"मानवधर्म परिचय"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक (४०)
"परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के कार्य"
प्रकरण क्रमांक:- (४०) "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के कार्य"
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के बाद गरीब और कई प्रकार से पिडीत दुःखी मानव को तत्व, शब्द और नियमों का पालन करने से परमेश्वरी कृपा प्राप्त करके जीवन में सुख और समाधानी प्राप्त कर सकते है। यह सिध्द करके दिखलाया है। इसलिये बाबाके मार्गदर्शन से चलनेवाले मानव के दुःख दुर होकर उन्हे सुख समाधानी मिलने लगी और उनके तरफ आनेवाले सेवकों की संख्या दिन-ब- दिन बढ़ती गयी। सेवकों की बढती संख्या ध्यान में लेकर सेवकों की एकता बनाकर एक संघटना स्थापित कर उस व्दारा उनके कल्याण के लिए कार्य करे जिससे सेवकों को शारिरीक, मानसिक समाधान के साथ समाज में उन्हे मान मिले इसलिए कार्य कर सकते है। इस उद्देश से ४ दिसंबर १९६९ को बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ की स्थापना की।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन से शारिरीक और मानसिक समाधान मिलनेवाले नागपूर शहर, गाँव-गाँव और देहातों में रहनेवाले सेवकों को परमेश्वरी कृपा के बारे में जगाने के लिए बाबा का मार्गदर्शन हमेशा मिलते रहे इसलिए मंडळ की तरफ से चर्चाबैठक का आयोजन होने लगा और इस प्रकार इस मार्ग का प्रचार और प्रसार करने का कार्य मंडळ व्दारा होने लगा। उसी प्रकार सेवकों की आर्थिक और सामाजिक तरक्की के लिये सेवकों व्दारा मिलनेवाला आर्थिक सहयोग से तरह तरह की संस्थाये स्थापना करने से उसका फायदा सेवकों को और समाज के लोगों को होने लगा।
१९८८ के जनवरी माह में बाबा को साक्षात्कार हुआ की, उनकी आयु खत्म हो रही है, अब वह ज्यादा दिन जिंदा नही रहेंगे। यह बात उन्होने सेवकों को बताई। इसलिए परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ के सभागृह में २० जनवरी १९८८ को कार्यकर्ताओंकी सभा बुलाई गयी। उसमें बाबा को हुये साक्षात्कार के बारे में बताया गया। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी भी सभा में हाजीर थे। उस वक्त सब सेवकों की ओर से श्री. मेघराजजी कोहाड़ इन्होने बाबा को बिनती की, "बाबा हम सब अनपढ सेवक रहने से दैवी शक्ती के बारे में और मानव जागती के कार्य के लिये हम सेवकों को बाबाका निरंतर मार्गदर्शन मिले इसलिए और कुछ साल हमे बाबा का सहयोग चाहिए। तब बाबाने मागदर्शन किया और बताया की भगवंत सेवकों की इच्छा पूरी करेंगे और अगले आदेश तक मार्गदर्शन करेंगे।"
विधीलिखीत टलता नही ऐसा कहते है। इसप्रकार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी आयी आपत्ती और मातोश्री सौ. वाराणसीबाई ठुब्रीकर इनके ३१ जुलै १९९० को हुये। स्वर्गवास तक का वृत्तांत परिणती इस प्रकरण में खुलासेवार देने में आया है।
मातोश्री सौ. वाराणसीबाई इनकी इच्छा थी की बाबा ने सेवको को और मानव को मार्गदर्शन करके परमेश्वरी कृपा और दैवी शक्ती के बारे में जगाते रहने का कार्य निरंतर करते रहे। इसलिए उन्होने अपनी बाकी आयु बाबाको दी। आई के जाने के बाद बाबा के सुपुत्र डॉ. मनो इन्होने बाबाको बिनती की, "बाबा आप यहाँ अकेले रहने के बजाय अमेरिका चले" लेकीन बाबा अमेरिका जाने को राजी नही हुये वैसे भी आईने किया हुआ त्याग ध्यान में लेते हुए सेवको को मार्गदर्शन करने के लिय बाबा यहीपर रहे।। इस प्रकार आई की इच्छा पुरी की। आई के जाने के बाद बाबा का ध्यान उनके छोटे भाई श्री. मारोतराव ठुब्रीकर इनके परिवारने रखा। उसी तरह मठाधिपती करके परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडलने बाबा को सभी तरह सहयोग दिया।
