"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (३१)
"परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल"
प्रकरण क्रमांक:- (३१) "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद से वह भगवंत के प्रती मानवों को जगाने का कार्यं निरंतर कर रहे है । उन्होने स्थापन किये हुए मानव धर्म के जो तत्व, शब्द और नियम दिये है उनका परिपूर्ण पालन करने पर अनेक सेवकों के दुख नष्ट हुए है और हर दिन हो रहे है । जैसे-जैसे इस कृपा का लाभ सेवकों को हो रहा है, वैसे-बैसे इस मागं के सेवकों की संख्या दिनोंदिन बढ रही है ।
यह घर्म नया होने के कारण इसके तत्व, शब्द, नियम के कारण, पुरानी विचारधारा, धर्म को तिलांजली देकर नई संस्कृती निर्माण करने की प्रक्रिया चल रही है । पिंढी-दर-पिढी से चल रहे बिचार धर्म को छोंडना, यह अघिकतर लोगों को नहीं भाँता और जो लोग इस मार्ग के सेवक बनते है उन्हे भी यह पुराने रिती-रिवाज नष्ट करने होते है। इसलिये इस मार्ग में आये हुए सेवक बाबांके मार्गदर्शन से शारिरीक और मानसिक दुखो से मुवत्त हुए है फिर भी उन्हें सामाजिक कष्ट होने की संभावना थी। इसलिये सेवकों को किसी भी प्रकार का सामाजिक कष्ट न हो ऐसा बाबा को लगने लगा ।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके यहाँ भगवत कार्यं की चर्चा बैठक के दौरान वह निराकार में आये और अपने मार्गदर्शन में उन्होंने कहा की, इस मार्ग के सेवक बुश्दीहीन और श्रमिक है। संस्कृती में व्यवहारित होने से पुराने आचार-विचार के लोगों को यह सुहाता नही । और उन्हें समाज की ओंर से कष्ट होता है । इसलिये उनकी एकता और संघटना होना आवश्यक है । इसलिये बाबांने उन "सेवकों में ओंर परिवार में एकता कायम करना' ' यह नियम पालन करने के लिये दिया है ।
संघटना सशक्त हो इस उद्देश से बाबांने फंड अनुदान शुरु कर के हर महिने में एक बार सेवकों के यहाँ और प्रत्येक शनिवार को बाबां के यहाँ भगवत् कार्यं की चर्चा बैठक प्रारंभ की। इस तरह निरंतर १ ९ ६ ६ से १९६९ तक कार्यं शुरु थे और सेवकों की संख्या में उस्तरोत्वर वृब्दि हो रही थी, इसलिये सेवकों के हितों के लिये बाबांने आध्यात्मिक कार्य के साथ-साथ सामाजिक कार्यं कीं ओर भी ध्यान दिया और सेवकों को दिन-व-दिन होनेवाली आवश्यकताएँ पुरी काने के लिये कुछ बाते निर्माण काने का निश्चय लिया। सेवकों की संघटना थी फिर भी ४ दिसंबर १९६९ को "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल, नागपूर" इस नाम की संस्था तैयार की गयी । इस मंडल की कार्यकारिणी श्रीमान महादेवरावजी कुंभारे इनकी अध्यक्ला में स्थापन कीं गई और सही मायने में मंडल का कार्य प्रारंभ हुआ। इस मंडल का कार्यालय श्री. रामाजी भौंदेकर इनके निवासस्थान टिमकी यहाँ शुरु किया गया । इस मंडल की ओर से हर वर्ष "एक भगवान प्रकट दिन" मनाना, सेवकों की, बैठक लेकर भगवत् कार्य की चर्चा करना, इसके साथ ही सेवकों के लिये सामाजिक कार्य करना इत्यादि कार्य किये जाते हैं। सर्व प्रथम फंड अनुदान जमा कर सन १९७६ में सहकारी बैंक निर्माण की गई। तत्पश्चात हर रोज उपयोग में आनेवाली वस्तूएँ योग्य एव वाजीव भाव में सेवकों को मिले इसलिये जागनाथ बुधवारी, नागपूर यहाँ "ग्राहक भंडार" की स्थापना की गई। इस संस्था के व्दारा वे लोगों की सेवा कर रहे हैं। इसके साथ ही इस मंडल के गाँव के सेवकों को उनके कृषी व्यवसाय में पुरक व्यवसाय के रूप के रामटेक तहसील के सालईमेटा और भंडारा जिला के धोप इस गांव में दुध उत्पादक संस्था स्थापित कर वहाँ के लोगों को रोजगार दिलाया। यह सब कार्य करते हुए इस मंडल का धर्मादाय विभाग में धर्मादाय संस्था के रूप में सन १९७९ में पंजीयन किया गया। संस्था का नियमानुसार पंजीयन हुआ है और धर्मदाय आयुक्त नागपूर उनके पंजीयन पत्र क्रमांक महाराष्ट्र/२२३/७९ नागपूर, १४ अगस्त १९७९ होकर प.ट्रस्ट न. एफ २५०२
नागपूर ऐसा है।
उपरोक्त संपूर्ण कार्य करने के पश्चात् इस संस्था की स्वयं की वास्तु हो इसलिये वाबांके मार्गदर्शनानुसार सेवकोने प्रयत्न कर "मानव-मंदिर" नाम की स्वंय की भव्य वास्तू (भवन) निर्माण की है। इस संस्था के संस्थापक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी है। और वे आद्य(प्रारंभिक) मठाधिपती है।
इस वास्तु में नागपूर से बाहर के सेवकों के उच्च शिक्षा लेने वाले बच्चों के लिये रहने की व्यवस्था की है। इस मंडल की ओर से उच्च शिक्षा लेनेवाले बच्चो को योग्य मार्गदर्शन मिलना चाहिए इसलिये वाचनालय भी प्रारंभ किया गया है उसका लाभ अनेक गरीब छात्रो को मिल रहा है। जिससे उनका शैक्षणिक दर्जा बढ़ रहा है। इस वाचनालय धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक, रोजगार समाचार इत्यादी आवश्यक विषयों से संबंधित पुस्तके एवं दैनिक मासिक पत्रिकाएँ रखी गई है। और अनेक सेवक इसका लाभ ले रहे हैं।
इसा मंडल की ओर से क्रिडामंडल की स्थापना की गई है और क्रिडांगण (खेल मैदान) भी तैयार किया गया है। अनेक सेवक इसका लाभ ले रहे है।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर
🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।
सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w
सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
No comments:
Post a Comment