऐसा नही किया, परमेश्वर को जानते है यह सिध्द होता है। अर्थात आप परमेश्वर नहीं दिखाना चाहते। फिर भी कम से कम उसके बावत् मार्गदर्शन करें ऐसी उसने बिनती की तब बाबाने कहा, मैंने आपको पता दिया है उस पते पर आप मैंने बताये नुसार सादे भेष में आईये। मैं आपको वही मार्गदर्शन कर परमेश्वर दिखाऊँगा। यह चर्चा चालु रहते-रहते हरिव्दार आया। उसने बाबांका पता लिख लिया। लेकीन बाबांने उसे परमेश्वर के बारे में मार्गदर्शन नही किया।
इस चर्चा के दौरान बाबांने उसे एक प्रश्न पुछा था की महात्माजी इस देश में एक लोकवाणी (मान्यता) है, लेकीन मैंने प्रत्सक्ष देखा नहीं, वह यह की, तपस्वी लोगों को उनकी साधना के दरम्यान भगवान उन्हें खाने की चाली परोसते हैं, बाद में वह खाना खाते है। एवं भगवंत ही उनका सब पूरा करता है। क्योंको तपस्या करते समय वह खाना नहीं पका सकता और खाना खाए बगैर कोई जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए आप मुझे सच बताएं की अपने तपस्या के दौरान आपके भगवान ने खाने की थाली लेकर दी क्या। अन्यथा आपने खाना कैसे खाया या इतने दिन भूखे रहकर कैसे जिये, यह पहले मुझे समझाए। तब वह महात्मा एकदम अवाक रह गया, तथा उसने बाबांको नम्रतापुर्व जवाब दिया। आपने जो लोकवाणी सुनी है वह झुठी है। भगवान खाने की थाली लाकर नहीं देता। तपस्वी लोगों के दर्शनार्थ लोग हमारे आश्रम में आते है। तब हम उन्हें बार बार पांच हजार, दस हजार रूपए दो भगवान आपकी मनोकामना पूरी करेगा। ऐसा आशिर्वाद देते हैं। इस तरह तीस साल में करोडों रूपये कमाएं। बहुत सारा धन पाया। लेकीन इतने दिन तपस्या करके भी भगवान देखने नहीं मिला। उसे प्राप्त नहीं कर सका। हरिद्वार आने पर सब लोग डिब्बे से नीचे आये। उस महात्माने बाबां का पता लिख लिया। बाबांका कहना यह है की, वह महात्मा आज तक उन्हें मिलने नहीं आया। इस कारण बाबा अपने सेवकों को हमेशा मार्गदर्शन कर जगाते है। उन्होने इस बाबत निम्नानुसार उपदेश किया है।
उपदेश :
बाबा हरिव्दार में उतरने पर वहाँ के सभी मंदिर जाकर आये। लेकीन किसी मंदिर में उन्होने प्रणाम नही किया। क्योंकी वे कहते है। की मंदिर में भगवान विराजमान नही है। तथापी वह हर एक आत्मा में विराजमान है लोगों की दृष्टी कों, मंदिर में ही भगवान देखने की आदत हुई है। लेकीन उन्हें चैतन्यमय आत्मा में विद्यमान भगवान नहीं दिखता। लोग मंदिर की निर्जीव मूर्ती को भगवान समझकर उसे भोग चढाते है। यह इस देश की परंपरा है। इसका मुझे बहुत खेद है। इस अंधश्रध्दा के कारण ऐसे ढोंगी व्यक्ती लोगों को भगवान का भय (धाक) दिखाकर लुटने का कार्य करते है। फिर भी यह लोगों के ध्यान में नही आता, इसका अफसोस होता है। इस देश में जो घटीत हो रहा है उससे नैतिकता का पतन हो रहा है और देश में अधर्म हो रहा है। भारत में अनेक धर्म है। भारतीय लोग सुसंघटित है। भगवंत समय-समय पर आकर में प्रकट होकर जो सत्य है। वह दिखाया है। इस देश का इतिहास इन लोगों को ज्ञात है। उसके बावज़ुद बाबा एवं लोग यह देख रहे की, समस्त धर्म के लोग सत्य छोड असत्य की ओर दौड़ रहे है। और लोगों के असत्य की और दौडने से इस देश की हालत बिगडी है। असत्य भगवंत को अप्रिय है। इस देश में भ्रष्टाचार हो रहा है। समस्त धर्मों के लोग भगवंत के प्रति मार्गदर्शन करते हैं। फिर भी इस देश से सत्य लुप्त हुआ, ऐसा क्यों ? प्रत्येक घर्म के घर्मगुरु अपने अपने धर्म लोगों कों जागृत क्यों नही करते की, केवल सत्य ही