Thursday, May 21, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (२३) "मोगरकसा तालाब"

                "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



             "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                 प्रकरण क्रमांक (२३)

                  "मोगरकसा तालाब"


प्रकरण क्रमांक:- (२३) "मोगरकशा तालाब"


         सतयुग की कथाएँ हम इतिहास में पढ़ते है। रामायण में ऐसा उल्लेख हैं की जब श्रीराम चौदह वर्ष के लिये वनवास गये थे। तब भरत ने श्रीराम की पादुकाएँ राजसिंहासन पर रख कर उनके नाम से राजकाज सुव्यवस्थित चलाया था। उद्देय यह की, श्रीराम यह सत्य आचरण करनेवाले मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वही लक्षण उनकी पादुका में थे। इसलिये राजकाज सुव्यवस्थित चला। लेकीन इस कलियुग में भी पादुकाओं को उतना ही महत्व है। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के रुप में, बाबा हनुमानजी जब मोगरकशा तलाब देखने गये थे, तब की यह घटना है। एक जोडनांव जो पानी से संपूर्णतः भरने के बावजुद तालाब में ना डुबते हुए तैर रही थी। और उसमें सवार सेवक जीवित रहा। यह एक परमेश्वर का साक्षात्कार है। १९७८ साल मे अप्रैल महिने में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने परमेश्वर के प्रति मानवों को जागृत करने के लिये हमेशा की तरह सात सेवक साथ में लेकर रामटेक के कुछ गावों का दौरा निकाला। १/४/१९७८ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी नागपूर के अपने सेवकों के साथ नागपूर-रामटेक होकर भंडारबोडी के परमात्मा एक सेवक दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था में पहुँचे, वहाँ बाबांके भगवत् कार्य पर मार्गदर्शन हुए। दुसरे दिन दो अप्रैल को बाबांने सेवकों के साथ पांच बैलगाडी लेकर कांद्री का दौरा किया। वहाँ भगवत् कार्य की चर्चा और बाबांके मार्गदर्शन होने पर मुकान किया। ३ अप्रैल को पंचाळा का दौरा होकर ४ अप्रैल को मंगरली इस गांव में दौरा किया। इस गांव के दौरे में नागपूर सहित लोहारा, कांद्री, सिवनी, भंडारबोडी, सालईमेटा, पंचाळा, मांडवी इन गांवो के बहुतसे सेवक भी थे।

         मंगरली यह गाँव घने जंगल के बीच बसा हुआ १५-२० मकानों का छोटासा गांव है। इस गांव में इस मार्ग में आये हुए दो सेवक रहते थे। उनमे से एक सेवक बाहरगाँव शादी में गया था। इसलिये बाबां का मुकाम दुसरे सेवक के यहाँ हुआ। जिस सेवक के यहाँ बाबा रुके थे उस जगह उस सेवक का मामा भी रुका था। वह वयोवृध्द था। उसे पंद्रह दिनो से लगातार बुखार आ रहा था। इस गांव में भगवत् कार्य की चर्चा बैठक होकर बाबांने मानव जागृतीपर सेवकों को मार्गदर्शन किया।

       चर्चा बैठक के पूर्व वहाँ इस दौरे पर जो महिला मंडली आयी थी। उन्होने पूरा खाना बनाया था। चर्चा बैठक समाप्ती पर भोजन की तैयारी हुई। सभी सेवक तथा बाबा भोजन करने बैठे। साथ में आयी हुई महिलाओंने खाना (पंगत) परोसा। वह वृध्द बाबा के पास आया और उसने उन्हें नमस्कार किया। उसी पंगत (पंक्ती) में वह बाबां के आदेशानुसार खाना खाने बैठा। भोजन के पश्चात वह फिर से बाबां के पास आया और बाबा से नम्रतापूर्वक कहा की बाबा आप धन्य है मुझे पन्द्रह दिन से बहुत बुखार था जिसके कारण मैंने भोजन नही किया था। लेकीन आपके आगमन से और मार्गदर्शन से मेरा बुखार नष्ट हुआ और आज मैं भरपेट खाना खाया। यह कितना बडा चमत्कार की बाबां के आगमन से और मार्गदर्शन से सेवकों को ही नहीं तथापि अन्य लोगों को परमेश्वरी कृपा का लाभ मिलता है और उनके दुःख नष्ट होते है।

