"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (२५)
"सौराष्ट्र दौरा"
प्रकरण क्रमांक:- (२५) "सौराष्ट्र दौरा"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद मानव धर्म स्थापन किया। यह नया धर्म होने से वे दिन रात इस मार्ग का प्रसार करने के लिए और मानव जागृती होंगी इसलिये मार्गदर्शन करने के लिये पिछले ५६ वर्षों से लगातार गाँव- गाँव देहातों में दौरा कर रहे है। इसलिए यह मार्ग अनेकोंने स्विकार किया है। आजकी स्थिती में इस मार्ग में हजारो परिवार के लोग सेवक है। पहले इस मार्ग पर आनेवाले परिवार की संख्या कम थी। मगर जैसे जैसे लोगों को आत्मानुभव आने लगा। वैसे उनकी संख्या बढने लगी। निम्न तालिका से यह ध्यान में आता है।
१९४७ से १९७० तक २३८ परिवार
१९७१ से १९८० तक १,१२६ परिवार
१९८१ से १९९० तक ३,३५२ परिवार
१९९१ से २००० तक १०,५०६ परिवार
२००१ से ३१ डिसेंबर २०१० तक २४,९८८ परिवार
२०११ से २०१४ तक ४२,६८५ परिवार
२०१५ से २०१८ तक ४६,००० परिवार
सुरुवात में ज्यादा सेवक ना होने का कारण है यह मार्ग एकदम नया है। पुरानी संस्कृती छोडकर नई संस्कृती की यह निर्मिती है। सालों-सालों से लोगों में जो पुराने आचार-विचार है। जो भावनाएँ है, उनकों छोड देना लोगों को जमता नही। लेकीन इस मार्ग का सेवक होने के बाद उन्हें जो आत्मानुभव आता है वह देखकर इस नई संस्कृती में लोगों का आगमन हो रहा है। गाँव-गाँव बाबा ने दौरा करने से इस मार्ग के सेवक भारत के चारोही हिस्से में फैले है। इतना ही नही तो अमेरिका में भी इस मार्ग के सेवक है। ऐसा ही एक दौरा १९८२ साल में २० नवंबर से ५ दिसंबर तक सौराष्ट्र में किया गया| इस दौरे में
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के साथ गाँव-गाँव से साधारणतः ५० सेवक थे। बाबा व्दारा किए हर दौर में विशेष अनुभव आते है। सौराष्ट्र दौरे में भी ऐसे अनेक अनुभव आए। वे अनुभव परमेश्वरने किस प्रकार से दिए यह आगे के उदाहरणों के व्दारा ध्यान में आएगा।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी साधारणतः ५0 सेवकों के साथ दिनांक २० नवंबर १९८२ को शाम ७ बजे हावडा-अहमदाबाद एक्सप्रेस से सुरत को जाने के लिए निकले। २१ नवंबर को दोपहर १:३0 बजे वे सुरत मे पहुँचे। दिनांक २२ नवंबर को निंबायत खाडी सुरत में हवन कार्य पूरा करने के बाद वहा के सेवकों को परिचय बाबा को करा दिया गया। तत्पश्चात वहा पर उपस्थित सेवकों ने इस मार्ग की दीक्षा लेने का कारण और उनके आत्मानुभव इस पर चर्चा हुई। रात ८ बजे मानव जागृती पर अनुभवात्मक भजनों का कार्यक्रम होकर बाबा के मार्गदर्शन हुए। बाद में भोजन करके आराम किया।
दिनांक २३ नवंबर १९८२ को सुरत शहर देखने का तय हुआ। इसलिए बाबा सेवकों के साथ सुरत दर्शन के लिए दोपहर १ बजे निकले। निकलते समय बाबाने सभी सेवकों को आदेश दिया की, हम किसी भी मंदिर में गए तो वहाँ की मुर्ती को नमस्कार ना करें सिर्फ मानव व्दारा निर्मित कला देखें, क्योंकी परमेश्वर पत्थर में नही, वह निर्जिव वस्तुमें नही तो सजीवों में है।
