"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
प्रकरण क्रमांक (७)
"एक भगवंत की प्राप्ती"
प्रकरण क्रमांक:- (७) "एक भगवंत की प्राप्ती"
पिछले प्रकरण में दर्शायें अनुसार बाबा जुमदेवर्जीने वाबा हनुमानजी कों बिनती करने पर प्रतिज्ञा की, मैं आज से किसी भी देवता को नहीं मानूँगा। यह बतानेपर बाबांने उस दर्जी समाज की महिला का संपूर्ण दुःख दूर किया। तत्पश्यात बाबां सोचने लगे की इसी हुनुमानजी के मंत्रोच्चार से उस स्त्री का दुःख दूर हुआ, लेकीन जो उसी मंत्र से प्रतिज्ञा के पूर्व नहीं हुआ।
बाबानें प्रतिज्ञा किये अनुसार उस शक्ती का संशोधन करना प्रारंभ किया। उन्होने हनुमानजी के समक्ष प्रश्न रखा कि, "हे हनुमानजी संसार में ऐसी कौनसी शक्ती है, जो शैतान को एक पल में निकाल सके। भूत किसे कहे और भगवान किसे कहे। इसका स्पष्टीकरण हमें समझा दो।" इस समय बाबा स्वयं निराकार में आये और परमेश्वरी (बाबा हनुमानजी) बाबां के मुखकमल से ऐसे शब्द निकले की, वह एक ही परमेश्वर है, जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया है। "वह एक जागृत शक्ती है जो निराकार है। वह चोबीस घंटे चैतन्य है। उसे प्राप्त करने के लिए पांच दिन हवन करना पडेगा।" तत्पश्चात कुछ देर में बाबाने उस निराकार अवस्था में ही घरके लोगों को संबोधित किया की "परिवार के लोग सुनों, हम कलसे पांच दिन हवन करेंगे।"
निश्चितीनुसार दुसरे दिन से बाबानें पांच हवन को प्रारंभ किया। रोज एक इस प्रकार सायंकाल में शुरुवात की। इस दिन श्रावण वद्य प्रतिपदा थी और वह शुक्रवार था। इस दिन की तारीख २० अगस्त १९४७ थी। पांचवे दिन हवन समाप्त होते ही। बाबा का ब्रम्हांड चढ़ा। वह देहमान भूल गये और निराकार अवस्था में आये। इस अवस्था में वे बहुत बहुत आक्रांत कर रोने लगे तब परिवार के सभी लोग उपस्थित थे उस निराकार अवस्था में बाबा के मुखकमल से शब्द बाहर आये की, "मैं कहाँ आ गया हूँ।" ऐसा कहकर फिरसे जोर-जोर से आक्रांत कर रोने लगे। घर के लोगों को संबोधित कर बोले, "घरवाले सुनो, मैं कहाँ आ गया हूँ। सेवक भगवान बन गया।" यह सुनकर और बाबा को रोते देखकर घर के लोग घबराये और उन्हें "बाबा चुप हो जाओ" ऐसे मनाने लगे। लेकीन बाबा निराकार अवस्था में होने से उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं था। "मैं कहाँ आ गया हूँ।" ऐसा कहते बाबा लगातार एक से हेढ घंटे तक आक्रांत कर रोते रहे। तत्पश्चात वे शांत हुए, निराकार अवस्था से वे देहभान अवस्था में आये। उसके बाद उन्होने खाना खाया और विश्राम किया। लेकीन वे सुस्ती में ही थे।
दुसरे दिन यानि छैंटवे दिन श्रावण वद्य षष्ठी थी। उस दिन १९४८ साल के अगस्त माह की २५ तारीख दिन बुधवार था। इस दिन बाबा सुर्ती में ही होने से हवन की समाप्ती समझकर घर के लोगों ने हवन किया। हवन समाप्त होते ही पुनः बाबा का शरीर घुमने लगा। वे देहभान भूल गये। उनका ब्रम्हांड चढा और वे निराकार स्थिती में आये कुछ समय बाद उनके मुखकमल से शब्द बाहर निकले की इस देश में जितने देवतां को मानते है। उदा. हिन्दु धर्म के राम, कृष्ण, शंकरजी, सभी देवियों, देवता, ब्रम्हा, विष्णु, महेश दत्त, सभी अवलिया उदा. गजानन महाराज, साईबाबा, उसी प्रकार अन्य धर्मों के दैवत जैसे अल्ला, येशु ख्रिस्त, महावीर जैन, बुध्द इत्यादि से सब उन्हें एक के बाद एक आकर दर्शन दे रहे है। ऐसे वे निशंतर बडबडाते रहे। तत्पश्चात विश्व के समस्त देव उनके शरीर में एक के बाद एक आकर उन्हें अपना-अपना परिचय देने लगे। इनमें शेषनांग ने भी अपना परिचय दिया। यह क्रिया बहुत देर तक चालू थी।
यह संपूर्ण क्रिया पूरी होने पर उनके शरीर में अंत में एक भगवान आये। उन्होंने अपना परिचय दिया। इस समय बाबा के मुखकमल से ऐसे उदगार निकले की, "मैं सबका भगवान हूँ? सेवक, तू मुझे कहाँ ढूँढ रहा है। मैं चोबीस घंटे तेरे पास हूँ। जो क्षण मे तुझसे छुट जाऊंगा, तेरा शरीर मृत हो जायेगा " तब बाबा को लगा की, "मैं कितना पागल हूँ। भगवान मेरे पास होंकर में उसे ढूँढ रहा हूँ।" यह सारे शब्द बाबा के कानोंपर पड़ते थे। वे देहभान में थे। फिर भी उन्हें वह समझ में आता था।
