"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (१२)
"मानवधर्म का उगम"
प्रकरण क्रमांक:- (१२) "मानव धर्म का उगम"
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में पचमढी तहसील है यह पर्यटन स्थल ठंड वातावरण के लिए प्रसिध्द है। इस तहसील का संपूर्ण भाग सतपुडा पर्वतमाला से घिरा हुआ है। इनमे से एक पहाडीपर महादेव का पवित्र देवस्थान है। हिन्दू धर्म के कई लोगों के देवता के नाम से प्रसिध्द है। उस पहाड़ी पर हर साल दो बार मेला लगता है। इसमें से महाशिवरात्री का मेला बहुत बडा होता है। यहाँ आनेवाले यात्री श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनायें वहाँ पूरी होती है ऐसी मान्यता हैं। यहाँ आनेवाले दर्शनार्थियों मे से कुछ लोग मनौती (नवस) करते है। कुछ मनौती समाप्ती करते है। तो कुछ लोग कुलदेवता मानकर प्रत्येक वर्ष आकर पुजा-अर्चना करते है। इस मेले में जाने वाले लोग शंकरजी के भक्त होते है इस समय दर्शनार्थी नये वस्त्र धारण करते है पैरों में पदत्राण (जुता चप्पल) नही पहनते, दाढी, जटा बढाते है, कुछ लोग बडे-बडे त्रिशुल लेकर जाते है। बहुतांशतः भक्तो का वेष घारण करते है।
महानत्यागी बाबा जुमदेवर्जीने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद १९४९ में इस मेले में जाने का निश्चय किया। जाते समय बिना नये वस्त्र पहने सादे मनुष्य जैसे यात्रा करे, जाते समय किसी भी देवताको नमस्कार न करें। सिर्फ एक परमेश्वर की ही पुजा करें और इस पर्वतीय स्थल के मात्र नैसर्गिक टृष्यों का आनंद ले, ऐसा निश्चय कर बाबा, उनके दो बंधु श्री. नारायणराव एयं मारोतराव, उनका भतिजा केशवराव तथा प्रथम सेवक गंगारामजी रंभाड ऐसे पांच लोग यात्रा में जाने के लिये निकले। उन्होने अपने साथ फलाहार आदि सामान लिये थे। जाते समय उन्हें इस प्रकार चमत्कारिक अनुभव आया।
यात्रा के लिये घर से निकलने पर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी और गंगारामजी रंभाड इनकी चैतन्य आत्मा से फूं-फूं आवाज निकलती थी उन्हें राह से जाते देखकर ऐसा लगता था की, मच्छिंद्रनाथ और गोरखनाथ इनकी जोडी जा रही है। वे गोलीबार चौक में आये तब बाबांके सामने एक महिला अस्त-व्यस्त रुप लेकर नाचते-नाचते, आ-आ करते आयी और उसने उनका रास्ता रोका। तब बाबांने गंगारामजी को आदेश दिया की "फुंक मारो" तदनुसार उन्होने एक भगवंत के नाम के मंत्र से (बाबा हनुमानजी) फुंक मारी उसी क्षण वह महिला नीचे गिरी और रास्ता साफ हुआ। तत्पश्चात बाबा इतवारी रेल्वे स्टेशन पर आये और वहाँ से रेल मार्ग से जुन्नारदेव को जाने के लिये रवाना हुये।
गाडी में यात्रा को जाने वाले लोगों की बहुत भीड़ थी। उनमें पुरुष महिला एवं छोटे बच्चे भी थे। बाबा के भाई गाडी में उस डिब्बे से उस डिबबे में घूम रहे थे। वे उन्हें डिब्बों में यात्री बुखार से तड़पते दिखे। वे उन्हें छुकर उनका बुखार देख रहे थे और बाबा के पास आकर उन्हें उनकी दयनीय अवस्था के बारे में बताते थे तदनुसार गंगारामजी को आदेश देते की,"जो बुखार से तडप रहे हैं, उन्हें थप्पड मारो।। गंगारामजी बाबांके आदेशों का पालन करते थे। बुखार होनेवाले लोगों को थप्पड मारते है। उनका बुखार नष्ट होता था और आश्चर्य यह की संपूर्ण यात्रा के दौरान उन्हें फिर से बुखार नही आया। उन सभी की यात्रा सुखमय हुई। जुन्नारदेव में पहुँचकर बाबा और सभी ने उस दिन आराम किया।
दुसरे दिन सब लोग पहाडी (गढ़) पर जाने निकले। सामान ढोने के लिए एक कुली लिया था। उन पांच लोगों के सामान का बोझा बहुत ज्यादा था। इसलिए वह अकेला सिरपर ढोकर नही ले जा सकता था। तब बाबाने गंगारामजी को आदेश दिया की "सामान पर फुंक मारो," फुंक मारते ही उसके सिरपर का बोझा एकदम हलका हुआ। उस कुलीने बाबां को सामान का बोझ हलका होने बाबत बताया। वह दौडते दौड़ते पहाड की सिढियाँ चढने लगा और उसने पहाडपर सामान पहुँचा दिया।