परमेश्वर को प्रिय है और सत्य ही हमेशा के लिये निर्माण करना है एवं सत्य यदि स्थापित नही हुआ तो अवश्य ही इस देश का पतन होगा। सत्य को जागृत करने से ही इस देश को लाभ होगा। इसलिये बाबा सत्य को जगाने का कार्य करते हैं। बाबा हमेशा मार्गदर्शन करते समय बताते है की " मेरे इस मार्ग के मार्गदर्शन का जो लाभ उठाते है । वे तनिक भी भीख नही माँगते और स्वयं कष्ट करके स्वावलंबी होते है । मैं भगवान नही हूँ । तथापी भगवान ने अपना परिचय मेरी आत्मा में दिखाया है इसलिये मानवों के ( लोगों के ) आत्मा में भगवंत देखता हूँ और उसकी पहचान उस मानव को करा देता हूँ । इस देश में अधर्म शुरु है । उसे रोकने का कार्य बाबा अपने मार्गदर्शन से कर रहे है । इस महान कार्य के लिये ही भगवंतने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को अपने साथ लिया है । अर्थात बाबा भगवान के रुप में लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए सिखा रहे है । इस महानकार्य के लिये ही भगवंतने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को अपने साथ लिया है । उन्हे सत्य के बारे में जागृत कर रहे है । क्योंकी देश की संपूर्ण समस्या बाबांके सामने है इसलिये बाबाने त्याग किया है । वे निष्काम भावना से परमेश्वर का कार्य करते हैं।
बाबा किसी से भी गुरुपुजा ( गुरुदक्षिणा ) नही लेते । हर एक के आत्मा में परमेश्वर रहने के कारण वह किसी को भी अपने पैरों पर माथा टेकने नही देते । स्वयं के परिवार का संपूर्ण खर्च वे ही स्वयं उठाते है । वे किसी से भी भीख नहीं मांगते तथा मार्ग के सेवकों को भी माँगने नही देते है । महिलाओं को तो बहुत दुर खडे रखते है । इसलिये स्पर्श करने का सवालही नही उठता । वे किसी से भी झूठा ( असत्य ) व्यवहार नही करते । मानव यह बुध्दिजीवी प्राणी है । इसलिये भगवान सही पहचान केवल उसीकों है । मानव के नर एवं नारी यह दो जातीयाँ है । अतः यह दो प्राणीही परमेश्वर को जगा सकते है । प्रत्येक मनुष्य अथवा स्त्री यह कार्य कर सकते है । बाबा हमेशा सत्कर्म करते है एवं सेवकों को भी सत्कर्म करने हेतु , जोर देते है । भगवंतने हमें निर्माण किया , इसलिये हम सब का विधाता यह एक ही भगवान है , ऐसा वह कहते है , अतः परमेश्वरने अपनी आत्मा से हमारे मन को जागृत करने का कार्य करते है । मानव अपने परिवार का भरण - पोषण हेतु नियमित जीवन व्यतीत करता है । तथा उसके परिवार में सभी ने सत्य , मर्यादा , प्रेम का व्यवहार अपनाना चाहिए । तभी उसके परिवार में परमेश्वर स्थिर रहेगा । क्योंकी उसे यही प्रिय है ।
बाबा बताते है की , इस देश में लोग मर्यादा पुरुषोत्तम राम की माला जपते है । रामने रावण ( शैतान ) को समाप्त किया । उसकी शैतानी शक्तियों को नष्ट किया है । यह इतिहास में लिखा है । फिर भी उनके नाम की माला जपनेवाले यह मुर्ख , लफंगे ऋषी , महात्मा उनके समान सत्य व्यवहार क्यों नही करते । इसका बाबा को बहुत दुःख होता है । इसलिए बाबा सत्य का प्रमाण ९९ प्रतिशत तथापि १०० प्रतिशत होकर शैतानी प्रवृत्ती का विनाश करने हेतु स्वयं निष्काम भावना से जुझते हुए अपने सेवकोंको भी जुझने बताते है । तद्नुसार लोगों ने अध्यात्म , ध्यान में रखकर व्यवहार करना चाहिए । जिससे पुरी दुनिया इस कलियुग से पुनः सतयुग की ओर शांततापुर्वक अग्रेसर होगी ।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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