"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (१८)
"अंतःकरण के वचन"
प्रकरण क्रमांक:- (१८) "अंत:करण के वचन"
महादेव कॉलेज में क्यों नहीं आया यह जानने के लिये महादेव का दोस्त विठ्ठल राऊत रात करीब नौ बजे उसके घर आया था। क्यांकी वह उस दिन अस्वस्थ होने के कारण बाबा की सलाह के अनुसार कॉलेज नहीं गया था। उसका दोस्त उसे मिलने आया तब वह पढाई करके सोया ही था। दोस्त के आने के संबंध में जानते ही वह जागा और दोस्त के साथ चर्चा करने लगा। बातों बातों में उसने उससे कहा, "विठठल अपने को डॉक्टर का सर्टिफिकेट झुठा साबित करना है।" इस समय
महानत्यागी बाबा जुमेदवजी भोजन कर रहे थे। वे शब्द उन्होने सुने। उन्हे बहुत बुरा लगा। वह सोचने लगे, तब उन्हें लगा की यह शब्द उसके स्वयं के नहीं है तो "कहलवाने वाला मालिक निराला" इस कहावत के अनुसार यह शब्द (वचन) उसकी अंतरात्मा से भगवंत ने निकाले है। उस रात सभी खुशी-खुशी सो गये।
दुसरा दिन निकला, बाबां कॉन्ट्रॅक्टर होने के कारण सुबह काम के लिये बाहर गये थे। लगभग ग्यार बजे बाबा घर आये। और अपने आसनपर विराजमान हुए। इससे पूर्व महादेव एवं उसका दोस्त डॉ.झोडे से दवाई लेकर आये थे। महादेव दवाई लेकर अंदर कमरे में सोया था। किन्तु अचानक महादेव कैसे तो भी करने लगा। उसने आँखे घुमा दी। उस समय उसकी माँ घर में ही थी। वह भी घबराकर दौडते हुये आयी और जोर से रोते रोते कहने लगी की महादेव कैसे तो भी कर रहा है । उसने ऑँखें घुमा दी है। यह सुनकर बाबा आसन से उठकर अंदर गये। बाबा और माँ का वहु एकलौता पुत्र था। फिर भी बाबा उस स्थिती में बिल्कुल नही घबराये। उन्होने अपना मन कडा किया और माँ से कहा, तुम रोना नहीं। यह समय रोने का नही संघर्ष करने का है। मानवी जीवन संघर्षमय है। मानवी जीवन संघर्ष से ही सुखी होता है। संघर्ष करना यह मानव का परम कर्तव्य है। इसलिये रोना बंद करो, हम "निर्मित स्थिती का सामना करेंगे। मानव यह कर्मकर्ता है। इयलिये उसके व्दारा गलतियाँ होना स्वाभाविक है। इसलिये हम भगवंत को कपूर जलाकर हुई गलतियों की क्षमा मागेंगे।
महानत्यागी बादा जुमदेवजींने भगवान बाबा हनुमानजी को कपूर की ज्योत जलाकर बिनती की, की "भगवान बाबा हनुमानजी, आप कर्म नहीं करते। हम मानव कर्म करते है। हम से कुछ गलतियाँ होना तय है। हमारे व्दारा अनजाने कुछ गलतियाँ होने से मे पूर्णतः दोषी हूँ। आप निर्दोष है इसलिये मुझे क्षमा करे।" लेकीन वाबाने बिनती करने के बाद भी महादेव को आराम नही हुआ। वह उसी तरह आँखे घुमा रहा था। तब बाबाने आई को बिनती कर क्षमा मागने को कह। तद्नुसार आई ने भगवंत को कपूर की ज्योत लगाकर क्षमा मांगी, फिर भी उसे आराम नहीं हुआ। यह देख बाबा उसके पास गये और उसके कान में बताया की महादेव, तुझे बोलनা नहीं आता, तुने आंखें घुमा दी है। किर भी । तु जिस स्थिती में है उसी स्थिती में मन ही मन बाबा हनुमानजी कह कर अंतःकरण से क्षमा मांग। इस प्रकार बाबाने महादेव को मार्गदर्शन किया। तदनुसार उसने बाबा हनुमानजी को क्षमा मांगी और वह एकदम उठकर खडा हुआ, और बाबा से कहा अब मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। अब मुझे कुछ भी नहीं होगा। इस प्रकार महादेव को परमेश्वरी साक्षात्कार एवं चमत्कार की अनुभूति हुई। तब से उसकी भी बाबा हनुमानजी पर श्रद्धा कायम हुई।
