Saturday, May 23, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (२७) "ज्ञान पररस् मररस् योगी"

              "मानवधर्म परिचय"

"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



            "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                प्रकरण क्रमांक (२७)

            "ज्ञान पररस् मररस् योगी"


प्रकरण क्रमांक:- (२७) "ज्ञान पररस् मररस् योगी"


           सन १९८३ की घटना है। महानत्यागी बाबा जुरमदेवजी उस दिन अपने निवास स्थान पर रात को अपने आसनपर सोए थे। नींद में उन्हें साक्षात्कार दिखा। उस में उन्हें कोई भी व्यक्ती अथवा कोई भी वस्तु नही दिखायी दी। उन्हें मात्र बडे-बडे अक्षर लिखे हुए दिखे। उनके मुख से निरंतर वही-वही शब्द बाहर निकल रहे थे। वे शब्द थे, "ज्ञान पररस मररस योगी"। करीब करीब आधा घंटे तक वे ये शब्द पढ़ रहे थे उसके बाद उनकी नींद खुली। उसके बाद भी उनके मुख से वही शब्द बाहर निकल रहे थे इसलिये बाबाने डायरी में उसी समय उन शब्दों को लिख लिया। ये शब्द यद्यपी उन्हें प्रत्यक्ष में दिखे फिर भी वे शब्द परमेश्वर ने ही उनके मुखकमल से बाहर निकाले थे।

        उस पर बाबांने गहन विचार किया और बाद में वे सबको बताने लगे की, जिस तरह परिस नाम की वस्तु का, लोहे को स्पर्श होने से वह लोहा सोना बनता है। उसी प्रकार ज्ञान यह परिस के समान है। इस ज्ञान को जो स्पर्श करेगा वह सोना बन जाएगा। अर्थात वह महानज्ञानी बनता है। लेकीन मानवी जीवन में दैशीशक्ती के लिये मन की एकाग्रता, एक चित्त, एक लक्ष, एक भगवान इसकी अति आवश्यकता है। यही दैवी शक्ती का उगमस्थान है। परमेश्वर को सामने रखकर बाबांने दिये हुए, "मरे या जिये भगवत् नामपर" इस तत्वानुसार परमेश्वर के नाम पर मरने पर भगवंत भक्त के पीछे खडा होता है, और परिस जैसा रस तैयार होकर वह ज्ञानी बनता है। यदि वह मरा नहीं तो रस तैयार नहीं होगा। इसलिये मनुष्य मरने पर ही उसका रस तैसार होता है और रस बनने पर वह व्यक्ती योगी समान बनता है। यह इस मार्ग के सेवकों को प्रत्यक्ष अनुभव है। परमेश्वर के नामपर मरनेवाला व्यक्ती बाबां के दिये हये तत्व, शब्द, नियम से चले तो वह योग बनता है अन्यथा उसे कितना भी किताबी ज्ञान होगा फिर भी वह योगी नहीं बन सकता। उसे परमेश्वर का साथ होना जरुरी है। कर्तव्य से आत्मानुभव आता है। आत्मप्रचिती होती है. आत्मज्ञान बढ़ता है, तभी वह ज्ञानी पुरुष होकर योगी बनता है यह सिध्द होता है।

नमस्कार...!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


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