Thursday, May 14, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (११) "प्रथम सेवक"

                   "मानवधर्म परिचय"

"मानवधर्म परिचय पुस्तक"( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर

           "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                प्रकरण क्रमांक (११)

                    "प्रथम सेवक"


प्रकरण क्रमांक:- (११) "प्रथम सेवक"


       महानत्यागी बाबा जुमदेवजीनें एक भगवंत की प्राप्ति करने पर उसका लाभ अनेक गरीब एवं दुःखी पिडीत लोगों को होने लगा। बाबांने भगवंत को वचन दियेनुसार बाबा निष्काम भावनासे इमान-ऐ-ऐतबारे भगवंत के प्रति मानव को जगाने का कार्य करने लगे, उन्हें सुयोग मार्गदर्शन कर उनके जीवन में जो कुछ शारिरीक, आर्थिक अथवा मानसिक कष्ट होगा। उससे उन्हें मुक्त कर के उन्हें सुखी और समाधानी किया। इस प्रकार अनेक लोगों ने इसका लाभ उठाया। इनमें से कुछ लोग इस मार्ग के उपासक भी (सेवक) बने उनमें से इस मार्ग का प्रथम सेवक बनने श्रेय श्री. गंगारामजी रंभाड इन्होंने पाया।

   

      श्री. गंगारामजी रंभाड यह टिमकी में बाबांके मोहल्ले के निवासी है। बाबा के पड़ोस में गडीकर इनका क्लब था। वहाँ कॅरम वगैरह मनोरंजन के साधन थे उस मोहल्ले के लोग सायंकाल को खाली समय में वहाँ जाकर बैठते थे वहाँ वे परमेश्वर प्रति मानव को जगाने हेतु हमेशा चर्चा करते रहते थे। बाबा की यह चर्चा सुनकर वहाँ के लोग उसपर विचार विमर्श करते थे उनमें से कुछ लोग उसका लाभ भी लेते थे। इसी क्लब में गंगारामजी रंभाड भी हमेशा आते रहते और बाबांकी चर्चा में सहभागी होते थें।
   

      गंगारामजी रंभाड हिंदु संस्कृती में पले-बढे थे। उनका घराना गुरुमार्गी था। उनके गुरुजी का सोनारबाबा नाम था। फिर भी वे भूतबाधाओं से पिडीत रहते थे। उनके शरीर में भूत पिशाच आते थे। इस कारण वे बहुत त्रस्त हुये थे। गुरुमार्गी होकर भी उनके गुरु उन्हें इन दुःखों से मुक्त नहीं कर सके। तब उनका भगवानपर से विश्वास उठ गया था। उन्हें लगता था की, संसार में भगवान नहीं है समस्त गुरु समान है जो केवल भगवान के नामपर लोगों को लूटकर अपना पेट भरते हैं। वैं भगवान के उपासक होने का दिखावा करते है। जो लोगो के दुःख दूर नही कर सकते, वे गुरु कैसे ? और उन्होने जिस परमेश्वर की प्राप्ती की है। यदि वह इन गुरुओं की सहायता नहीं करेगा तो वह परमेश्वर कैसा? ऐसे अनेक विचारों के कारण उनका परमेश्वर पर से विश्वास उठ गया था उन्होंने गुरु के प्रयत्नो के अतिरिक्त अपने दुःख दूर करने के लिए समाज में प्रचलित पुरानी रूढियों के अनुसार अंधश्रध्दा का उपचार किया। डॉक्टर से औषधोपचार किया लेकीन कुछ भी लाभ नहीं हुआ। उनका स्वास्थ दिनोंदिन गिरता रहा जिससे उनका मन बैचेन हुआ था।
   

      एक दिन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी क्लब में परमेश्वर बाबत् चर्चा करते समय गगारामजी रंभाड ने बाबा से प्रश्न किया, संसार में परमेश्वर नहीं है क्या? तब बाबांने उत्तर दिया? "परमेश्वर अवश्य है," परमेश्वर यह वस्तु दिखाई नही देती और उसे कोई देख नहीं सकता। वह आत्मज्योत है जो चोबीसो घंटे जागृत होकर चैतन्य है गंगारामजी ने पुनः प्रश्न किया की, में गुरूमार्णी है। मेरे शरीर में शैतान, भूत-पिशाच है। कुछ भी कारने से वे निकलते नहीं। गुरु यह परमेश्वर का उपासक होता है। वह परमेश्वर की सहायता से लोगो के भूत-पिशाच नष्ट कर दु ख दूर करता है, ऐसा होकर भी मेरे दुख दूर क्यों नहीं होते ? इतना कहकर बाबा के समक्ष प्रश्न रखा की, भगवान है ऐसा आप कहते है, तो मुझे वह दिखा सकते हो क्या ? बाबाने तुरन्त जबाब दिया ठीक है घर चलो में तुम्हें परमेश्वर दिखाता हूँ। तत्पश्चात बाबा और गंगारामजी रंभाड दोनों  गंगारामजी के धर गये।

परमेश्वर याने क्या?

