"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (२४)
"ईच्छा अनुसार भोजन"
प्रकरण क्रमांक:- (२४) "ईच्छा अनुसार भोजन"
मोगरकशा तालाबपर घटित घटना से सभी कुशलतापुर्वक शाम को मंगरली इस में पहूँचने पर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की प्रमुख उपस्थिती में भगवत कार्य की चर्चा बैठक प्रारंभ हुई। बैठक में उपस्थित सेवकों ने इस मार्ग पर जो तत्व शब्द और नियम सिखाये है साथ ही इस मार्ग की उपासना करने पर उन्हें जो अनुभव आये उसपर अपने-अपने विचार व्यक्त किये। तत्पश्चात बाबाने मार्गदर्शन किया। सभी लोग आनंदमय वातावरण होने से बैठक बहुत देर तक चली। उस समय रात के बारह बजे थे।
बैठक समाप्त होने पर महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने उस गाँव के सेवकों से कहा, "हमें अभी केवल दूध की चाय पिनी है इस गाँव में आये दो दिन हुए। लेकीन दध की चाय नही मिली। वह अब चाहिए।" ऐसी बाबांने इच्छा प्रकट की, यह सुनकर सेवक हड़बडाया और उसने बाबा से बिनती की, की इतनी मध्यरात्री के समय इस गांव में दूध कहाँ से मिलेगा? घर में भी दूध नही है। क्योंकी मेरे घर की भैंसे जंगल में चरने गई थी। तब बछडे भी उसके साथ थे। उन बछडो ने भैस का संपूर्ण दुूध पी लिया। भैंस जब शाम को जंगल से चरकर आयी तब मैं दूध निकालने के लिये गया था तब भैंस ने एक बुंद दूध नही दिया। अब बताओं बाबा मैं दूध की चाय कैसे पिलाऊँ? तब बाबाने कहा, मुझे मालुम नही की दुध कहाँ मिलेगा। तुम दूध कही से भी लाओ और हमें केवल दूध की चाय पिलाओं। वह सेवक गवली (ग्वाला) था और सामान्यतः अस्सी साल का बुजुर्ग था। उसने बाबा से कहा, बाबा इस जंगल में आस पास एक भी गांव नहीं। और इस गांव में रात में दुूध नही मिलता। यह मेरे जीवन भर का अनुभव है। तब बाबा जुमदेवजी ने कहा, मुझे तुम्हारा अनुभव मालुम नही और उसका कुछ करना भी नही है। हमें दूध की चाय अभी चाहिए । तब उस सेवकने बाबा को बिनती की, की बाबा आप मुझे मार्गदर्शन करें की मुझे दुध कहा से मिलेगा?
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी सभी को संबोधित करते हुए कहा, मैंने एक परमेश्वर की कृपा प्राप्त की है, भगवंत दूध देगा। तत्पश्चात बाबांने उस सेवक से कहा, जिस भेसने एक भी बुंद दूध नही दिया उसी भैंस को सामने लाओ और घर में जाकर बाबा हनुमानजी की प्रतिमा के समक्ष अगरबत्ती लगाकर कपूर लगाओ और बिनती करो की, बाबा हनुमानजी, महानत्यागी बाबा जमदेवजी को दूध की चाय चाहिय। अतः बाबा के लिए दुध दो। बाबां के ऐसा कहने पर उस सेवक ने बाबा के आदेश का पालन किया और उपरोक्तानुसार बिनती की तत्पश्चात वह बाहर आया। भगवंत का नामस्मरण कर उसने उस भैस की पीठपर जोर से थाप मारी और बर्तन लेकर वह भैस का दूध निकालने लगा। आश्चर्य की बात यह की जिस भैंसने दूध नही दिया था। उसी भैंस का दूध चर-चर कर निकालने लगा। उस भैंसने लगभग दो लिटर दूध दिया। इस मार्ग का सेवक नवरगांव का सरपंच श्री. वाघमारे यह गवली के पास देखने लगा। तो उसे दूध से भरा हुआ बर्तन दिखा। उसने वह गंजी(बर्तन) लाकर बाबांके पास रखा। तब सब लोग भगवंत की यह लिला देख कर अवाक रह गये। तत्पश्चात बाबांने उस सेवक से कहा, इस संपूर्ण दुध की चाय बनाओ। उसमें जरा भी पानी मत डालो तथा बुंद भर दूध भी नही बचाना। तदनुसार उस संपुर्ण दूध की चाय बना कर वह सभी को दी गयी।
उस वृध्द गवली सेवक ने बाबा से कहा की बाबा इसी भैंस की तरह दुसरी भैंस भी दूध देगी क्या? इस पर बाबांने जवाब दिया। तुम अपना अनुभव लेकर देखो। तुम एकही भगवंत के मन से सेवक हो और दिये गये तत्व, शब्द, नियम से चलते होंगे तो परमेश्वर अवश्य लाभ देगा। परमेश्वर देता है लेकीन मानव का परमेश्वर पर विश्वास नही।
इसलिये बाबाने तत्वों में बताया है की,"इच्छा अनुसार भोजन" अर्थात मानवने कोई भी इच्छा परमेश्वर के सामने प्रकट की तो वह उसे पुरा करता है। लेकीन उसके लिये एक लक्ष, एक चित, एक भगवान मानकर सत्य कर्म करना चाहिए।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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