सुरत शहर देखते-देखते वे अंबा माता के मंदिर में गए। वहा बाबाने फिर सभी को याद करा दी की मुर्तीं को नमस्कार ना करे हम यहाँ इस देश की कला देखने को आए है। इसलिए कला देखकर आगे जाएँगे। मंदिर देखने के बाद सभी नीचे आए। मंदिर की सिढीयों के बाजू में निचे के हिस्से में हुनुमानजी का मंदिर था। सभी मंदिर के बाहर निकले लेकीन हेमराज सातपुते और आसारामजी सव्वालाखे यह पीछे रह गए। हुनुमानजी का मंदिर होने से और इस मार्ग के प्रतिक बाबा हुनमानजी होने से हेमराज सातपुते इनका मन पिघला और "तेथे कर माझे जुळती" इस कहावतनुसार उन्होने श्रध्दासे उस हुनुमानजी की मुर्ती को नमस्कार किया। यह आसारामजी सव्वालाखे इन्होने देखा लेकीन दोनो ने इस बारे में आपस में चर्चा नही की। तत्पश्चात यह अपनी गलती हुई यह उन्होने बाबाको नही बताया। वहा उन्होने बाबा के शब्दों का पालन नही किया। उन्होने बाबाके आदेशों का पालन नही किया और बाबा के आदेशों का अपमान किया तात्पर्य बाबा के आदेश, उनके शब्द यह परमेश्वर के शब्द होने से तो इसका अर्थ परमेश्वर का अपमान हुआ था। इसके बाद आगे साईनाथ मंदिर, तापी नदी, चमडीभर जगह देखने के बाद आगे अश्विनीकुमार, तीन पत्ती यह भाग सभीने देखा, लेकीन वहा वास्तव में तीन पत्ती की जगह पाँच पत्ती थी। सभी ने बाबाके आदेश का पालन कर के किसी भी मंदिर में प्रणाम नही किया। सिर्फ सृष्टी सौंदर्य नये-नये बनाए गए कलात्मक मंदिर, भव्य इमारते इत्यादी और रमणीय स्थल देखे। अश्विनीकुमार, तीन पत्ती देख वहाँ से शाम को निंबायत खाडी यहा वापस आने के लिए निकले। सुरत दर्शन के लिए स्पेशल बस की गई थी।
वापस आते समय बस के सामने एक आदमी आया और उसे बचाने के लिए बस के ड्रायव्हर ने जोर से ब्रेक लगाया। सातपुते यह पीछे बैठा था और आसारामजी सव्वालाखे यह सामने की सीटपर जो पाँच बैठे थे उसमें एक यह था। ब्रेक जोर से लगाने से बस एकदम रुकी और बसे के सेवक लोग अपने-अपने सीट पर उछाले गऐ लेकीन हेमराज सातपुते उसकी सिट से उछलकर आसारामजी सव्वालाखे के उपर जाकर गिरा। वैसे ही हेमराज सातपुते यह सव्वालाखे की सीट से ३-४ सीट पीछे बैठा था। इस घटना से सव्वालाखे के छाती को जोर से मार लगा इसलिए वह मै मर रहा हूँ ऐसा जोर से बसने चिल्लाने लगा। इसके बाद बस सीधे डॉक्टर के पास लाई गई। वहाँ उसपर औषधोपचार किया गया। एक्सीडेंट की केस होने से डॉक्टर औषधोपचार करने को तैयार नहीं था। लेकीन बाबा की महिमा सुनकर उन्होने औषधोपचार किया। यह कैसे हुआ यह डॉक्टर ने पुछने पर उन्हें बताया गया की सव्वालाखें पर सातपुते पाच फुट जगह से आकर गिरा तब डॉक्टर ने कहाँ की बहुत बडी जखम हुई है, लेकीन दवा दी गई है, आराम होगा। इसके। बाद निबायत खाडी में सभी लोग वापस आए।
रात्री ८.00 बजे उधना यार्ड, सुरत में सेवको के अनुभवात्मक भजनकार्य सेवकों के अनुभव इस पर चर्चा सत्र हुआ और अंतमें मानव जागृतीपर बाबा ने मार्गदर्शन किया। यह कार्यक्रम चालु था तब सव्वालाखे निंबायत खाडी में आराम कर रहा था। उसकी तबियत को पुरी तरह आराम नही था। बाबाने सेवकों को कौनसी गलती हुई यह पाने पर कोई भी बताने को तैयार (राजी) नही था। क्योंकी किसी के भी ध्यान में उसकी गलती नही आयी। बाद में श्री. सव्वालाखे इनको अपने हाथसे हुई गलती ध्यान में आयी और उसने एक सेवक के व्दारा जहाँ कार्यक्रम शुरू था उस जगह पर अपनी हुई गलती की जानकारी देने के लिए भेजा। बाबा को यह बात मालुम होने पर वे निंबायत खाडी को कार्यक्रम समाप्ती के बाद वापस आए। उन्होने सातपुते को पुछने पर उसने हामी भरी की, मैने हनुमानजी के मंदिर में प्रणाम किया और सव्वालाखे ने वह देखा। मैंने आपके आदेश का उल्लंघन किया यह मेरी बडी गलती हुई है, ऐसे बाबा और उपस्थित सेवकों को बताकर वह आगे बोला की, मेरे हाथो हुई गलती के लिए भगवान बाबा हनुमानजी और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी और सेवक भाई माफ करेंगे। ऐसी उसने बाबाको बिनती की, इसलिये बाबाने दोनो के व्दारा हुई गलती के लिए माफ किया और उधर सव्वालाखे की तबीयत को आराम पहुँचा। तत्पश्चात सव्वालाखे को एक घंटे में तीन बार बाबा हनुमानजी को क्षमा माँगने के लिए कहा गया। इस प्रकार बाबाने दोनों को क्षमा माँगने के लिए कहा गया। इस प्रकार बाबाने दोनों को क्षमा करके उन्हें उनके व्दारा की गई गलती से मुक्त किया। लेकीन यह गलती पहले ही बताई होती तो उन दोनों पर यह नौबत नही आती।
इस से यह सिध्द होता है की, गलती छुपाकर रखने और उसमे भी बाबाके आदेशो का पालन नही करने पर कितना बड़ा दुःख होता है, जैसे चोरी करनेवाले से भी चोरी करने के लिए बताने वाला आदमी यह बडा गुन्हेगार होता है। उसी प्रकार गलती करनेवाले से गलती छुपाकर रखनेवाला ज्यादा गुन्हेगार है यह सिध्द होता है। वैसे ही परमेश्वर को गलती की क्षमा माँगने पर वह मानव को क्षमा करके उसके दुःख दूर करता है। इतना परमेश्वर दयालु हैं।
उस दिन रात्री को १२ बजे खाना खाने के बाद कुछ लोग वहा पर सोए थे, तो कुछ लोग जगह की कमी से दुसरे सेवकों के यहाँ २-३ जगह सोने के लिए गए थे। रात दो बजे के दरम्यान सभी सेवकों को उलटी और संडास होने लगा। इससे बाबा को और सभी को लगा की खाने में विष बाधा हुई होगी। वहा बाबांने ऐसा आदेश दिया की, जहाँ-जहाँ सेवक रुके है वहां से उन सेवकों की जानकारी लाए। इस प्रकार जानकारी लेने पर। जिस-जिस जगह सेवक रुके थे उस-उस जगह जिन सेवकों ने भोजन किया था उन सभी को वमन(उलटी) और दस्त है यह समझा। यह समझने पर बाबाने श्री. शिरपूरकर सेवक को बताया की आस-पास कोइ डॉक्टर होगा तो उसे बुलाकर लाओं। क्योकी यह भोजन की विषबाधा है। सभी सेवक परमेश्वर के नाम का जयघोष करने लगे। शिरपुरकर
डॉक्टर के पास जाने पर उन्हे डॉक्टर ने पूछा की उलटी कैसी होती है। तब ईश्वरी कला उसी क्षण शिरपूरकर को उलटी आयी और डॉक्टर के सामने उलटी (वमन) करके ऐसे उलटी करते है और लगातार दस्त भी करते है ऐसे बताया। वे डॉक्टर को लेकर आए। डॉक्टर ने सभी को जाँचकर इन्जेक्शन दिए और दवाईयाँ भी दी। छोटे बडे सब मिलाकर २०० सेवकों को विषबाधा हुई थी। इसलिए बाबाने डॉक्टर को बताया की आप इन सभी पर कही से भी दवा उपलब्ध करके औषधोपचार करे। क्योंकी यह विषबाधा होना ठीक नही। ऐसी घटना होना यह ठीक नही। क्योंकी हम नागपूर में रहते है। भगवत कार्यका दौरा करते है। बाबाने बताए नुसार डॉक्टर से सभी का इलाज करके विषबाधा से सभी को बचाया। कुछ सेवक काफी दूर सोने को गए थे। उनकी तबियत के बारे में उस दिन जानकारी नही मिल सकी। लेकीन दूसरे दिन सुबह ऐसे पता चला की उन्हें भी विषबाधा हुई थी। उन्होने भगवंत के नाम से (बाबा हनुमानजी) तीर्थ लेने से बिना दवा के उनकी विषबाधा नष्ट हुई उस दिन रात को सभी औषधोपचार के बाद शांती से सोए। कोई भी बुरी घटना नही घटी। परमेश्वर ने सभी को जीवनदान दिया।
