"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (२१)
"अभागी को भाग्यप्राप्ती"
प्रकरण क्रमांक:- (२१) "अभागी को भाग्यप्राप्ती"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजींने प्राप्त की हुइ परमेश्वरी कृपा का लाभ अनेक सेवकोंने विभिन्न प्रकार के दुःख नष्ट करने हेतु किया । शारिरीक दुःखो के साथ ही उनके मानसिक , आर्थिक एवं सामाजिक दुःख भी नष्ट हुए । इसके अलावा अन्यों को विभिन्न प्रकार के योग प्राप्त हुए है । बाबा स्वयं परमेश्वर में विलीन हुए है उनके मुखकमल से जो वाणी ( शब्द ) निकलती है तद्नुसार हर एक को योग मिलता है । और वह अपना भाग्य बनाता है । ऐसे ही एक अभागी ने इस मार्ग में आकर अपना भाग्य बनाया है । उस अभागी का नाम है श्रीमान हरीभाऊ कुंभारे ।
श्रीमान हरीभाऊ कुंभारे , यह जुनी मंगलवारी , नागपूर यहाँ रहते है । उनकी दो पत्नियाँ है । उनका दुर्भाग्य की पहली शादी के पश्चात पुत्रप्राप्ती ना होने के कारण उन्होने दुसरी शादी की लेकीन वहाँ भी वे असफल रहे । उन्होने पुत्रप्राप्ती के लिये बहुत कोशिश की लेकीन योग नहीं मिला । यह कर्मभोग का हिस्सा है तब वह परिवार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के यहाँ आये और बिनती करने लगे । तब बाबांने उन्हे बताया , ' ' आप अभागी है , आपको हमारे मानव धर्म का स्वीकार करना होगा तभी आपका भाग्य उदयमान होगा । ' ' उसपर हरिभाऊने बाबां को मार्गदर्शन करने की बिनती की । बाबांने संपूर्ण मार्गदर्शन कर अनेक देवताओं की पुजा बंद करके एक ही भगवान बाबा हनुमानजी को मानना होगा तथा परिवार में सत्य , मर्यादा , प्रेम से व्यवहार को मानना होगा यह बताकर उनसे वैसा वचन लिया । उन्होने इस मार्ग में आने के लिए की जानेवाली ४१ दिन की साधना प्रारंभ की । साधना पुरी करते समय में पालन करने हेतु कुछ शर्ते बतायी , साधना पुर्ण होने पर ४२ वे दिन कार्य की समाप्ती कर हवन कार्य धुमधाम से पुर्ण हुआ । और ४३ वे दिन से बाबा हनुमानजी के नाम से वह माला जपने लगे ।
सामान्यतः चार वर्ष पश्चात ; बाबा हनुमानजीने उनके सपने में एक साक्षात्कार दिखाया , उन्हें सपने में दिखा की अपने घर में एक छोटासा बालक लगभग सात - आठ माह का होगा । वह घुटनों पर रेंगते हुए आया और उसकी पत्नी का दुध पिकर आंगण में खेलने गया । हरिभाऊने यह घटना बाबां को समझाकर बतायी तब बाबा जुमदेवजींने बताया , परमेश्वर को आगे क्या घटित करना है वह आप देखो ।
सौ . वत्सला सदावर्ती यह गोलीबार चौक , नागपूर में रहती है । वह हरिभाऊ की छोटी बहन है । उसे संतान होती थी लेकीन वह पैदा होते ही थोडे समय में ही ईश्वर को प्रिय होती थी । इस तरह तीन संतान के मरणोपरान उन्होने संतान न जाए इसलिये प्रयास किये लेकीन दुःख दूर नहीं हुए । महानत्यागी बाबा जुमदेवजी व्दारा स्थापित " मानव धर्म के प्रथम सेवक श्रीमान गंगारामजी रंभाड यह उनके पडोस में ही रहते थे । वह उनके घर आयी और अपनी व्यथा उन्हें बतायी । इस मार्ग के बारे में उसे कुछ - कुछ जानकारी थी । तब उस सेवक ( गंगारामजी रंभाड ) ने उसे बाबा हनुमानजी की फोटो के पास अगरबत्ती लगाकर अपनी मनोकामना बताने को कहा । आगे परमेश्वर क्या घटित करता है वह देखो , ऐसा उन्होने कहा , तदनुसार उसने ( बाई ) कार्य किये ।