महादेवने अपने मित्र से कहा था की, हॉक्टर का सर्टिफिकेट झूठ साबित करना हैं। वह शब्द भगवंत को पूरा करना था। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के समक्ष भी वह शब्द धूम रहा था। पन्द्रह मिनट बाद वह उसी तरह अस्वस्थ हुआ। एवं उसकी स्थिति पहले जैसे हुई, परमेश्वर ने इस मार्ग पर यही सिखाया है। मानव कहाँ गलती करता है। यह उसने ध्यान में रखना चाहिए। इसलिये बाबा सेवकों को हमेशा मार्गदर्शन करते हैं की इस मार्ग में आने पर यदि किसी को दुख निर्माण होता है तो पहले उसने अपनी गलती देखनी चाहिए। उसने अपना आत्मसंशोधन करना चाहिए। तब उसकी गलती समझ में आती है, और उस गलती की क्षमा मांगने पर उससे उसे छुटकारा मिलता है।
बाबांने अपने छोटे बंधु मारोतराव को डाॅ. झोडे को बुलाने को कहा। बाबा के पड़ोस में विठोबाजी धापोडकर नामक एक नाडी परिक्षक वैद्य रहते थे। वह नाड़ी परिक्षा कर आयुर्वेदिक दवाई देते थे। उन्हें भी बुलाने को कहा गया तदनुसार मारोतराव दोनों को बुलाने चले गये। थोही देर में डॉ. झोडे घर आये। उनके पीछे -पीछे विठोबाजी वैद्य भी आये। डॉक्टरने महादेव की पूरी जाँच की। वह बाहर आकर बाबा से बोले, "महादेव को धनुर्वात हुआ है। उसका ध्यान रखे। इस बिमारी की अवधि केवल चार घंटे होती है।" तब बाबाने डॉक्टर से कहा की आप वैसी सर्टिफिकेट दे, ताकि मैं उसे मेडीकल कॉलेज या मेयो अस्पताल लेकर जाऊ, तदनुसार डॉक्टरने बिमारी का सर्टिफिकेट दिया और वह अपने अस्पताल चले गये। तत्पक्यात पधारे वैद्य ने उसकी नाड़ी परिक्षा की। उन्होने भी धनुर्वात होने संबंधी बाबा को बताकर उसका ख्याल रखने कहा। बाबां उस लड़के को घर में उसी स्थिती में छोड घर के बाहर निकले। उन्होने मेडीकल कॉलेज, मेयो हॉस्पिटल एव
नागपूर महानगरपालिका तथा अन्य जगहो पर एम्बुलनस हेतु फोन किया। लेकीन कही भी एम्बुलन्स नहीं मिली। इसलिये बाबा घर वापस न आकर तीन खंबा चौक, मोमीनपुरा गये। वहाँ से सायकल रिक्शा लिया और इतवारी पोस्ट ऑफीस के पास आये, वहा रिक्शा छोड दिया। वहाँ बहुत से ऑटोरिक्शा खडे थे। उनमें से एक ऑटो रिक्षा वालउ हे उन्होने कहा की एक सिरियस केस है। टिमकी से वह मेडीकल कॉलेज में पहुँचना है। जो भी किराया होगा वह देंगे। उनमें से एक ऑटोरिक्शा वाला तैयार हुआ। उसने बाबा के पास अपना रिक्षा लाया। बाबा उसमें बैठकर रंभाजी रोड पर रामेश्वर तेलघाणी के पास आये। तब महादेव उठकर बैठा था। परिवार के सभी लोगों ने कपूर लगाकार भगवंत