        जो सेवक बाहरगांव शादी में आया था। उसका नाम था शेरकी वह रात में शादी से वापस आया। उस रात में मंगरली इस गांव में ही मुकामहुआ। दुसर दिन अर्थात ५ अप्रैल को शेरकी नाम के सेवक ने बाबा जुमदवेजी को बिवती की, बाबा यहाँ से दस मिलपर मोंगरकशा नाम का एक ऐतिहासिक तालाब है। उसके चारों ओर घना जंगल है। बहुत मनोरम दृष्य है आप सब लोग वहाँ वनभोजन के लिये चले। इसपर बाबाने अनुमती  दी, सामान्यतः पुरुष तथा महिलाएं मिलाकर साठ सेवक उपस्थित थे। सभीने चाय-पानी, नाश्ता किया और सब लोग वनभोजन के लिये जाने की तैयारी करने लगे। सामान लेकर जाने के लिये बैलगाडी की आवश्यकता थी। तब सेवक का बुढामामा कहने लगा, एक बैलगाडी(बंडी) है। इसके बैल वृध्द है। उनमें से एक बैल ऐसा है की, उसको बाँधने के बाद  यदि नीचे बैठा तो उठता ही नहीं। उसके शरीरपर से ट्रक जाये फिर भी वह उठता नहीं ये शब्द बाबांने सुने। तब बाबांने कहा, बैलगाडी में उसी बैल को बांधे(जुंपे)। क्या होगा वह परमेश्वर करेगा और शीघ्र वनभोजन के लिये चलो। सब सेवक तैयार हुए सामान के लिये एक बैलगाडी और सेवकों के लिये खाधर(छोटी बैलगाडी) तैयार की जिस बेलगाड़ी में ज्यादा सामान था। उसमें पांच-छः सेवक बैठे थे। और उसी गाडी में वह बैल बाँधा गया वह गाडी नागपूर का एक सेवक जगन्नाथजी सोनकुसरे चला रहा था। वह बुजुर्ग भी बाबा के साथ वनभोजन के लिये आया। जाते समय वह सामनेवाले खाचर में बैठा था और बैलगाडी पीछे थी। उसे यही डर लग रहा था की, बैल चलते चलते निचे बैठता है क्या? इसलिए वह पिछे मुड़कर देखता था। लेकीन उसे वह बैल चलता ही दिखता था। यद्यपि वह बैल उसके साथी बैल के बराबर दौड रहा था। संपूर्ण प्रवास में वह बैल एक बार भी नीचे नहीं बैठा। इसलिये उस बसक्या बैल का उस बुजुर्ग को आश्चर्य हो रहा था। बाबा और उस बसल्या बैल का उस बुजुर्ग को आश्चर्य हो रहा था। बाबा और सभी सेवक मोगरकशा तलाव के पास पहुँचे, यह तालाब नागपूर जिले में है। अच्छी-सी जगह देखती
पेड़ों की छाँव में सभी सामान उतारा गया। वहाँ खाना पकाने के लिये लकड़ी पत्थर इकट्ठा किये। चुल्हा बनाया, दौरे पर आयी कुछ महिला मंडली तालाबपर से नहा कर आने के बाद खाना पकाने की तैयारी करने लगी। महिलाओं को बाबांने बताया की आप इस ओर स्नान करके आओ। वह पूर्व विरुध्द दिशा थी और पुरुष मंडली वह नांव (डोंगा)  दिखती है उसके अर्थात दक्षिण दिशा में पश्चिम की ओर से स्नान करने जायेंगे। मुकाम दक्षिण दिशा में था। खाना पकाना जारी होने पर बाबांने सभी सेवकों से (पुरुष) कहां की  चार-पांच सेवक यहाँ रुको और बाकी स्नान करने चलो। तद्नुसार सब सेवक बाबा के साथ नांव (डोंगा) वाली दिशा की ओर पश्चिम में स्नान करने निकले।

