"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
प्रकरण क्रमांक (५)
"समय की महत्ता"
प्रकरण क्रमांक:- (५) "समय की महत्ता"
बाबा ने परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने पर भी उनके परिवार के लोग हिंदू धर्म में प्रचलित सभी देवों कों मानते थे। उनकी पूजा करते थे। सभी त्योहार मनाते थे, एकादशी, चतुर्थी इन दिनो में उपवास करते थे।
श्री. बाळकृष्ण एवं नारायणराव इनके घर ग्यारह दिन के हवन कार्यक्रम के दौरान भारतीय संवत् पौष माह शुरु था। इस हवन की कालावधी में ही वद्य चतुर्थी आयी थी वह १९४६ के जनवरी माह की बीस तारीख, रविवार दिन था। यह चतुर्थी हिन्दुओं में प्रमुख चतुर्थीयों में से एक मानी जाती है। वैदिक दृष्टीसे इस दिन का बडा महत्व है ऐसा समझा जाता है। इस दिन बाबा के परिवार की महिलाओं को उपवास था। हवन समाप्त होते-होते रात में बहुत देर हो जाती थी। सामान्यतः ग्यारह बजते थे। इसलिए घर के पुरुष मंडलीने बाबा से बिनती की, की आज स्त्रियों को निर्जला उपवास है और रात के
ग्यारह बजे हवन समाप्त होगा। जिससे उन्हे भोजन करने में बहुत देरी होगी। इसलिए हमारी ऐसी बिनती है की, पहले भोजन करके फिर हवन में जाये इससे स्त्रियों को परेशानी नही होगी। बाबांने उनका कथन शांततापुर्वक सुन लिया एवं स्वयंही ऐसा विचार किया की भगवान की पूजा बाद में भी की, तो क्या फर्क पडेगा। परमेश्वर को पसंदीदा कार्य करना यही सच्ची परमेश्वर की आराधना है। ऐसा मन में सोचकर उनकी बिनंती को उन्होने अनुमती दी। सायंकाल में भोजन समाप्ती के पश्चात हवन कार्य करने वे अपने जेष्ठ बंधु के यहाँ गये। उन्हे हवन प्रारंभ करने में वस्तुतः बहुत देर हुई थी।
हवन समाप्त कर बाबा घर आये। बाबा का आराम करने का एक अलग ही १६ X३० का कमरा था। उस कमरे में बाबा अकेले सोते थे। हमेशा की तरह बाबा मन में कुछ भी विचार न लाते कमरे का व्दार बंद कर के सो गये। सामान्यतः अर्ध रात्री पश्चात एक- दो बजे के आसपास बाबा चोर-चोर कहकर जोर जोर से चिल्लाने लगे। उनकी आवाज सुनकर पास ही कमरे में सोनेवाले लोगों की नींद खुली सभी पुरुष लोग जाग गये। वे बाबा के कमरे की ओर दौड़ते आये और देखा की कमरे का व्दार बंद है। और बाबा नींद में जोर जोर से चिल्ला रहे थे उन्होने बाबा को जगाया और पुछा की चोर कहाँ है। कमरे का दुसरा दरवाजा था। उस ओर जाकर देखा तो वह व्दार भी बंद था। उन्होने बाबा से पुछा,"आप चोर-चोर क्यो चिल्ला रहे है?" यह सुन बाबा समझ गये की वे सपने मे थे। अपने यहाँ कोई भी चोर नही आया। इससे पहले वे सपने में ही बडबडाये की, मैने अपने दाहिने पंजे में चौर को पकड रखा है। वह पंजा कसकर पकडे हुए पेट पर है, वह भागने को छटपटा रहा है, यह देखते हुए उन्हे घर के लोगों की आवाजें आयी, और वे उठ बैठे, उन्होने कमरे के चारों ओर देखा।