को विनती की, की भगवान मानवी कोशिशों को लाभ पहुँचाने का अधिकार आप ही को है। इसलिये मनो की तबियत को आराम होने दो। तत्पश्चात बाबा, आई, महादेव, बाबा की बडी भाभी श्रीमती सीताबाई ऑटोरिक्षा की ओर जाने निकले। मनो पैदल ही रिक्षा तक गया। वे सब रिक्षा में बैठे उसके बाद रिक्षा चालु हुआ। नजदिकही सौ फिट पर रास्ते में ही हनुमानजी का मंदिर है। उस मंदिर के सामने ऑटोरिक्षा अपने आप बंद हुआ। तकरीबन पन्द्रह मिनट ऑटोरिक्षा चालू करने की कोशिश की लेकीन वह चालु नहीं हुआ। तत्पश्चात वह अपने-आप चालु हुआ। और गोलीबार चौक से मेडीकल की ओर जाने लगा। गोलीबार चौक में डॉ. झोडे के अस्पताल के सामने वह आटोरिक्षा फिर से बंद हुआ। उसे चालू करने में फिर दस मिनट गये। चालु होने पर वह आगे बढा। गांधीबाग फवारा चौक में फिर बंद हुआ। तब बाबा को बहुत गुस्सा आया वे उस ऑटोरिक्षा वाले पर बहुत क्रोधित होकर बोले की मैने आपको पहले बताया था की सिरीयस केस है। मेडीकाल कॉलेज में पहुँचना है। तब आपने क्यों नहीं बताया की आपकी गाडी खराब है दूसरी ले जाईये। उन्होने आगे कहा, यह गाडी प्राण लेती है। आपको किसी की जान की चिंता नही है। केवल पैसा चाहिये। ऐसी गाडी को लात मारकर उसे तोड-फोड करना चाहिये। इतना कहते ही वह गाडी फिर चालु हुई। और वह सीधी मेडीकल कॉलेज पहुँची।
वहाँ डॉक्टरों ने मनो की जाँच की तब बाबांने वहाँ के डॉक्टरों से पूछा की मेरे पुत्र को क्या बिमारी हुई है। तब संपूर्ण जाँच के पश्खात कोई भी बिमारी न होने का निदान डॉक्टरों ने किया। तब बाबाने उन्हें डॉ. झोडे ने दिया सर्टिफिकेट दिखाया। डॉ. झोडे M.B.B.S. होने से उनका सर्टिफिकेट देखकर सभी डॉक्टरों को आश्चर्य हुआ। वे सभी सोचने लगे। उन्होने धनुर्वात के वार्ड में फोन किया और पाँच मिनट में उन्हें बताया की बाहर एम्बुलन्स खडी है। आप उसे धनुर्वात के वार्डमें ले जाये।
मनो को उस वार्ड में ले जाया गया। वार्ड इन्चार्ज डॉक्टर ने उसे बेड दिया। सिरीयस केस समझकर डॉक्टरोंने फटाफट जॉँच करना प्रारंभ किया। उन्होने वरिष्ठ डॉक्टरों कों भी बुलाया। उन्होने भी उसकी जाँच की जब वार्ड इन्चार्ज डॉक्टर बाहर आये। तब बाबांने उनसे पुछा, डॉक्टर ने जवाब दिया की सिरीयस है। तब बाबांने फिर पुछा, डॉक्टर साहब आपकी किताब में सिरीयस नाम की बिमारी है क्या? उस पर
डॉक्टरॉंने कोई जवाब नही दिया। तब बाबाने कहा, डॉक्टर मैं लिखकर देता हूँ की जब तक बीमारी का पूर्णतः निदान (जानकारी) नही होता तब तक मैं उसे दवाई नही देने दूँगा। लडका मेरा है कुछ उँच-नीच होने की संपूर्ण जबाबदारी मेरी है तब डॉक्टरोंने बाबा को मुर्ख कहा। इस पर बाबानें कहा की मैं महामुर्ख हूँ। तत्पश्चात बाबांने एक सेवक को आई के पास भेजकर संदेश देने को कहा की मनों को कोई भी दवाई ना दे। इन्चार्ज डॉक्टरोंसे बाबांने विवाद करने के ारण व कमरे में चले गये। क्योंकी विवाद निर्माण होने से बाबाको लग रहा था की वह दवाई अवश्य देगा। वरिष्ठ डॉक्टर मनो को जाँच कर और औषधोपचार हेतु बता कर दूसरी ओर चले गये थे। इसलिये उसने वरिष्ठ डॉक्टर को फोन कर के बुलाया। उस इन्जार्च डॉक्टर ने फिर से जाँच की। लेकीन उस से भी निदान(निष्कर्ष) नहीं निकला।