 

       घर  जाने पर बाबांने उन्हें कपूर और अगरबरती लाने को कहाँ। कपूर और अगरबत्ती लाने पर वे बाबा के सामने बैठे बाबाने अगरबत्ती लगायी। कपूर की ज्योत लगायी। कपूर बुझने पर गंगारामजी के दोनों आखोंसे आंसूओ की धारा निकली। वे बहुत रोने लगे। वे कुछ भी नही बोलते थे कुछ देर बाद वे शांत हुये।
  

    बाबानें उन्हें समझाया गंगारामजी, भगवंत की ज्योत लगायी उसके समक्ष वह ज्योत कम पड़ी। इसलिये उसकी प्रखरता कम हुई। भगवंतने तुम्हारी आत्मज्योत चैतन्य की। इसी कारण तुम बहुत रोने लगे। तब भी व्यवहार करते वक्त मनुष्य को लगता है की हम जागृत है, जो करता है वह अच्छा एवं सत्य करता है लेकीन कुछ समय उसका मन कुछ व्यवहार करने को ग्वाही नहीं देता। और मन में निरंतर कुछ तो भी विचार करते रहता है तब वह सत्य व्यवहार नही करता इसलिए उसका मन सदैव उसे कथोटते रहता है। याने उसकी आत्मज्योत जागृत होकर उसकी आत्मा उसे शांत नही बैठने देती। और यही उसकी सच्ची आत्मप्रचिती है और यही आत्मा, परमात्मा का एक हिस्सा है। यहीं परमात्मा सत्य "परमेश्वर" है वह चोबीसो घंटे मानव के पास जागृत होकर चैतन्य है।
   

    जब मानव की आत्मा को कुछ बाते नहीं भाती तब मानव भयभीत होता है और उसका आत्मशक्तीबल कम होता है इससे उसपर भ्रमीत करनेवाली दूसरी कल्पनारुपी शक्ती सवार होती है उसे वह भूत समझता है और इसलिये यह कल्पनारुपी शक्ती भय के कारण उसके मन से कभी भी निकलती नही।
  

     भयभीत हुये लोग जब बाबां के यहाँ आते तब बाबा उन्हें मार्गदर्शन करते है की अचेतन शक्ती है। मानव को तभी सेवक माना जाता है। जब उसकी आत्मा चैतन्य बनती है और बह आत्मा उसे जागृत करती है। यद्यपि मनुष्य को ऐसा लगता होगा की, साक्षात्कार मिला याने आत्मा चैतन्य हुआ। लेकीन बाबा इसे कभी भी मान्य नही करते। क्योंकी मानव का स्वभाव ऐसा है की वह मोह, माया, अहंकार में उलझा हुआ है। इसलिए उनमें यह बात बहुत जल्दी उभर आती है। और वह अचेतन हो सकता है क्योंकी बाबाकी विदेहावस्था में परमेश्वरने उनके साथ ही संपूर्ण मानवों को बेइमान कहा है। यह बाबांने उन्हें सिखाया है इसलिए बाबा हमेशा बताते हैं की, जब तक मानव परमेश्वर के प्रति जागृत नही होता तबतक उसकी आत्मा चैतन्य नहीं हो सकती। बाबांने परमेश्वरका जो संतुलन किया है। जो जागृती आत्मा से मिली है वही भगवंत की सच्ची शक्ती है। वह निराकार है। बाबांने उसे आकार करके दिखाया है। वह अदृष्य है, उसे कोई भी नही देख सकता। उसके सिर्फ़ गुण दिखते है लेकीन बाबांने उस शक्ती को देखा है। बाबांने विश्व  जितना एक ही नेत्र देखा है। वह विराट शकती है। वही सच्ची आत्मज्योत है। वह प्रत्येक मानव में है और वही परमेश्वर है। वही परमात्मा है। उसका अंश हर एक जीवात्मा में है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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