उन्होने घर के लोगों को वहाँ खडे पाया। इसके अलावा उन्हें कुछ भी नही दिखा। वे (बाबा) उन्हें बताने लगे की मेरे शरीर से बहुत से वानर भिडे हुए थे। मैं जिधर करवट बदलता उधर वे मेरे शरीर से दब जाते थे। उनमें से एक वानर जो प्रमुख लगता था वह मेरी पेट पर बैठा था। वे सब मेरे शरीर से खेलकर भागने की तैयारी में थे इसलिऐ मैंने उस मुख्य वानर का एक पैर दाहिने पंजे में कसकर पकडा वह भागने की बहत कोशिश कर रहा था। मुझे ऐसा लगा की यही बाबा हनुमानजी है और वह मुझे छोडकर जा रहे है। इसके अतिरिक्त उन्होने कुछ नही बताया और उन्हें अपने कमरे में वापस जाने को कहा. सभी लोग अपने-अपने कमरें में जाने के बाद बाबा आराम से सो गये।
दुसरे दिन बाबाने घर के सभी लोगों को इकठ्ठा बुलाया और उन्हें रात में घटित घटनाचक्र के बारे में सविस्तर बताना प्रारंभ किया।
कल रात खाना खाने के बाद हवनकार्य देर से शुरु किया। नित्य का निश्चित समय टल गया था। इससे बाबा हनुमानजी नाराज हुए थे। उन्होने मुझे सपने में दर्शन दिया। वे अपने व्दार पर आकर वही खडे रहे। तब मैं मेरे कमरें में सोया था। वे बोले. "मैं तेरे व्दार पर खडा हूँ। और तू खाना खा रहा है।" इतना कहकर वे वानर सेना लेकर मेरे शरीर से भिडे और उस वानरसेना के साथ मेरे शरीर से खेलकर वे चलते बने । तब मैंने बाबा हुनुमानजी के पैर पकडे और क्षमा मांगी। वह जाने की जल्दी कर रहे थे लेकीन मैने उन्हें छोड़ा नही इस पर मैंने पूरा सोच-विचार किया तो मुझे ऐसा लगता है की, परमेश्वर सही समयपर दौडकर आता है। हमारा निर्धारित समय यह उसका ही समय होता है। इसलिए समस्त कार्य समय पर करें। आज जो परिस्थिती उजागर हुई उससे परमेश्वरी कृपा से बहुत दूर जाना पड सकता था। मैंने उन्हें क्षमा मांगी और परमेश्वर को पास रखा है। तथापि आप सब इससे आगे इसका ध्यान रखें ऐसा परिवार जनों को उन्होने उपदेश किया।
इससे यह सिध्द होता है की समय का कितना महत्व हैं। हम हमेशा देखते है की बाबा अपने सभी कार्य समयपर करते है और समयसीमा का पूर्ण रुपसे पालन करते है, आओ हम भी इससे समय सीमा में बंधन का व्रत लें।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी" और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूँ।
नमस्कार..!
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ReplyDeleteनमस्कार जी सर्वांना. वेळेचे महत्व किती असते ते बाबानीं आपणास समजावून दिले. वेळ हे कोणासाठी थांबत नाही. परमेस्वर आपल्या वेळेनुसार येतो मदतीला. मानव वेळेसाठी थांबेल, परंतु वेळे हे मानवासाठी थांबत नाही, म्हणून विचार करून परमेश्वराचा व वेळेचा सदुपयोग करावे. नेहमीच बाबांच्या नियमानुसार जीवन जगावे. नमस्कार जी.
ReplyDeleteनमस्कार जी दादा
Deleteनमस्कार जी सर्वांना. वेळेचे महत्व किती असते हे आपल्या बाबांनी सांगितले आहे. परमेस्वर आपले कार्य वेळेनुसार करतो, त्यामुळे आपण सुद्धा वेळेला महत्व देवुन कार्य केले पाहिजे. तेव्हाच भगवंताच्या गुणांची प्राप्ती आपणास वेळेनुसार होईल. वेळ हे कोणासाठी थांबत नाही तर त्या वेळेसाठी आपणास थांबावे लागते. त्यामुळे वेळेचे बंधन पाळूनच काम केले पाहिजे. तेव्हाच भगवंताच्या गुणांची प्राप्ती आपणास होईल. नमस्कार जी.
ReplyDeleteबरोबर आहे दादा धन्यवाद जी 🙏
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