उस वार्ड में अन्य रोगियों को मिलने लोग आये थे। उनमें से कुछ सुशिक्षित लोग कहने लगे की लड़के के पिता कितने मुर्ख है। लड़का इतना सिरीयस होने के बावजुद उसे दवाई नही देने दे रहे है। यह शब्द बाबा के कानोपर आते ही वे उन लोगों को कहने लगे की सचमुच में महामु्खं हूँ। केवल मुर्ख ही होता तो फिर सिर पर हाथ धरे बैठा होता। आप लोगों से नही बोल पाता। लोग केवल आश्चर्य करते रहे। वरिष्ठ डॉक्टर आने पर वार्ड इन्यार्ज ने उन्हें दवाई देने से मना करने बाबत बाबांकी शिकायत की। डॉक्टरने शिकायत की, की बिमारी का पूर्णतः निदान करें और उसके बाद ही दवाई देवे अन्यथा न दे। निदान किये बगैरे दवाई देने से उसकी जान जाएगी ऐसा लडके के पिताजी कहते है।
सभी डॉक्टरोंने जाँच करने से भी रोग का अचुक निदान नहीं हुआ। यह सब देख बाबाने मन में कहा की परमेश्वर मनो की परिक्षा ले रहा है। कुछ देर में परिवार के कुछ लोग मनो जिस बेड पर था, वहाँ से बाबाके पास आई का संदेश कहने दौडते आये। आई का संदेश सुनकर बाबा उन पर बहुत नाराज हुये। और कहा,"आप मुझे कुछ भी न बताये आप जाईये, मैं आ रहा हूँ।" इतना कहकर बाबा मनो के बेड के पास जाकर उससे पुछा, तुझे क्या हुआ? तब उसने बाबा से कहाँ, मैं नहीं जी सकता। इस पर बाबाने उससे कहा, महादेव तुझे कुछ भी नही होगा। तु चिंता मत कर, तब उसने कहा, महादेव तुझे कुछ भी नही होगा। तु चिंता मत कर, तब उसने बाबासे कहा मुझे सचमुच कुछ नही होगा। तब मनाने कुछ विचार किया और उसने बाबा से कहा, मुझे कुछ नही होना चाहिए, इसके लिये क्या करना होगा? तब बाबांने उसे मार्गदर्शन किया, तु भगवान वाबा हुनुमानजी को सामने रख कर उनका चिंतन कर और धैर्य से काम ले। सब कुछ ठीक होगा। इतना कह
कर बाबा वहाँ से चले गये और डॉक्टर के कमरे में जाकर खडे रहे। मनो शांत पड़ा रहा।
बाबांको शक हो रहा था की कुछ उलटा-सीधा करेंगे। उनकी शर्त थी की की जब तक बीमारी का निदान नही होता तब तक दवाई नही दि जाए। वह डॉक्टरों पर नजर रखे हुए थे। लेकीन दोनों एक दूसरे से बात नही करते थे।
समय निकल रहा था। डॉ. झोडे के कथनानुसार चार घंटे समाप्त होने वाल था धनुर्वात के केस में चार घंटे उपचार नही हुआ तो रोगी मरता है। ऐसा डॉक्टरों का निष्कर्ष है बाबा एवं सभी लोगों का ध्यान डॉक्टर तथा मनो की ओर था। कुछ देर में बाबाने घड़ी देखी, तब हॉस्पीटल में अॅडमीट किये चार घंटे हुए थे। कुछ लोग जल्दी में बाबां के पास आये। लेकीन बाबांसे बात करने से डरते थे, क्योंकी बाबांने भगवान बाबा हुनुमानजी की प्राप्ती की है। उनके शब्दों में महान शक्ती है वे