कुछ समय पश्चात् इसी निराकार अवस्था में रहते हुए एक पल में उनके ही मुखकमल से पुनः ऐसे शब्द निकले की," सेवक मैं भगवान हूँ। तू मानव है। मैं जानता हूँ, मानव यह बेइमान है उनमें से तू एक मानव है भलेही तूने मुझे प्राप्त किया, मैं भगवान हूँ। मैं मानवपर कदापि विश्वास नही करता"। यह शब्द बाबा के कानों में पड़े, तब वे निराकार अवस्थामें ही विचारमग्न हुए। उन्होने बहुत देरतक विचार किया और उसका जवाब वे हुँढने लगे। कुछ समय बाद उन्हे उत्तर मिल गया की इसका जवाब "इमान" यही है। और इमान ही भगवान है ऐसा समझ उन्होंने भगवान के पास प्रतिज्ञा की, की "हे भगवान में जीवन में इमान रखुँगा और सत्य सेवा करुँगा। ऐसा आपको सत्य वचन देता| हूँ।" इसके बाद फिर से विचार किया की, चोबीस घंटे मानव के पास रहुनेवाली ऐसी कौनसी शक्तीं है जो समाप्त होने पर शरीर मृत होता है। इस पर विचार करने पर उन्हें आत्मा यह शक्ती याद आयी। इसलिए पुनः उनके मुखकमल मे से ऐसे शब्द निकले की "परमात्मा एक! मरे या जिये भगवत् नामपर।" यह बाबा के वचन थे, जो उन्होने एक परमेश्वर को दिये। पुनः कुछ समय बाद बाबां के ही मुखकमल से ऐसे शब्द बाहर निकले "दुःखदारी दूर करते हुये उध्दार। इच्छा अनुसार भोजन"। यह दो वचन परमेश्वरने बाबा को दिये ऐसा उन्हे लगा।
कुछ देर शांत रहकर उस निराकार अवस्थामें ही उन्होने परिवार के लोगो को संबोधित किया की, "परिवार के लोग सुनो, इस परिवार के लोग सभी पुजा बंद करके एक ही भगवान को माने।" ऐसा उन्होने आदेश दिया। तत्पश्चात परिवार के लोगों ने बाबा को आश्वासन दिया की,"बाबा आज से हम एक ही भगवान को मानेंगे"। तत्पश्चात बाबांकी निराकार (ब्रम्हांड) अवस्था समाप्त हुई। परंतु वे निराकार स्थिती में ही थे तब से घर के लोग एक ही भगवान को मानने लगे। सभी देवताओं की पुजा करना उन्होंने बंद किया। उन्होंने मंदिर जाना बंद किया।
इस प्रकार बाबा ने "एक भगवान की प्राप्ती" की वह दिन श्रावण वद्य षष्टी होने के कारण प्रत्येक वर्ष इस दिनको समस्त सेवक "एक भगवंत का प्रगट दिन" के रूप में अपने अपने घर हवन कार्य कर वह दिन मनाते है। इसके अलावा मानव धर्म का वह सबसे बडा त्यौहार है ऐसा समझा जाता है।
उस दिन से बाबा जुमदेवजी को बाबा हुनुमानजीने सही माईने एक परमेश्वर का परिचय कर दिया। तब से बाबा जुमदेवजी बाबा हनुमानजी को भगवंत न मानते अपना गुरु मानने लगे। सृष्टि निर्माता परमेश्वर के प्रतिक के रूप में कोई भी निशान नही है। किसी भी धर्म के अनुसार परमेश्वर का कुछ तो प्रतिक होना आवश्यक है। हिन्दू धर्मानुसार गुरुकी पुजा करना यानि भगवंत की पुजा करना है, ऐसा समझा जाता है। बाबा जुमदेवजी यह हिन्दु धर्म के होने से उन्होने अपने गुरु बाबा हनुमानजी इनका प्रतिक एकही भगवान के रुप में लोगों के समक्ष रखा है। भगवंत व्यक्ती न होकर वह चैतन्य शक्ती है। वह चोबीस घंटे जागृत होकर निराकार है। बाबा हनुमानजी यह भगवंत नही ऐसा स्पष्ट किया। इस मार्ग में हवन को महत्व है। मानव का ध्यान भगवंत की ओर रहना चाहिए इसलिए हवन करते समय अथवा हर दिन पुजा करते समय बाबा हुनुमानजी का प्रतिक रखा है। जिस कारण मानव के मन में भगवंत के विषय में जागृती निर्माण होगी और मानव सदैव भगवंत का मनन चिंतन करता रहेगा।
बाबा हनुमानजीने बाबा जुमदेवजी को अनेक देव देवताओं का परिचय करा दिया। यह हमने उपर देखा है। उन सभीने इस पृथ्वीपर जन्म लिया है। उन्होने भगवंत के प्रिय पसंदीदा कार्य किये है, इसलिए वे "परमेश्वर" इस नाम से विख्यात हुए और इस दुनिया की भोली जनताने उन्हे परमेश्वर मानकर पुजा करने लगे। लेकीन वे परमेश्वर नही थे। उन्हें परमेश्वर समझ पुजा न करे क्योंकी परमेश्वर यहाँ एक ही है। जो सृष्टि का निर्माता और विश्व का विधाता है।
नमस्कार....!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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