Monday, May 18, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (१७) "सर्वोपरि परमेश्वर"

                   "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



           "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                प्रकरण क्रमांक (१७)

                 "सर्वोपरि परमेश्वर"


प्रकरण क्रमांक:- (१७) "सर्वोपरि परमेश्वर"

    

     महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने परमेश्वरी कृपा का मानव को परिचय कर देने के कारण इस मार्ग के अनेक उपासक हुए है। इस कारण बाबां के शिष्य मंडली की संख्या भी बढने लगी। बाबा उन्हें हमेशा उपदेश करते रहते। मिलने आने वाले शिष्यों से किसी भी प्रकार की फीस अथवा गुरुपुजा वे स्विकारते नही। बाबा निष्काम भावना से जनसेवा कर रहे है। इसलिये बाबा के यहाँ आने वाले शिष्यों की हमेशा भीड रहती है।

     

     १९६४ साल की घटना है। बाबां को इकलौता पुत्र है। उसका नाम मनो उर्फ महादेव है। वह बी.ई. (मेटलर्जी) प्रथम वर्ष में पढते समय की बात है। बाबां के यहाँ मार्गदर्शन हेतु शिष्य मंडली सुबह से ही लगातार आते रहते, वैसे बाबा का मकान छोटा ही था। वहाँ सभी प्रकारकी अलग-अलग व्यवस्था करना असंभव था। इस कारण बाबा जिस कमरे में सेवकों को मार्गदर्शन करते रहते, उसी कमरे के एक कोने में इस मनो की पढाई के लिये टेबल रखा था। उसकी पढाई में हरदिन कुछ न कुछ अवरोध निर्माण होता था। इस कारण उसकी मानसिक अवस्था बिगडती रहती और वह नाराज होता था वह बाबा को हरदम कहता, "बाबा आप मानवों को परमेश्वर के प्रति मार्गदर्शन करते हो, लेकीन भगवान कहाँ है? कौन भगवान है? परमेश्वर कोई नही। आप जो मार्गदर्शन करते है वह सब व्यर्थ है। मानव यही सच्चा कर्मकर्ता और उपभोक्ता है। सब कुछ मानव ही करता है। और वही निर्माता है। इसलिये मानव ही सर्वोसर्वा है। आप बेवजह इन गरीब भोले-भाले लोगों को फँसा रहे है।" तब बाबा उसे समझाते थे की, मानव सिर्फ कर्मकर्ता है, एवं उसका फल देने वाला परमेश्वर है। इसलिये परमेश्वर सर्वोस्वा है। इतना समझाने पर भी वह समझता नहीं था, और अपना ही तत्वज्ञान बताता था। बाबांने बहुत विचार किया लेकीन उसे उन्होने अपशब्द नही कहा उलटा हमेशा समझाते रहते तुझ से जितनी पढाई होती है उतनी ही कर, मेरा भगवंत तुझे कुछ भी कमी नही होने देगा। मेरे मार्गदर्शन से तुझे कोई परेशानी नही होगी अथवा तु पढाई में पिछे नही रहेगा। भगवंत तुझे हमेशा साथ देगा। इसका मैं तुझे विश्वास दिलाता हूँ। भगवंत के प्रती परिवार में इतनी घटनाएँ होने के बावजुद उसे इस बाबत कुछ भी एहसास नही, यह देख बाबां को दुःख होता था फिर भी वे समझदारी जताकर अंत में ऐसा सोचते की उसके विचार उसके पास रहने दे और स्वयं अपना कार्य शुरु रखे। लेकीन घर का माहौल ना बिगडे इसकी भी सावधानी वे रखते थे। इसलिये दोनों में कभी-भी अनबन नही हुई।

   

     भगवंत को कुछ तो बनाना था। मनो के मन का अहंकार नष्ट करना था इसलिये उसने घटनाक्रम निर्माण किया उसके मन में इस मार्ग के प्रति नफरत निर्माण की और वह बहुत बढने दिया।

    

