"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (३५)
"दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था सालईमेटा"
प्रकरण क्रमांक:- (३५) "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था, सालईंमेटा"
सन १९७६ में परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक का काम शुरु हुआ। उसकी सीमा संपूर्ण नागपूर जिला होने से उस बैंक का लाभ नागपूर जिले में रहनेवाले कुछ गांव के सेवकों ने जोडधंघे के नाम से कोई भी योजना चलायेंगे ऐसा सोचकर उन्होने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को मार्गदर्शन करने की बिनती की ।
सन् १९७८ में एक दिन श्री. गडीरामजी डोनारकर इनके साथ श्री. यादोराव गावंडे, रामा दिवटे, फकीरचन्द भिवगडे आदी १०-१५ सेवक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी से मिलने आये। वे नागपूर जिला के रामटेक तहसील में शामील सालईंमेटा, आसोली, भंडारबोडी, पिमनटोला, कथलाबोडी, घमाँपुरी इस गांव में रहनेवाले सेवक थे । यह क्षेत्र पहाडों के आसपास का होने से ओंर वहॉ की जमीन सुखाग्रस्त (कोरडवाहु) होने से नागपूर जिले का यह क्षेत्र पिछडा हुआ क्षेत्र से जाना जाता है। इस क्षेत्र के निवासी अधिकतर आदिवासी है । वे बाबां को बिनती कर कहते कीं, बाबा हमारे क्षेत्र के नाम से जाना जाता है । इस क्षेत्र में महादुला, शिवनी यहॉ दुध डेअरी है, लेकीन हमें पेमेंट समयपर नही मिलता। इस प्रकार हमें व्यावहारिक कठिनाई है। इसलिये आप हमारे क्षेत्र में पिछडे हुए कृषक वर्ग को पूरक ऐसा जोडघंघे के नाम से दुग्ध व्यवसाय(दुघ डेअरी) शुरु करके हम सेवकों का जीवनमान उँचा करे ।
बाबांने जिस तरह इन सेवकों के शारिरीक , मानसिक दुख दूर करके उन्हे सुख समाधान दिया । उसी तरह उनका जीवनस्तर उँचा बनाने के लिये आर्थिक लाभ मिलना चाहिए इसलिये उन्होने उपरोक्त बिनती कों सहमती दी। उसके पीछे बाबां का एक ही उद्देश था की व्यवहार में सत्यता लाये। सत्य के सिवाय श्रमजीवी लोगों को न्याय नहीं मिलेगा। इसलिये बाबांने दुध डेअरी की अस्थापना करके श्रीमान गडीरामजी डोनारकर इन्हे प्रमुख प्रवर्तक बनाया और एक समिती गठित की । तथापि ३ १ सेवकों की और से रु. ६१० पूँजी जमा काके जिल्हा दुग्ध विकास अधिकारी, उमरेड ब्दारा परमात्मा एक सेवक दुग्ध उत्पादक सह. संस्था म. सालईमेटा इस नाम से उनके पत्र क्रमांक ए.आ.यू. /ए.जी.आर.आय. / २५९ / ७८ दि. २२ / ०६ / १९७८ कों पंजीयन किया गया ।
एक अक्तुबर १९७८ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके शुभ हाथों इस मार्ग के सेवक और विदर्भ बुनकर सहकारी संस्था नागपूर के अध्यक्ष स्व.श्री. सोमाजी बाबुरावजी बुरडे इनकी अध्यक्षता में उदघाटन का कार्यक्रम पूरा हुआ। और डेअरी के कार्य को नियमानुसार शुरुवात हुई । पहले ही दिन १५० लीटर दुध संकलित किया गया। लोगों को दूध की राशि (रक्कम ) हर हप्ले समयपर मिलने लगी। इससे उन्हे अति आनंद हुआ ।