रास्ते में एक स्त्री अपने चार छोटे-छोटे बच्चों को लेकर रास्ते के बाजू में बैठी थी वह बहुत रो रही थी। आने-जाने वालों को वह सहायता के लिये पुकारती थी। वह रों-रों कर बेहाल हुई थी। लेकीन पहाड पर आने-जाने वाले लोग उसकी ओर ध्यान नहीं देते हुये अपनी ही धुन में जा रहे थे वे उसकी ओर ध्यान नहीं देते थे। यह दृष्य बाबाको रात करीब बारह बजे पहाड चढते समय दिखा। बाबा वहीं रुके और गंगारामजी को आदेश किया की वह बाई क्यों रोती है यह पुछो। बाबाके आदेश का पालन कर वह उस स्त्री के पास गये और उसे रोने का कारण पुछा, तो वह स्त्री कहने लगी। मैं बहुत देर से सभी को पुकार रही थी। लेकीन मुझे कोई भी मदद नही कर रहा। मेरे चारों बच्चे बुखार से तडप रहे है। मेरी परिस्थिती बहुत खराब है, आप मेरी सहायता करें, ऐसा उसने अनुरोध किया। गंगारामजींने वापस आकर उस महिला के रोने का कारण बाबा को बताया। तब बाबांने उनको बताया की, "उन सभी बच्चो के गाल पर थप्पड मारों।" तद्नुसार उन्होंने उन सभी को थप्पड मारते ही वे सब उठ खडे हुये। उन सभी का बुखार नष्ट हुआ, उपरोक्त सभी कार्य बाबाने गंगारामजी को एक भगवत के नाम से यानी बाबा हनुमानजी के नाम से करने को कहाँ और शंकरजी (महादेव) के नामसे कोई भी कार्य न करे ऐसा स्पष्ट निर्देश दिया। तत्पश्चात बाबा पहाडपर पहुँचे। वहाँ वे मंदिर में न जाकर बाजू में ही एक तरफ एक परमेश्वर की ज्योत लगायी। इस प्रकार बाबांको एक भगवंत का अनुभव मिला। उन्होने परमेश्वर को नही देखा। परंतु उनकी चैतन्य आत्मा से जो शब्द निकले वे उन्होने अनुभव किये और पहाडों पर घुमकर नैसर्गिक दृष्य देखा।
बाबा पहाड पर से नीचे आने लगे तब उन्हें रास्ते मे देवाज्ञा(मृत) हुए लोगों के ढेर दिखते थे। वे आगे ना बढते हुए उन ढेरों के सामने खडे होकर उनके पार्थिव शरीरपर बाबा हनुमानजी के नाम से फुंक मारते और उन्हे मुक्त करते थे। वे जब पार्थिव शरीरपर फुंक मारते तब आकाश में बिजली के समान चमचमाते उडते जाने के दृष्य सब लोग देख रहे थे। इस प्रकार बाबांने सभी को मुक्त किया। यह सत्य ही भगवान की लीला थी, लेकीन बाबा मात्र माध्यम थे। यही सच्चा, इस देश में परमेश्वरने बाबाके (मानव के) हाथों से निर्मित "मानवधर्म" है, और वही इस मार्ग का "उगम" है।
गढ से नीचे उतरते समय बाबा एक भगवंत के गाने गा रहे थे तब अन्य लोगों द्वारा उन्हें गाना क्यों गा रहे हैं यह पुछने पर वे उत्तर देते की, वापस जाते हुए हम अपने साथ भगवंत लेकर जा रहे है। आप लोगों ने भगवंत को गढपर ही छोड़ दिया और खाली हाथ जा रहे हो इसलिए आप गाना नहीं गा रहे है। जत्रा में जाने वाले लोग नये वस्र पहनना, कपडे न धोना, दाढी, जटा बढ़ाना जैसी अनेक भावनाएँ रखते थे। लेकीन बाबा उपरोक्त प्रकार की किसी भी भावना को नही मानते थे और उन्होने वह सभी बाते नहीं स्वीकार की। तब अन्य लोग उन्हें बताते थे की यात्री कों यह सब बाते वज्ज्य (परहेज) है। आपने इन बातों को स्वीकार कैसे किया ? तब बाबा उन्हें मार्गदर्शन करते कि, हमारा मन शुध्द है, भगवंत हमारे पास है। शुध्द मन, स्वच्छ शरीर, शुध्द ब्ताव और स्वच्छ कपडे ये भगवंत को प्रिय है। भगवंत हमारे पास है इसलिए हम यह कर रहे है। भगवंत आपके पास है क्या? वह देखो तुम्हारे पास उपरोक्त बातो का अभाव है। भगवंत हमारे पास होने के कारण वह सब हम करते है। आप भगवंत को पास रखने के लिये वे सब बाते स्विकार करो और उन्हें वज्ज्य न समझो, तत्पश्चात बाबा गढ़ पर से नीचे उतरे और सीधे नागपूर आये।
"मानव धर्म का उगम" इस सातपुडा पर्वत पर महाशिवरात्री के पर्व पर हुआ और बाबा नागपूर लौटने पर उन्होंने साधे तौर पर इस मानव धर्म की स्थापना की। इस प्रकार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इस देश के मानव धर्म के संस्थापक है।
नमस्कार...!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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