स्वयम सिध्द है। यह वे जानते थे। फिर भी साहस कर के बाबा के पास गये। बाबा उन्हें जल्दी में आते देख नाराज हुए और कहा, मुझे मालुम है आप लोग मुझे कुछ ना बताये, तथा उन्होने हाथ के इशारे से बताया की में आ रहा हूँ उसे बताओ। तद्नुसार बाबा उसके बेड के पास आये एवं उन्होने उससे पुछा, क्या हुआ तुझे? तब उसने बाबा से कहा, "बाबा में जिंदा नही रह सकता," तब बाबाने पुछा जिंदा ना रहने का कारण क्या ? उसने जवाब दिया, "देखो, मेरी दोनो आँखे अपनी जगह उपर चढी हुई है।" तब बाबाने उसकी ओर देखकर कहा तेरी दोनों आँखे अपनी जगह पर है। तु बार-बार बही बात मत बता। यह ठीक नहीं है। तुझे कुछ नही होगा। फिर, मैं अब क्या करु ऐसा महादेवने बाबासे फिर पुछा। तो बाबांने कहा तु केवल भगवान को बाबा हनुमानजी को सामने रख एवं चिंतन कर, इतना कहकर बाबा डॉक्टर के ऑफीस की ओर गये।
ऑफीस में जाकर डॉक्टर से कहा,"अॅडमीट किये हुए साढे-चार घंटे हो चुके, आप बीमारी का निदान नही कर पाये। इसलिये हमारी केस हमें वापस किजीए।" तब डॉक्टर ने बाबा से कहा,"आप पागल हुए क्या? केस वापस लेकर क्या करेंगे?" तब बाबा को बहुत क्रोध आया। उन्होंने डॉकटर से कहा, "डॉक्टर अब आप मुझे पागल न कहे। आप पागल हुए है। इससे पूर्व आपने मुझे मुर्ख कहा, मैने स्वयं को महामुर्ख कहा। लेकीन ध्यान रहे, लोग मुझे बाबा कहते है। मैं आपके अधिकार क्षेत्र में आया इसलिये मुझे कुछ भी न कहे। बाबांको परखे, अन्यथा आप का बहुत भारी नुकसान होगा। मेरी केस मुझे वापस किजीए।" तब डॉक्टर को बहुत क्रोध आया। डॉक्टर ने रजिस्टर बाबा के हस्ताक्षर के लिये सामने रखा, और कहा इस पर हस्ताक्षर किजीए। फिर से यदि केस लाये तो मैं उसे वापस नही लुँगा। ऐसा जोश में आकर डॉक्टर ने कहा। तब बाबांने उनसे कहा की, मैं फिर से आपके पास केस नही लाऊँगा। ऐसा कहकर बाबांने रजिस्टर पर हस्ताक्षर किये समस्त कागजात लेकर बाबा महादेव के बेड के पास आये और आई से कहा की, "चलो, हम धर जायेंगे", उस समय महादेव सोया था बाबाने देखा था की, जब उन्होने रजिस्टर पर हस्ताक्षर किये तभी उसे नींद आयी। आईने बाबा से कहा, "महादेव अभी सोया है। थोड़ा धीरे बोले। बाबा का कहना सुनकर महादेव जाग गया। यह देख बाबांने उउसे पुछा, "चलो महादेव हम घर जायेंगे " उस समय महादेवने बाबां से कहा की," मेरा इलाज यहाँ नही हो रहा इसलिये हम घर जायें। अब मुझे अच्छा लग रहा है।" तत्पश्चात बाबांने आई से कहा, तुम महादेव को कपडे पहना दो। क्योंकी वह बिमार है। डॉक्टरों का कहना है की केस सिरीयस है। यह सुनकर महादेव स्वय उठ खडा हुआ और आई से कहाँ, दो मेरे कपडे मैं खुद पहुनता हूँ। मैं कहाँ सिरीयस हू। कपडे पहनने के बाद वे सब वार्ड से बाहर आने लगे। तब बाबाने महादेव से कहा, मैं तुझे पकडकर धीरे- धीरे रिक्शा के पास लेकर चलता हूँ। क्योंकी डॉक्टर कहते है की तुम सिरीयस हो। तदनुसार बाबांने उसे पकड़ने की कोशिश की, तब उसने कहा नही, मैं स्वयं रिक्षा तक पैदल चलता हूँ। और वह स्वयं चलते-चलते रिक्षा तक आया।