दूसरे दिन डॉक्टर ने बाबा को अपने घर में चाय पिने के लिए निमंत्रित किया था। तदनुसार बाबा सेवकों को लेकर उस डॉक्टर के घर पर चायपानी लेने गए। तब डॉक्टर ने बाबा को बताया की रात में हुई विषबाधा यह भयंकर रुवरुप की थी। औषधोपचार करने पर भी वह दवा से नियंत्रित होनेवाली नही थी। उलटे कई लोग मर गए होते, लेकीन कोई भी नही मरा इस पर से आपके पास बहुत बडी परमेश्वरी शक्ती है ऐसा मुझे लगता है। इस पर बाबाने डॉक्टर को मार्गदर्शन करके बताया की, इस मार्ग में जागृत शक्ती है। इसलिए कोई भी नही मरा, इस परमेश्वरी कृपा का अनुभव इस मार्ग के अनेक सेवकों को आया है।
२४ नवंबर ८२ को पटेलवाडी सुरत में सेवकों का परिचय, अनुभव कथन और बाबा का मार्गदर्शन हुआ। उस के बाद २५ नवंबर ८२ को रात १०.३० बजे बस से अहमदाबाद को बाबा सेवकों के साथ जाने के लिए निकले। २६ नवंबर को बापू नगर, मोरारजी चौक, अहमदाबाद यहाँ भगवत कार्य का चर्चा सत्र, अनुभव परिचय और बाबा का मानव जागृती पर मार्गदर्शन हुआ। २७ नवंबर अहमदाबाद दर्शन के लिए बस से निकलकर झुलता मिनार, गोमतीनगर, काकडीया तालाब, बालवाटिका, अपना बाजार, सिध्दी सय्यद की जाली, भद्रकाली मंदिर, हरिसिंग की बाडी, गांधी आश्रम, मानव मंदिर, ओपन सिनेमा हॉल, विज्ञान भवन, भाव निर्झर आदी ऐतिहासिक स्थल देखे। सेवकों ने मंदिरों में नमस्कार नही किया। तो सिर्फ मानव व्दारा बनाई हुई कलाकृती देखेी।
२८ नवंबर को सौराष्ट्र देखने के लिए स्पेशल बस से सभी सेवक जामनगर से व्दारकापुरी आए। यहाँ सुदामपुरी, व्दारका मंदिर, अरब सागर देखा। बाद में सागर में बसने वाले व्दारका मंदिर में जाने के लिए सभी नाव से निकले। नाव में ५० सेवक और ५० लोग दुसरे ऐसे कुल १०० लोग बैठे थे। बाबा नाव के उपर वाले हिस्से में बैठे थे। नाव चालु हुई, नाव पानी में जाते समय वह दोनों बाजु में डोलने लगी। तब नाविक बहुत घबराया, उसके ध्यान में आए ना की, हवा नही होने पर भी नावं क्यों डोल रही है। तब सेवकों ने बाबा हनुमानजी का जयघोष किया। उसमें बाकी लोग भी सामील हुए और नाव का डोलना बंद हुआ। उसके बाद नाव सुरक्षित व्दारका मंदिर पहुँची। जब नाव समंदर से जा रही थी। तब जोरो की हवा चालु नही थी। समंदर की लहरे भी जोर से नही आ रही थी। नाव ने हिल्लोरे लेना यह परमेश्वरी लिला थी ऐसा बाबा का कहना था।
व्दारका मंदिर के परिसर में पहुँचने पर बाबाने हमेशा की तरह सभी सेवकों को किसी भी मंदिर में प्रणाम ना करे ऐसा आदेश दिया। परिसर में जाते ही कृष्ण मंदिर के पास सभी पहुँचे। व्दारका नगरी के मुख्य व्दार बंद थे। वे शाम को ५ बजे खुलने वाले थे। तब तक सभी व्दार खुलने का इंतजार करके वही रुके। ठिक ५ बजे मुख्य व्दार खोला गया। वहा से सभी सुदाम महाराज की बैठक में गए । वहाँ जो सुदाम महाराज थे वे बैठक में आए और अपने सिंहासन पर बैठे। उस जगह ऐसी एक प्रथा है की पहले