     एक दिन वह सायं छ. बजे का सिनेमा देखकर आया। खाना खाकर हमेशा की तरह रात बारा (१२.००) बजे तक पढ़ाई करके सो गया। उसे नींद में सपना आया। सपने में उसने देखा की उसका विठ्ठल राऊत नाम का दोस्त उससे मिलने आया।उस समय वह पढाई कर रहा था। उसी समय एक भजन मंडली मकान के बाजू की गली से आयी। और सामने वाले हनुमानजी के मंदिर में गई। उसी वक्त बाबां के निवास स्थान पर मार्गदर्शन के लिये दस-बारह लोग आये थे। दोनों दोस्तों की चर्चा होने पर दोस्त चला गया। उसके बाद भी लोग बैठे थे। बाबा भजन मंडली के साथ मंदिर में चले गये थे।तब सपने में ही वह आने वाले उन लोगों पर बहुत क्रोधित हुआ। और उन्हें कहा, "आप क्यों बैठे है? आपका यहाँ कुछ काम नहीं है, आप अपने घर जाईये।" यह सुनकर आये हुए लोग अपने-अपने धर चले गये। उस क्रोध के कारण उसकी आँखे चढ़ी हुई थी। सपने में ही उसे उसकी चाची सौ. सखूबाई (श्री.मारोतरावजी की पत्नी) घर से आते हुए दिखाई दी। वह उसके पास आकर उसे कहने लगी,"महादेव तेरी औँखे लाल क्यों दिख रही है?" उसी समय महादेवने उनसे पुछा।"चाची मेरे बाबा कहाँ है? तब उसने जवाब दिया, अभी तक मेरे पिता बाहर से घर नहीं आये है। तब वह घर से बाहर आया और आंगनमें खटिया पर बैठकर पिताजी की प्रतिक्षा करने लगा। यह सब उसे सपने में ही दिखा। इतने में उसकी नींद खुली। उसके शरीर में १०४ डिग्री बुखार था। उसने उठ कर पानी पिया और सोचने लगा की, मैं सिनेमा देखकर आया तब बिलकुल ठीक था और अब एकाएक ऐसा क्यों हुआ? ऐसा सोचते-सोचते पानी पिकर फिर सोया फिर से स्वप्न चक्र चालु हुआ। क्योंकी परमेश्वर को उसे कुछ तो भी सिखाना था।

    

   उसे सपने में दिखा की बह खटियाँ पर बैठा है और भजन मंडली भजन समाप्त कर मंदिर से बाहर निकलकर अपने-अपने घर चली गई, परंतु बाबा घर नही आये। सपने में भी उसे ठीक नही लग रहा था। वह थीरे-धीरे मंदिर के सामने आया। मंदिर जाते समय रास्ते में ही उसकी तबियत बहुत खराब हुई इस कारण उसे चलना मुश्किल होने लगा फिर भी बड़ी हिम्मत से और कष्ट से किसी तरह वह मंदिर पहुँचा, हुनुमानजी की मुर्तीके सामने खडे होकर वह बहुत रोने लगा, उसका रोना रुक नही रहा था। रोते रोते ही वह कहने लगा, "बाबा हनुमानजी मेरा दुःख दूर करो। " उसी समय उसके बाबा भी वही आये और उसकी पीठ पर थपथपाकर बोले, "महादेव तू घर जा, तुझे कुछ नहीं होगा, और इतने में ही उसका सपना टूटा। उस समय उसके शरीर में बुखार नही था। उसे अ्छा लग रहा था। तबियत पहले जैसे ही लग रही थी। यह क्या चमत्कार होगा? ऐसा अपने आप सोचते हुए वह फिर से सो गया।

     

    वह हमेशा की तरह सुबह सो कर उठा। उस समय उसे थोड़ा बुखार था। प्रात: विधी के पश्चात चाय लेते समय उसने बाबा को उपरोक्त सपने की संपूर्ण हकीकत बयान की। बुखार जैसा लगता है ऐसा भी उसने बताया। तब बाबा ने उसे डॉ.झोडे के यहाँ जाकर दवा लेने को कहा। उसने डॉक्टर के पास जाकर दवाई ली, और बाबा की सलाह के अनुसार घरमें ही आराम किया। उस दिन वहु बाहर नहीं गया।

     

  उस दिन से उसके मन में परमेश्वर के प्रति भक्ती जागृत हुई तथा परमेश्वर यह अलौकीक शक्ती है और मानव सर्वोपरी न होकर परमेश्वर ही सर्वोपरि है यह वह मानने लगा।


नमस्कार...!


लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।


🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



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