इससे पूर्व बाबांने मारोतरावजी को रिक्षा लाने कहा था अंतः वे रिक्षा वार्ड के सामने ले आये थे।सभी लोग वार्ड से बाहर रिक्षा के पास आए। तत्पश्चात आई एवं महादेव रिक्षा से घर वापस आये। बाबा के साथ आये सेवक लोग एवं परिवार के लोग बस से गोलीबार चौक में आये तथा अपने-अपने घर गये।
घर वापस आने पर बाबांने आई से पूछा, महादेवने खाना खाया क्या? तब आई ने बाबां को बताया की, नही उसने खाना नाही खाया उसने केवल एक कप कॉफी ली तथा वह सोया है। तब बाबांने कहा ठीक है। उसे आराम करने दौ। थोडी देर में महादेव के मामा श्री. सोमाजी बुरड़े उनके धर आये बाबाने उन्हें संपूर्ण हकीकत बयान की। वह सुनकर
उन्हें बुरा लगा। महादेव उस रात शांतीपुर्वक सोया। उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई।
दुसरे दिन सुबह सोकर उठने पर उसने बाबां से कहा, "बाबा आपने मुझे एक भगवान दिखाया। मेरा अन्य देवताओं को मानने का लोभ कम हुआ। तब से वह एकही परमेश्वर को मानने लगा। उसके पूर्व मनाने हॉस्पीटल से आने पर भगवान बाबा हनुमानजी को कपूर की ज्योत लगाकर बिनती की थी की, "भगवान बाबा हनुमानजी मैंने आपको भगवान नही ऐसा कहा था। परमेश्वर कोई नहीं। मानव सर्वोपरि है, ऐसा भी कहा था। यह मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है। इसलिये मुझे बहुत तकलीफ हुई। फिर भी आप मुझे क्षमा करें। इसके बाद में एकही भगवान को मानूंगा। परमेश्वर ही सर्वोपरि है. मानव कोई भी नही।"
उसी प्रकार उसकी अंतरात्मा से जो शब्द निकले उससे डॉक्टर का सर्टिफिकेट झुठा साबित हुआ। वही अंतकरण के वचन है, इसलिये "शब्द" यही परमेश्वर है, यह भी सिध्द होता है, तथापि बाबांके शब्दों का अनादर करना यह परमेश्वर का अनादर है, यह भी इस घटनाक्रम से सीख मिलती है।
परमेश्वर का यह चमत्कार देखकर परमेश्वर समयानुसार परिस्थिती देखकर वह मानव की भावनानुसार कार्य करता है। एवं उसे सिखाता है। यह महान दयालु है। उसकी महानशक्ती है।
यही महादेव आज डॉ. मनो ठुब्रीकर इस नाम से अमेरिका के व्हर्जिनिया मेडीकल सेंटर, व्हर्जिनिया में ऐसोसियट प्रोफेसर ऑफ सर्जरी के रूप में कार्यरत है। डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल रिसर्च के रुप में कार्यरत है। डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल रिसर्च के रुप में वह दुनिया के माने हुए वैज्ञानिकों में सातवे क्रमांक के वैज्ञानिक है। यही उसे
परमेश्वर ने दिया हुआ उपहार है
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर
🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।
सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w
सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
No comments:
Post a Comment