सुदाम महाराज लोगों को मार्गदर्शन करके उनके तरफ से दान वसुल करते है और उसके बाद ही आगे व्दारका नगरी देखने के लिये लोगों को अंदर जाने देते। इस प्रकार से सुदाम महाराज अपने आसनपर बैठने के बाद बाबा के साथ सभी सेवक और बाकी लोग नीचे बैठे। बाद में सुदाम महाराज ने मार्गदर्शन करने के लिए सुरुवात की, बताने लगे यह कृष्ण की व्दारका है। इसलिए पुण्य प्राप्त करने के लिए अपनी शक्तीनुसार सभी ने ५०१,१००१,५००१ रुपये दान करे। यह सुनकर बाबांको आश्चर्य हुआ, इस मार्ग के एक सेवक श्री. नागोराव खापरे को बाबाने कहाँ की, उस सुदाम महाराज को बताओं की हमारे साथ हमारे धर्मगुरु महानत्यागी बाबा जुमदेवजी है। वे निष्काम भावनासे कार्य करते है, वे गुरूपुजा लेते नही और दान भी लेते नही। इसलिए हम आपको दान दे नही सकते । इस प्रकार नागोराव खापरे ने सुदाम महाराज को सभी के सामने बताया। तब यह सुनकर वहाँ के पुजारीयों ने सेवकों के विरुध्द कारस्थान रचाया की इन्हें दर्शन लेने नही देंगे। वहाँ से सभी कृष्ण मंदिर के पास आए, वहां सभी मंदिर के व्दार खुलेंगे इस उम्मीद से रुके। लेकीन कारस्थान किए नुसार वहा के पुजारी एक के बाद एक वापस जा रहे थे, लेकीन कृष्ण मंदिर के व्दार नहीं खोले। तब वही बाबाने सभी सेवकों को मार्गदर्शन करके उनके साथ जो बाकी लोग थे । उनके ध्यान में लाकर दिए की इस देश में पूजारीयोंकी कितनी सत्ता है की, वे दान दिए। बैगैर भगवान के दर्शन लेने नही देते। पूजारी लागों ने भगवान को बेचने के लिए निकाला है। लेकीन भगवान मंदिर में नहीं वह तो मानव के पास है। उसकी आत्मा में है इसिलिए। कहा गया है की,
"मंदिर, मस्जिद, गुरुव्दारोने बाँट लिया भगवान को,
सागर बॉँटो, धरती बाँटो, मत बाँटो इन्सान को"।
मानव को आपस में बाँटो मत क्योंकी उसको बाँटने से भगवान को (परमेश्वर को) बाँटे समान होगा। बाद में बाबाने सभी सेवकों को आदेश किया की बाबा हनुमानजी का जयघोष कर के वापस चले। इस प्रकार सभी सेवकों ने निम्नानुसार जयघोष किया
भगवान बाबा हनुमानजी की जय।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की जय।
परमात्मा एक।।
सत्य, मर्यादा, प्रेम कायम करनेवाले
अनेक बुरे व्यसन बंद करनेवाले
मानव धर्म की जय।
और सभी सेवक मुख्य व्दार के बाहर निकले। एक सेवक श्री. केशव चिचघरे सब के पिछे रह गया, मुख्य व्दार के पास एक साधु धुनी लगाकर बैठा था। केशव चिचघरे जब गेट के पास आया तब एक पुजारी ने ऐसे कहा की, इन्होने दान दिया नही इसलिए इनकी नाव पाणी में डुूबेगी। यह शब्द उस साधू के सुनने पर उसके बदन में जैसे आग लगे समान हुई और उसने क्रोध से उस पुजारी को उत्तर दिया की तुम पुजारी अपने को क्या समझते हो ? उन सभी पर परमेश्वर की कृपा है इसलिए वे कुछ भी ना बोलते निकल गए। आप पुजारी इतने नीच हो की, यदी किसने ने दान दिया नही तो आप उन्हे भगवान के दर्शन लेने नही देते, यह सब केशव चिचघरे ने सुनने पर उन्होने बाबा को बतलाया तब बाबाने कहा की यह सब मुर्ख लोगों की सत्ता परमेश्वर को मान्य नही और वह जल्दी ही बदलेगी इसलिए इस मार्ग की उत्पत्ती है।
