"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (१९)
"डॉ. मनो ठुब्रीकर
प्रकरण क्रमांक:- (१९ ) "डॉ. मनो ठुब्रीकर"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने मानवों में जागृती लाने का कार्य प्रथम अपने परिवार से ही प्रारंभ किया। बाबा के शब्दों का अनादर करने से उसका क्या परिणाम होता है। यह पिछले प्रकरण में आपने देखा। अब, बाबा के शब्दों का पालन (आदर) करने से उसका क्या परिणाम होता है वह इस प्रकरण में देखेंगे।
परमेश्वर प्राप्ती के पूर्व बाबा जुमदेवजी एवं आई सौ. वाराणसी इनके घर तीन संतान पैदा हुई लेकीन उनमें से दो संताने भूतबाधा के कारण (अंधश्रध्दा) बचपन में ही परमेश्वर में विलीन हुई एवं एक ही पुत्र जीवित रहा। उसका नाम महादेव है। इसी को मनो इस नाम से संबोधित किया जाता है।
महादेव बचपन से ही सर्वसाधारण बुध्दी का लडका था। इकलौता एक पुत्र होने के कारण घर की परिस्थिती आर्थिक रुपसे गंभीर होने के बावजुद उस लडके को अधिक से अधिक पढाने की बाबां की इच्छा थी। उसकी मॅंट्रिक तक की पढाई नागपूर में महाल क्षेत्र के न्यु इंग्लीश हायस्कुल में हुई, उस समय वह क्लास में सर्व साधारण श्रेणी का लड़का समझा जाता था। मंट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण करने पर आगे की पढाई के लिये उसने साइन्स फेंकल्टी में कॉलेज में दाखिला लिया। लेकीन बी. एस.सी. पार्ट वन में पढते समय वह वार्षिक परिक्षा में नापास (फेल) हुआ। उस समय बाबाने एक भगवंत की प्राप्ती की थी।
अपने लडके की बुध्दी के बारे में बाबा को मालूम था। वह नापास होने से भी कुछ नही कहा। उलटा आगे कोशिश कर, परमेश्वर यश देगा, ऐसे व उसे समझाते थे। क्योंकी बाबा को पूर्ण विश्वास था की वह आज नही तो कल निश्चित ही उन्नती करेगा। महादेव नापास होने से बहुत उदास हुआ। एक दिन उसने बाबा को बताया की, मुझे अब इससे आगे पढना नहीं है। मेरा दिमाग पढाई में चलता नही। तब बाबांने उसे बहुत समझाया की नापास होने के कारण बुरा मानने की आवश्यकता नही है। आगे तुझे जैसा जमेगा वैसी पढाई कर, निश्चित ही तुझे यश मिलेगा लेकीन वह कुछ सुनने को तैयार नही था। उसने बाबा के समक्ष जिद्द पकडी की मैं पढता नही। उस पर बाबा को बहुत बुरा लगा। वे मन में कहने लगे की मैं पढाने को तैयार हूँ, तो यह पढता नही। क्या कहे इसे ? और वे उसपर बहुत नाराज हुए। उन्होने उससे कहा की, हमारी गोद में सपूत के बजाय 'कपूत' पैदा हुआ है ऐसा हम समझेंगे एवं तुझे जो कुछ करना है वह तु कर। उपरोक्त 'कपूत' शब्द ने महादेव के अंतःकरण को ठेस पहुँचायी। उसने बाबा से क्षमा मांगी एवं शब्द दिया की मैं इससे आगे जरुर पढुँगा। तथा बाबा जैसा कहेंगे वैसा व्यवहार करुंगा। तत्पश्यात उसने आगे की पडाई पूरी करने की ठान ली, तथा उसके बाद कभी पिछे मुडकर नहीं देखा। प्रत्येक वर्ष वह मेरीट श्रेणी में पास होने लगा। इसके पिछे बाबाके समय-समय पर होनेवाले मार्गदर्शन, परमेश्वर की कृपा एवं उसने किया हुआ अथक परिश्रम इनका सुयोग त्रिवेणी संगम स उस रामय उसने भी एक परमेश्वर को मानना शुरू किया था।
"जब भगवान देता है तो छप्पर फाडके देता है"। इस कहावत के अनुसार उसने बहुत उन्नती की। उसने वर्ष १९६९ में विश्वेश्वरया रिजनल कॉलेज ऑफ इजीनियरिंग, नागपूर से बी.ई. मेटॅलर्जी की स्नातक उपाधि प्रथम मेरीट से उत्तीण की। इस अभियांत्रिकी महाविद्यालय में पढ़ते समय उसे मेरीट स्कालरशिप (गुणवत्ता शिष्यवृत्ती) प्राप्त होती थी। तत्पश्चात उसे अमेरिका में अत्यंत प्रसिध्द न्युयॉर्क युनिव्हरसिटी की मेरीट शिष्यवृत्ती प्राप्त हुई और १९७१ में उन्होंने इसी युनिव्हरसिटी की मेटेलजी और मटेरियल सायन्स में एम.एस, पदवी संपादन की। तत्पश्चात १९७५ में यही से उसने बायो मेडीकल इंजिनियरिंग इस विषय में डॉक्टरेंट (पी.एच.डी) की परिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस समय भी उस देश की मेरीट शिष्यवृत्ती उसे मिल रही थी।
आज यही महादेव "डॉ. मनो ठुब्रीकर"के नाम से अमेरिका के युनिय्हर्सिंटी ऑफ व्हर्जिनिया मेडीकल सेंटर, व्हर्जिनिया में असोसिएटेड प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी एवं डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल रिसर्च के पद पर कार्यरत है। उसने वहाँ हार्ट व्हाल्व खास तौर से नॉर्मल डिसीज्ड और बायोप्रोस्थटीक ओरटीक व्हाल्व इसपर संशोधन किया है। उसके कई संशोधित व्यक्तव्यों को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है। उन्होने इस विषय पर लिखी हुई बहुत सी पुस्तकों को बाहरी देशों के कई युनिव्हर्सिटी में विद्यार्थीयों के लिये पाठ्यक्रम हेतु शामिल की गई है। उन्हें न्यूयॉर्क अकॅडेमी ऑफ मेडीसीन के मेरीट सर्टिफिकेट एवं नॅशनल इन्स्टीट्युट ऑफ हेल्थ यु, एस.ए. ने रिसर्च कॅरियर डेव्हलपमेंट अवाई देकर गौरवान्वित किया है। आज वह विश्व के जाने-माने प्रथम नौ वैज्ञानिकों में से सातवे क्रमांक के वैज्ञानिक है। वे विश्व में जगह-जगह उपरोक्त विषयपर मार्गदर्शन करते हैं।
इसका समस्त श्रेय महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को है। उनके मार्गदर्शन से और उनके शब्दों का आदर (पालन) करने से आज डॉ. मनो अत्युत्तम स्थिती में है। तथा सभी दृष्टि से पूरिपूर्ण है। इसके पिछे परमेश्वर की शवती है। बाबा अपने मार्गदर्शन में हमेशा कहते है की, इस मार्ग को अपनाने वाला सेवक पहले कितना ही गरीब और अनाड़ी रहा हो। लेकीन सेवक बनने पर ज्ञानार्जन से उच्च स्तर तक जा सकता है। वह कभी भी गरीब एवं दुःखी नही रह सकता। इसलिये बाबां के शब्दों का आदर करना और उसका यथावत पालन करना यह प्रत्येक सेवक का प्रथम कर्तव्य है।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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