        वहाँ पहुँचने पर कुछ सेवकों को तैरना आता था, इसलिये उन्होने तैरने हेतुबाबा की। अनुमती के लिये उनसे बिनती की। उस समय वहाँ वनविभाग का चौकीदार था। उसने उन्हें (सेवकोंको) तैरने के लिये ना जाए इस हेतु बिनती की। क्योंकी तालाब में प्रारंभ में दो हीं दो हाथी, आगे तीन हाथी और मध्यभाग में चार हाथीकी उचाँई पाणी है। संपूर्ण । तालाब में बहुत जाले है। इसलिये वहाँ कोई भी ढिवर मछली पकडने अंदर नही जाता. क्योंकी जाले में पैर फँसा तो वह उपर नहीं आता और डुबकर उसका अंत होता है। ऐसा उसने कहा, उसपर बाबांने किनारे के पास तैरने की अनुमती दी। तत्पश्चात सेवक लोग तैरने लगे।

       पास में ही एक जोडनांव थी, एक सेवक ने जोडनांव पाणी में ले जाने हेतु बिनती की। तब बाबाने कहा यदि नांव चलानी आती हो तो ले जाओ। तद्नुसार वह नांव बाबा की अनुमती से उसकी रस्सी छोडकर अंदर ले गये। उसमें पांच-छः सेवक थे। उस समय बाबा किनारे पर बैठकर ही स्नान करने वाले थे। इसलिये उन्होने सेवकों से कहा, मैं नांव पर नही आता। नाव थोडी देर पानी में जाने पर जिन्हे तैरना आता था वे फटाफट नाव से पाणी में कुद पडे। उसके बाद वहाँ श्री मोतीरामजी हरडे (दिवाणजी) नामक एक सेवक नांव मे बाकी थे। क्योंकी वे तैरना नही जानते थे, दिवाणजी को लगा की अब मैं नांव चलाऊँगा। वे नांव के बाये तरफ खडे थे। उन्होने पतवार उठाई और दाहिने और डाली।  पतवार पाणी में डालने से उनका संतुलन बिघडने से दिवाणजी दायी नाव में गिरे। यह दृष्य बाबा स्नान करते-करते देख रहे थे तब बाबांने कहा, दिवाणजी आपको नाव चलाने नही आती तो नाव में क्यों गये। बाबांको लगा वह पाणी में डुबेंगे इसलिये उन्होने बुज गडीरामजी डोनारकर इस सेवक से पुछा की तुम्हे तैरना आता है क्या? उसने हामी भरते ही बाबाने उसे आदेश दिया की, तुम तैरते हुए जाओ और उस नाव की रस्सी खींचकर किनारे पर लाओ और बांधकर रखो। तदनुसार उन्होने वह नाव लाकर किनारे पर बांधकर रखी। बाबां का स्नान होने पर उन्होने सभी सेवकों से कहा। आप सब लोग जल्दी नहाकर भोजन के लिये आए। तब तक मैं मुकाम की जगह पर जाता हुँ। तद्नुसार बाबा जाने लगे। उस समय वे पैरो में पादका (चप्पल) पहनना भूल गये थे। वह तालाब के किनारे पर ही रह गई थी।