बाबा व्दारका में आराम करने के लिए एक जगह ठहरे। वहाँ किसी कारणवश सेवकों का भोजनवाले कॉन्ट्रक्टर से बहुत झगडा हुआ। तब बाबाने सभी सेवकों को समझाया लेकीन उस कॉन्ट्रॅक्टर की बहुत आर्थिक हानी हुई। ३० नवंबर को व्दारका से पोरबंदर को सभी पहुँचे। वहाँ भारत मंदिर, दवाखाना और गांधीजी का मकान सभीनि देखा। वहा से सभी लोग सोमनाथ को पहुँचे। वहा सोमनाथ के ऐतिहासिक मंदिर देखकर समंदर किनारे के सृष्टी सौंदर्य देखे। तत्पश्चात वहा रात्री में मुकाम कर के १ दिसंबर को जुनागड में सभी लोग गए। जुनागढ का किला ९,९९९ सिढीओवाला पहाडी पर का
देवस्थान देखे, वहाँ से वीरपूर को जाकर "जलाराम बापू का" मंदिर देखे। सह मंदिर देखने के बाद बाबाके मन में विचार आए की हम भी कही पर अच्छी सी जगह प्राप्त कर के इसी प्रकार का "मानव मंदिर" का भवन अपने मंडल व्दारा बनाए। उस जगह हमारे सेवकों को सुख, शांती और समाधान मिलेगा। इस तरह यहाँ से प्रेरणा लेकर बाबाने नागपूर यहाँ"मानव मंदिर" बनवाया है।
वीरपूर से गोंडल को जाने पर योगी महाराज के मंदिर देखे २ दिसंबर को गोंडल से आकोट होते सारंगपूर को गए। वहा लक्ष्मीनारायण का मंदिर तथा हनुमान मंदिर की कलाकृती सभी ने देखी। वहा से ३ दिसंबर को फिर अहमदाबाद को वापस आए दर्शाए गए सभी स्थानो पर सभी सेवक मंदिरों में घुमे लेकीन बाबा के आदेशानुसार किसी भी सेवकने, किसी भी मंदिर में किसी भी मुर्ती को नमस्कार (प्रणाम) नही किया।
३ दिसंबर को पुराना बापूनगर, अहमदाबाद में रात ८ बजे मानवी अनुभवों पर भजनकार्य और मानव जागृतीपर बाबा का मार्गदर्शन हुआ। तब बाबाने अपने मार्गदर्शन में बोले की, मंदिरों में किसी भी मुर्ती को नमस्कार किसी ने नही किया, क्योंकी बाबा सजीव में परमेश्वर का रुप देखते है। निर्जिवो में परमेश्वर रहता नही है। मुरती यह निर्जीव चिज है। इसलिए बाबा के सेवक किसी भी मुर्ती को प्रणाम (नमस्कार) नही करते। वे परमेश्वर का रुप सजीवों में देखते है इसलिए उन्हें आत्मप्रचिती, आत्मानुभव और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए सेवकों की आत्मशक्ती बढती है। भावना का नाश होता है और मानव यह अनुभव से तज्ज्ञ होता है वह भगवंत को सामने रखकर आत्म साक्षात्कार से अपना भविष्य उज्वल करता है।
४ दिसंबर को नया बापूनगर, अहमदाबाद में रात ८ बजे मानवी अनुभवात्मक चर्चा बैठक, भजन कार्य, सेवकों का अनुभव तथा मार्गदर्शन होकर ५ दिसंबर को अहमदाबाद हावडा एक्सप्रेससे नागपूर को प्रस्थान करके ६ दिसंबर १९८२ को सुबह ७ बजे नागपूर को आगमन हुआ।
इस सौराष्ट्र दौरे में जो-जो घटीत हुआ उसको सब परमेश्वरी कृपा कारणीभूत है और उसीने ही परेस्थिती निर्माण करके उसे पूरी तरह संभाला है। इसका कारण मानव यह कर्मकर्ता होने से उसके हाथो गलती होना स्वाभाविक है। और वह गलती करता है। तो उसका परिणाम गलती बराबर का ही होता है। यही परमेश्वर मानव को सिखाता है। विदित सभी घटनाओं से यह सिध्द होता है की, बाबा के साथ भगवंत हमेशा रहते है। इसलिए उनके सामने सेवकों पर कितनी ही मुसिबते या समस्या निर्माण होने पर वह सभी चुटकी बजाएँ समान बडी आसानी से छुटती है।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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