" भगवान के पास देर है , अंधेर नही । " इस कहावत के अनुसार उस बाई की मनोकामना पूरी हुई उसे पहले लड़की और दुसरा लडका बिना तकलीफ के हुए । वह तिसरी बार गर्भवती हुई लेकीन इस बार उसे गर्भावस्था में बहुत तकलीफ हो रही थी डागा मेमोरियल अस्पताल जाकर औषधोपचार किया , लेकीन वहाँ भी तकलीफ नष्ट नहीं हुई , उलटे दिनोंदिन तकलीफ बढती ही गई । एक समय ऐसा आया की उसने आत्महत्या करने की सोची । लेकीन दोनो संतान अनाथ होगी , यह विचार उसके मन में आया । ऐसा विचार करते वक्त उसे फिर से बाबा हनुमानजी की याद आयी । और एक दिन सबेरे ही वह बाई स्नान करके महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवास स्थान पर बाबा को मिलने गई । उस समय बाबा घर पर नही थे । इसलिये वह बाई बाबा हनुमानजी के फोटो के सामने बैठी और अगरबत्ती लगाकर उसने भगवंत को बिनती की , की भगवान इस गर्भावस्था में बहुत तकलीफ हो रही है मुझे इस दुःख से मुक्त करों । मुझे जो संतान होगी वह आपके चरणों में अर्पण करूंगी । " उस समय वह इस मार्ग की सेविका थी । उसके दुःख नष्ट हुये । इस समय वह सात माह की गर्भवती थी । उसने भगवंत ये ऐसी बिनती की यह उसने घर में किसी को नही बताया । वत्सलाबाई की मनोकामना पूर्ण हुई । परमेश्वर उसके शब्द ( वचन ) सुनकर उसे तकलीफ से मुक्त किया । क्योंकी महानत्यागी बाबा जुमदेव ने जिस एक भगवान की प्राप्ती की है । वह परमेश्वरी कृपा जागृत है । नौ माह पूरे होने पर उसने एक प्यारे ये पुत्र को जन्म दिया । दिनोदिन बढते हुए वह आठ माह का हुआ । एक दिन रेंगते हुए वह सिढीयों से नीचे गिरा और उसके पैर में चोट आयी । बहुत औषधोपचार किया । लेकीन दुःख दूर नही हो रहे थे । तब वत्सलाबाईने अपने घर के लोगों को बताया की पुत्र को मैं भग्वान को अर्पण करूँगी । ऐसा उसे वचन दिया है । ये पुत्र अपना नही । वह भगवंत का है । इसलिये उसे भगवान के चरणों में अर्पण करना ही एकमात्र उपाय है , तभी उसके दुःख दूर होंगे । तब घरके लागों ने उसे रोका , वे कहने लगे । भगवंत को शब्द दिया , इसलिये क्या कलेजे के टुकडे को बहा देते है क्या ? लेकीन उस बाई का निश्चय पक्का था । उसका यह विश्वास था की अर्पण किये बिना दुःख दूर नहीं होंगे ।
उसने घर के लोगो को वह ताकीद दी की मैं बाबा जुमदेवजी के यहाँ जाती हूँ और उन्हें संपूर्ण हकीकत बताती हूँ। वह जैसा मार्गदर्शन करेंगे उसके अनुसार मैं आगे कार्य करूंगी ।