         बाबा वहाँ से गये इसलिये कुछ सेवकों ने बाँधकर रखी नाव की रस्सी खोली। कुछ सेवक नांव में बैठकर कपड़े धोने लगे। लोहारा इस गांव का सेवक श्री. शामरावजी कार, इसने उस नाव को जोर से लाथ मारी, जिससे वह नाव गहरे पानी में गई और इधर कार का पैर फटा। श्री. श्रीराम भंडारबोरडीवाला वह पुनः तैरते-तैरते उस नांव तक गये और नाव को पकडकर वह नाव में चढ़ते समय वह नांव एक और झुकी। उसी वक्त नाव में जो लोग थे वे पानी में फटाफट गिरे। नाव जब सीधी हुई तब उस जोडनाव में संपूर्ण पानी भर गया था। किनारे पर के १५-२० सेवक जोर से चिल्लाने लगे की नाव पानी में डुब गइ। यह आवाज खाना पकानेवाली महिलाओं तक पहुँची। वहाँ धर्मपुरी इस गाव की सौ. चंद्रभागाबाई यह सेविका थी। उसने ज़ोर से कहा, बाबा के रहते नाव नहीं डुब सकती। उस बाई में बाबा की कृपा बाबत कितना आत्मविश्वास था वह दिखता है। बाबा तब तक तीन चार सौ कदम चले आये थे। उनके भी कानों में चिल्लाने की आवाज आयी, उसी । समय उनके पांव में कंकर चुभने लगे, उनके ध्यान में आया की मैंने पैर में पादुका नह पहनी है और मैं वह तालाब के किनारे ही भुल गया हूँ। बाबांने मन में विचार किया की भगवंत, क्या किया इन सेवकोंने? बाबांके शब्दों पर अमल(पालन) न करने से इन सेवकों पर आपत्ती आई थी लेकीन उस स्थान पर बाबा की पादुका होने से उस संकट पर  मात हुई थी।

       बाबा पादुका पहनने के लिये वापस तालाब के किनारे आये और तालाबपर का  दृष्य उन्होने देखा। उस समय नागपूर के सेवक श्री. लक्ष्मणराव उराडे यह अकेले ही उस  जोड़नांव के दो-भाग में दोनो पैर रखकर खडे है। संपूर्ण नांव पाणी से भरी हई है फिर भी वह पाणी पर तैर रही है ऐसा दिखा। बाबां के पास में कुछ सेवक खडे थे. उन्हें कहा, यह आपने क्या किया? आप सेवको को बताने के बावजुद आप बाबांकी नहीं सुनते और ऐसी घटनाएँ आप लोग बाबां को दिखाते है। तब उन सेवकों ने बाबां को संपूर्ण हकीकत बयान की। तत्पश्चात् बाबांने संपूर्ण पुछताछ की, कितने सेवक नाव में थे ] कितने सेवक तैरकर बाहर निकले? और कितने अंदर डुबे है। पुछताछ के बाद पता चला की सब लोग बाहर निकले है, लेकीन गोपिचंद तुपट इस सेवक को तैरना नही आता था। इस लिये वह अंदर ही है। उसे निकालने के लिये संपत शेरकी पाणी में गया। संपत शेरकीने गोपीचन्द को किनारे पर लाया। बाबां के पास में मांदरी इस गांव का कचरू नामक सेवक खडा था। उसे बाबांने पुछा, तुम्हे तैरना आता है क्या? उसने हामी भरते ही बाबांने उसे आदेश दिया की पानीसे भरी नांव की रस्सी पकडकर किनारे पर लाओ। तदनुसार बाबांके आदेश का पालन कर उसने उस नाव को तैरते हुए किनारे पर लाया। उसके साथ ही श्री. उराडे भी किनारे पर आये। सब लोक बाहर आने पर बाबाने उन्हे पुछा की यह सब कैसे हुआ? उस पर उन्होने निम्नानुसार हकीकत सुनायी।

          प्रथम उराडे साहब ने कहा नाव पलटी होते ही मैं नाव को कसकर पकडे रहा। नाव में संपूर्ण पाणी भरने पर वह सीधी हुई। और मैं खडा हुआ। सोचा की मुझे तैरना नही आता इसलिये मैं कुद नही सकता। नाव में पूरा पाणी भरने से वह नाव डुबेगी अथात् दोनों  क्रियाओंमें मुझे मरना ही है। जीवित रह नही सकता। तब मैंने भगवंत से प्रार्थना की और कहा, "मरे या जिये भगवत् नामपर। बाबा हनुमानजी आप मुझे मारो या तारो में आपके शरण में हूँ।" ऐसी याचना कर रहा था।"जाको राखे साईयाँ मार सके ना कोय" इस  कहावत अनुसार वास्तविक रुप में भगवंत ने श्री. उराड़े को जीवनदान दिया। नाव पानी से भरकर भी डुबी नही। वह पानी में तैरने लगी। अर्थात भगवंत ने उस नाव को नीचे । से टेका दिया था। यह सिध्द होता है, और यह कितना बडा साक्षात्कार है की नाव में पानी भरने के बावजूद भी उसका न डुबना, धन्य हो आप भगवंत। नाव किनारे पर आने के बाद बाल्टी से उस नाव से पानी निकाला गया और रस्सी से किनारे पर बांधकर रखा गया।