दिसंवर १९७८ मैं इस क्षेत्र के २७ सेवकों को कमजोर समूह मानकर परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक नागपूर यहाँ से पचहत्तर हजार रुपयों की भैसे वितरित की गई। इसलिये इस क्षेत्र के लोगों को और अधिक उत्पन्न का साधन प्राप्त होने से इस दुग्ध संस्था की बहुत प्रगती हुई लेकीन सरकारी दुध योजना के जो कर्मचारी दुध जाँच कर मिल्क स्कीम में ले जाते थे, उन लोगों ने दुध डेअरी को बहुत परेशान किया। बाबाँने यह सब सह लिया लेकीन कुछ दिन बाद उन कर्मचारियों को पुछा की, इसके पिछे आपका उद्देश क्या है ? सत्य व्यवहार होकर आपको अच्छे किस्म का दुध मिलता है और ऐसा होकर भी ग्रेड के नीचे दुध है कहकर दुध छोड देते हो। तब मॅनेजर और दुध उत्पादकों नें बाबा को बताया की, आपने सिखाये अनुसार हमने सारा व्यवहार किया और उन्हे रिश्वत नही दी इसलिये ८०० ९०० लीटर दुध छोड दिया । यह सुनकर बाबाको बहुत दुख हुआ । तब उसी दिन बाबाँने उन दुध उत्पादकों को संपूर्ण दुध मुफ्त में बाँट दिया और उन्हे दही, घी, मख्सन बनाकर उसका उपभोग लेने बताया। इस तरह यद्यपि संस्था का नुक़सान हुआ फिर भी आगे यह सरकारी लज्जित होकर सुधरे और उन्होने इसके बाद का व्यवहार अच्छा किया ।
इस ठेअरी के लिये, "मानव घर्मं " इस मार्ग का सेवक श्री. सदाशिवरावजी तुपट इन्होने अपनी जगह में से ५०×५० फिट जगह दान दी । क्योंकी वह मार्ग का सेवक होने से पूर्व अत्यंत दु:खी-त्रस्त था । वह भावनाओँ के पीछे गया था । इस दुखों के कारण अनेक देवी-देवताओं का विसर्जन कर वह इस मार्ग में आया । उसे समाधान प्राप्त हुआ। इसलिये उसने दान देते समय कुछ भी लालच न रखका अपनी संस्था है यह क्या दान किया। लेकीन महानत्यागी बाबा जुमदेवर्जीने उन्हे इस संस्था में आमरण चौकीदार की नौकरी देकर उन्होने किये दान की और उनकी उदार भावना की बाबांने कदर की और उन्होने चौकीदार की नौकरी सहर्ष स्विकार की ।
इस संस्था की इतनी जोरदार प्रगती हुई कीं केवल छ: महिने में अर्थात मार्च १९७९ में संस्थाने स्वयं का कुआँ बनाकर कर्मचारी निवासस्थान भी बनाया। इतना ही नही तो चारा कटर मशीन और आटाचक्की भी संस्थाने जोडधंधा के नाम से प्रारंभ किया। सन १९८० में आरे कालोनी, मुंबई से सरकारी योजनानुसार १०८ भैंसों के बछड़े लाकर दुध उत्पादक सभासदों कों बाबा के हाथों से वितरित किये गये । सन १९८१ में दुध उत्पादकों के जानवरों के लिये पशुआहार याजीय किमत में सप्लाई करने के उद्देश्यों से संस्थाने पशुआहार खरेदी-बिक्री का व्यवसाय शुरु किया । मशीनपर चारा कटर वाजीब भाव में उत्पन करने से उत्पादकों के पास के चारा (कडबा ) की बरबादी होने से बचाने में कामयाबी प्राप्त हुई। इस तरह इस संस्थाने किये हुए जनसेवा के कार्यं देखकर महाराष्ट्र शासनाने जिला दुध बिकास विभाग के द्वारा १५ हजार रुपये की कडबा ( चारा ) ५०% प्रतिशत अनुदान पर संस्था को दी ।
इस संस्थाने दूध उत्पादकों को खेती (कृषी ) के लिये आवश्यक रासायनिक खाद का खरेदी-बिक्री का व्यवसाय सन् १९८५-८६ में शुरु करके दुध उत्पादकों को होनेवाली कठनाइंर्यों से मुक्त किया तथा उनके समय की भी बचत की । सन १९८६- ८७ मैं संस्था का कार्यक्षेत्र बढने से जगह कम पडने लगी इसलिये संस्थाने कार्यालय के लिये पक्का भवन तैयार किया। इस संस्था की दिनोंदिन हो रही प्रगती( तरक्की ) देख कर महाराष्ट्र शासन ने १९८८-८९ साल में ७५% प्रतिशत अनुदान पर २८ हजार रुपये की मिल्को टेस्टर ( फँट परिक्षण) मशीन दी ।
इस प्रकार इस संस्थाने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन से दिनोंदिन प्रगती का अपना नाम महाराष्ट्र शासंन के पास उज्जल किया है इसका संपूर्ण श्रेय महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनको ही है । इस बारे में इस क्षेत्र के सेवक बाबा के ऋणी है ।
नमस्कार...!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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