"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (१४)
"तीन शब्द"
प्रकरण क्रमांक:- (१४) "तीन शब्द"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने भगवत कृपा प्राप्त करने के बाद उनके निवासस्थान पर प्रत्येक शनिवार की शाम निराकार बैठक होती थी। प्रथम परिवार के लोग तथा बाद में जैसे-जैसे इस मार्ग के सेवक बढते गये वैसे-वैसे वे भी इन बैठकों में उपस्थित रहने लगे। इस बैतक में बाबा निराकार अवस्था में आते और मार्गदर्शन करते थे, हर बार वे "तत्व" पर बोलते थे। इसी निराकार बैठक में निराकार अवस्था में मानव का जीवन स्तर उपर लाने के लिये, उनके परिवार में व्यवहार में लाने के लिये "तीन शब्द" दिये है।
१) सत्य बोलना।
२) मर्यादा का पालन करना।
३) प्रेम के साथ व्यवहार करना।
"शब्द" भगवान है।"शब्द" ही भूत(शैतान) है सेवकों के शब्द यह भगवंत के शब्द है। फोटो देते समय बाबा सेवकों को बताते की परिवार में सत्य, मर्यादा और प्रेम से रहो उसके लिये सेवकों से वचन लेते थे। इसके साथ ही बुरे कर्मों को नष्ट करने के लिये भी बताते थे।
१. सत्य बोलना
सत्य मतलब आत्मा से निहरता से निकले शब्द सामनेवाले व्यक्ती के दिल पर कुछ भी परिणाम हो उसकी चिन्ता न करते हुए निकले शब्द अन्यथा सामनेवाले व्यक्ती पर अपने शब्दों का बुरा परिणाम न होकर उसे समाधान देने वाले शब्द बोलना, जो बार बार कहे जाते है, वह सत्य शब्द नही है, वह सरारार झूठ बोलना है ऐसे शब्दों से मानव बुरा फंसता है मानव के गले पर यदि छुरी भी चलायी जाये, तो भी उसने सत्य ही बोलना चाहिए, सत्य कडवा होता है लेकीन वह परमेश्वर के प्रिय है। "भगवान के घर देर है, अधेर नहीं," इस कहावत के अनुसार सत्य भी जरा देर से समझ में आता है इस मार्ग में जागृत कृपा "सत्य" है इस मार्ग में झूठ बोलना वर्जित है व्यावहारिक नियम कुछ भी हो, फिर भी सत्य व्यवहार ही करना चाहिये। सत्य कार्य का भय दिल में न रखे। क्योंकी उसके लिये भगवत कृपा सदैव उसके पास होती है। सत्य "परमेश्वर" है और परमेश्वर ही "सत्य" है, "सत्य" बोलने से परिवार के लोगों में मर्यादा रहेगी एवं सारे व्यवहार प्रेमपूर्वक चलते रहेंगे।
२. मर्यादा का पालन करना
बाबा सेवकों को हमेशा मार्गदर्शन करते है, की उन्होने अपने परिवार में मर्यादा का पालन करना चाहिये। महिलाओं ने अपने पती से हमेशा मर्यादा से बोलना चाहिये। प्रत्येक मानवने मर्यादा शील होना जरुरी है। छोटे बच्चोंने बड़ो से व्यवहार करते समय एक दुजे की मर्यादा रखनी चाहिये। सेवकों ने सेवकों से व्यवहार करते समय मर्यादा से रहना चाहिये। यहाँ मर्यादा का मतलब सुशिक्षित-अशिक्षित अथवा अमीर-गरीब यह मतलब नहीं है। यह तो भेदभाव है। सभी सेवक परमेश्वर को समान है। बाबाने समस्त पुजा बंद करके एक ही परमेश्वर बाबत बताया है। यही सच्ची मर्यादा है। इसका पालन करना चाहिये। मर्यादा का पालन करने से परिवार में आपस में प्रेम बढता है। जिससे सभी को जीवन में सुख, समाधान प्राप्त होता है। एक-दूजे के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न होती है। उससे सत्य व्यवहार होते है।
३. प्रेम के साथ व्यवहार करना
सेवकों ने अपने परिवार में सभी के साथ प्रेमपुर्वक व्यवहार करना चाहिये। किसी पर भी क्रोध न करें। कोई गलती करता है तो उसे समझाये। छोटे बच्चो को प्यार से बताने से उन्हें जल्दी समझ आता है। लेकीन गुस्सा करने पर उसका आत्मबल कम होता है जिससे वह घबराता है एवं मर्यादा भंग होती है। प्रेम यह भगवान को प्रिय प्रथम सदगुण है प्रत्येक मानव के दिल में हर-एक के प्रति प्रेम रहना चाहिये। इसलिये कहा गया है, "ढाई अक्षर प्रेम का, पढे सो पंडित होय।"
नमस्कार...!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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