Tuesday, May 12, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (९) "एक भगवंत का पहला गुण"

                  "मानवधर्म परिचय"

"मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर

              "मानवधर्म परिचय"पुस्तक

                            प्रकरण क्रमांक (९)

                    "एक भगवंत का पहला गुण"

               

प्रकरण क्रमांक:- (९) "एक भगवंत का पहला गुण"


      बाबाने एक भगवंत की प्राप्ती की। उसके बाद वे करीब -करीब तीन माह तक विदेह अवस्था में थे। वे परमेश्वर में विलीन हुये थे। रंगारी समाज की शांताबाई के शरीर में आनेवाले भूत-पिशाच बहुत प्रयास करने पर भी बाबांने उसके शरीर में आने वाले भूत को समाप्त नही कर पाये। उसे समाधान दे न सके। आखिर बाबा हनुमानजी की प्राप्ती करने के बाद भी बाबा को उस बाई के शरीर से भूत निकालना साध्य नहीं हुआ। परमेश्वर मानव के किसी भी प्रकार के दुःख दूर कर सकता है। सद्भावना से उसी की शरण में जाना आवश्यक है। यह ध्यान में रखकर उस महिला को पूर्णतः समाधान देने के लिये बाबा हनुमानजी के पास प्रतिज्ञा की, की उसके बाद जीवन में मैं किसी भी देव (दैवत)
को नही मानुँगा। उसके पश्चात उस महिला शांताबाई को उसके दु.खो से बाबांने मुक्त किया। बाद में बाबाने वह दुःख दूर करनेवाली शक्ती की खोज करने की शुरुवात की और बाबांने एक भगवंत की प्राप्ती की ।

         उसी शांताबाई के घर में इन्ही तीन माह की कालावधी में बाबा निराकार अवस्था में होकर भी पुनः दुख आया। एक दिन इस महिला की सास बाबा के घर रोते-रोते अपना दुख लेकर आयी। बाबा घर में न होने के कारण वह बाबा के कनिष्ठ बंधु श्री. मारोतराव इनके यहाँ गयी और रोने लगी उस समय बाबा उनके जेष्ठ बंधु बाळकृष्णाजी के घर में बैठे थे। उसे रोते देखकर मारोतरावजी का मन पसीजा। वे बाबा को यह बताने गये और उन्होने बाबांको बिनती की की, "बाबा एक महिला रोते हुये आयी है। बहुत रो रही है। लगता है बहुत बड़े संकट में फंसी है आप चलिये।" तब बाबाने उन्हे कहा की, "ठीक है मैं आ रहा हूँ। तुम उस बाई को बगल में खड़े रखना ताकी उसकी छाँब हमपर न पडे।" कारण बाबा निराकार अवस्था में होने पर परमेश्वरने उन्हें ऐसी जागृती दी थी की "सेवक पर किसी भी महिला की छौँव न पड़े वरना वो जिंदा नही रहेगा।" तद्नुसार मारोतरावने उस स्त्री को बगल में खड़ा किया। बाबा घर आये और अपने आसन पर बैठे। 

          बाबा घर में आने पर उन्होंने महिला से पुछा की "कहो बाई आप कैसी आयी? क्यों रो रही हो? तब उस बाईने बाबा को बिनती की की, "बाबा आप जान लो में क्यो रो रही हूँ। आप बाबा है।" बाबा कुछ भी नही बोले। उस समय बाबा निराकार अवस्था में थे। वे परमेश्वर मे विलिन थे। इसलिए बाबा उस बाई की अवस्था जानते थे। कुछ समय के पश्चात बाबां के मुखकमल से निम्नानुसार वाक्य (वार्ता) निकले, बाबा ने कहाँ।
"नाथ गोरख, हाजिर हो जाओ।"
"हाजिर बाबा।"
জ जाओ, यमराज को बुलाकर लाओ।
"चला बाबा।"
तत्पश्चात दस मिनट वे स्तब्ध रहे, उसके बाद पुनः बाबाने कहा,
"यमराज आ गये।"
 "हाँ बाबा मैं आ गया"।
 "देखों यमराज, उस बच्चे के गले में फाँसा डाला है, उसे निकालो नहीं तो तेरे साथ तेरी यमपुरी उल्टी कर दूँगा।"
"नहीं बाबा, मैं अभी उस बच्चे के गले का फाँसा निकालता हूँ"।
"नही, तुम पहले जाओ, उसे निकालो, तू बेईमान है।"
"नहीं बाबा, आप मेरे साथ मेरी यमपुरी उलटी कर दोगे मुझपर विश्वास किजीये बाबा। मैं अभी फाँसा निकालता हूँ।
"तुम अभी जाओ और उसका फाँसा जल्दी निकालो।"
"चला बाबा"

       तत्पश्यात बाबा थोडी देर रुके, चारो ओर शांती थी। कुछ समय बाद बाबाने उस बाई से कहाँ। "बाई तुम्हारा बच्चा ऊठकर बैठा है। उसे अभी ले आओ।" उस महिला का रोना बंद हुआ। उसने बाबा को नगस्कार किया और वह हँसते हँसते घर गई। और आश्चर्य यह की, सच में उस शांताबाई का लडका उठकर बैठा था उसे बहुत समाधान हुआ। वह बाई उस लडके को (पोते को) लेकर बाबा के यहाँ आयी। दूर से ही उसने बाबा के दर्शन किये। इस प्रकार एक परमेश्वरने उस बच्चे को मौत के मुँह से बाहर निकाला। यह पहला अनुभव इस एक परमेश्वर ने प्रथम उस घर में ही दिया। इसी तरह बाबांने केवल पिडीत और दुःखी लोगों के दुःख दूर करने के लिये एक भगवंत की प्राप्ती की।

नमस्कार...!


लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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