सौ . वत्सलाबाई उस लडके को लेकर बाबा के निवासस्थान पर आती। बाबा को उसने संपूर्ण हकीकत बतायी । , तथा परमेश्वर को दिया वचन उसने पूरा नहीं किया यह गलती स्वीकार की।बाबाने शांततापूर्वक उसका कहना सुना और बाबाने उसे मार्गदर्शन किया की, "बाई यह पुत्र तुम्हारा नहीं। तुम्हें ऐसा वचन देने के लिये किसने कहा?"उसने जवाब दिया, "बाबा मुझे बहुत तकलिफ हो रही थी।मै वह सहन नहीं कर पा रही थी। मुझे किसीने भी नही बताया।" तब बाबाने कहा, "ठीक है, तुम भगवंत को पुत्र अर्पण कर दो।" बाईने कहा, "बाबा आप कहेंगे उस दिन पुत्र अर्पण करुंगी।" उस समय बाबांने उससे एक शर्त रखी की. "मैं पुत्र दान लूंगा। लेकीन दोनो आँखों में आसू का एक भी बुंद नही लाना। हंसते हुये दान देना होगा। ऑसूका एक बुंद भी यदि आँख में नजर आया, तो मैं दान नही लूँगा। तद्नुसार बाईने शर्त स्विकार की और बाबांने उसे तिसरे दिन शाम को उस बच्चे को लेकर आने को कहा।
निर्धारित दिन शनिवार था। उस दिन १९७० साल की जनवरी माह की ३ तारीख थी। निर्धारित दिन निकला। बाबांने एक सेवक के मार्फम २५-३० सेवक एवं श्री. हरिभाऊ कुंभारे को सहपरिवार बुलाया। शाम ७ बजे सभी उपस्थित हुए। सौ.वत्सलाबाई सदावर्ती भी अपने आठ माह के बच्चे को लेकर समय पर आयी। भगवंत को सभीने एकता से प्रणाम किया। और आनंदमय कार्य की शुरुवात हुई।
सौ. वत्सलाबाई ने अपने बच्चे को भगवान बाबा हनुमानजी की प्रतिमा के समक्ष लिटाया, अगरबत्ती लगाई, कपूर लगाया और भगवान बाबा हनुमानजी को विनंती की, की बाबा हनुमानजी मेंने आपको वचन दिये अनुसार आज बच्चे को अर्पण कर रही हूँ। यह मेरा बच्चा नहीं है वह आपका है। उसे आप स्विकार करें। ऐसा कहकर उसने बच्चे
को अर्पण किया। कपूर बुझने पर उसने उस बच्चे को उठाया और बाबा जुमदेवजी के सामने वह खडी हुई। बाबा निरंतर उसकी आँखो की ओर देख रहे थे। उस बाईने सहर्ष उस बच्चे को बाबा जुमदेवजी को दान किया। उसकी आँखों में आसू का एक बुंद भी नहीं आया। उसी समय बाबांने उस अभागी को वह दान दिया। परमेश्वरी लीला अगाध (अवर्णनीय) है उसे जो घटित करना था, वह उसने घटनाक्रम के व्दारा घटित किया।
आश्चर्यजनक बात यह की, जिस समय हरिभाऊने उस बच्चे को अपने हाथ में लिया उसी समय उन्होने उस बच्चे को अपनी छोटी पत्नी के पास दिया और साक्षात्कार हुआ की, उस महिला ने बच्चे को हाथ में लेते ही उसके स्तन से दुध बाहर आने लगा। यह वहाँ आये हुए सेवकों ने देखा और वत्सलाबाई का दुध सुख गया। यह भगवंत की लीला
देखकर सभी सेवक आश्चर्यचकीत हुए। इसलिये बाबाने प्राप्त की हुई एक परमेश्वर की कृपा जागृत है। विशेष बताने वाली बात यह की इस दान दिये गये बच्चे का चेहरा वत्सलाबाई के दोनों बच्चों के चेहरे से अलग है। वत्सलाबाई के दोनो बच्चे उसके चेहरे अनुरुप है और यह तिसरा बच्चा हरिभाऊ के चेहरे अनुरुप है धन्य है वह परमेश्वर।
इस प्रकार बाबाके मार्गदर्शनानुसार चलनेवाले सेवकों की इच्छा परिपूर्ण होकर उसके जीवन में समाधान मिलता है। लेकीन उसके लिये एक परमेश्वर को सामने रखकर मानवता के कार्य करना चाहिए। मतलब इस कलियुग में भी सतयुग का अंश है यह उपरोक्त बातों से सिध्द होता है। इस प्रकार इस मार्ग में अभागी को भाग्य प्राप्ती होती है।
यह सिध्द हुआ है।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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