         दुसरी घटना में श्री. संपत शेरकी बताते है की-गोपीचंद जिस और पानी में गिरा इसी ओर वह भी गिरा और उसे लाने का प्रयास किया। लेकीन गोपीचंद ने संपत को पानी में ही खीच लिया। जिससे उसे तैरने में दिक्कत होने लगी और उसे पानीपर हाथ मारना मुश्किल हुआ। तब उसके मन में आया की मैं अब डुबुंगा और यह भी डूबेगा इसलिए संपतने भगवंत को बिनती की, भगवान बाबा हनुमानजी आप मुझे इस परिस्थिती से बचाओ। मैं अब मरनेवाला हूँ। तब परमेश्वरने उस पर भी कृपा की। उसके दोनों हाथ खुले हुए और उसने अपने दोनो हाथ पानी में चलाये और वह उपर आया। हाथ पानी में मारते ही संपत के हाथ में गोपीचंद की धोती आयी। वह धोती पकडे तैरते-तैरते किनारे पर आया और उसने गोपीचंद को अपने साथ खिंचकर किनारे पर लाया। इस प्रकार सब लोग जिवीत एवं कुशलता पूर्वक तालाब के बाहर निकले। धन्य वह परमेश्वर! उस जगह बाबाके पादुका के रुप में भगवान खडे थे। उन्होने इन सब सेवकों कों उस बिकट परिस्थिती से मुक्त किया तत्पश्चात सभीने "भगवान बाबा हनुमानजी की जय। समर्थ बाबा जुमदेवजी की जय। परमात्मा एक। सत्य, मर्यादा, प्रेम कायम करनेवाले, अनेक बुरे व्यसन बंद करनेवाले मानव धर्म की जय।" ऐसा हर्षोल्लास से जयघोष किया। वन विभाग का चौकीदार भी उस समय वहाँ उपस्थित था। उसने कहा, इस तालाब में जो कुदता है वह उपर नही आता। वही मारता ही है। लेकीन आप सब लोग सही सलामत कैसे उपर आये? यह आपके गुरु आपके साथ रहने से उन्ही की महिमा है। यहाँ ढिवर मछली नही पकडते। वे डरते है लेकीन आपकी हिंमत और आपके गुरु ने दी हुई अनुमती इससे सचमुच भगवान आपके पास है यह प्रमाणित होता है। तत्पश्चात सब लोग भोजन की जगह आये। सभी ने भरपेट भोजन किया।

        सभी के खुशी का ठिकाना नही था। (सभी अति आनंदित थे।) सब लोगोंने बाबा से कहा, "बाबा आज हम इस परिस्थिती से नही बचते तो क्या हुआ होता ? कितनी बड़ी घटना घटी थी।" और सभी सेवक बाबा के समक्ष नतमस्तक हुए। तत्पश्चात सभी ने बाबांको शब्द दिया की, यह प्रसंग बाबांकी न सुनने के कारण उनके शब्दों का अनादर करने से घटित हुआ। इसके आगे भविष्य में बाबा के शब्द हमेशा अमल में लायेंगे। ऐसा सत्य वचन उन सभी ने दिया। बाबांने उन सभी को क्षमा किया। भोजन सम्पन्न होने पर सामान को समेट कर मंगरली इस गांव में शाम को सभी सेवक कुशलतापुर्वक वापस आये।

          उपरोक्त घटना से यह प्रमाणित होता है की, बाबा के रूप में परमेश्वर सदैव सर्वत्र होता है। सभी सेवकों ने उनके शब्दों का आदर करना चाहिये। परमेश्वर बाबांकी पादुका के रुप में भी उपस्थित होता है। बाबा परमेश्वर का रुप है यह"बसका बैल" अर्थात जानवर ने भी पहचाना।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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