आई की आयु बाबा को मिली उस वक्त महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की आयु ७० वर्ष की थी। फिर भी सेवकों को परमेश्वरी प्राप्ती के लिए और मानव धर्म का प्रचार और प्रसार करने के लिए निरंतर नागपूर और गाँव-गाँव, देहातों में मंडल द्वारा चर्चाबैठक का आयोजन करके सेवकों को जगानेका काम बाबा अपने मार्गदर्शन से करते थे। अपने शारिरीक स्वास्थ का ध्यान न रखते हुये निरंतर दौड-धूप और मेहनत के कारण उनका स्वास्थ बिघडने लगा इस कारण कार्यकर्ताओं और सेवकों को फिक होने लगी की, बाबा के बाद इस मार्ग की जिम्मेदारी संभालकर तत्व, शब्द, नियम से चलकर
बाबा की तरह निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती होना जरुरी है। इसलिये परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल की ८/११/१९९० की संचालक मंडल की सभा में चर्चा होकर २/१२/१९९० को सभी कार्यकर्ताओं की सभा बुलाई गयी। इस सभा में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी भी हाजिर थे। कार्यकर्ताओं की इस सभा में चर्चा होकर बाबाके पश्चात बाबाने स्थापन किया हुआ इस "मानव धर्म" का और परमेश्वरी कृपा का प्रसार और प्रचार करके मानव को अंधश्रध्दा और बुरे व्यसनो से मुक्त कर एक अच्छा समाज बनाने के लिए कार्य करनेवाला कोई आदमी होना जरुरी है, ऐसे विचार सामने आये और इस बात पर बाबा हमे मार्गदर्शन करे ऐसी कार्यकर्ताओं ने बाबाको बिनती की। कार्यकर्ताओं की बिनती पर मार्गदर्शन करते हुये बाबाने बताया की, "हे सेवक बाबाने भगवत कृपा प्राप्त करने से लेकर आजतक मानव को जगाने का कार्य निष्काम भाव से किया है। मानव यह गृहस्थी होने से पुरी तरह से बाबा की तरह मोह, माया, अहंकार का त्याग करेगी ही, यह कहना मुश्कील है। " बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मडल की स्थापना की तबसे मंडल बाबाके मार्गदर्शन नुसार इस "मानव धर्म' का प्रसार, प्रचार और सेवकों के कल्याण के लिये कार्य कर रहा है। मंडल यह व्यक्ती नही, एक शक्ती है। आगे भी मंडल यह कार्य करता रहेगा। फिर भी सेवकों की इच्छा बाबाने सुनी। आप सेवक २१ दिन के साधे कार्य करो और भगवान से बिनंती करो। भगवान को क्या घडाना है वह घडायेगा। बाबा के आदेश के नुसार २१/१२/१९९० से २१ दिन के साधे कार्य सभी सेवकोने किये वह इस तरह थे।
"भगवान बाबा हनुमानजी और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इन्हे हम बिनती करते है की, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी तरह त्यागी और निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती मानव धर्म का निरंतर प्रचार करने के लिए बाबा रहते हुये उनके। उपस्थिती में बनाये ऐसी हम भगवान बाबा हनुमानजी और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी आपको बिनती करते है।"
उपर दिये गये कार्य करने के बाद भी बाबा के रहते याने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी परमेश्वर में विलीन होने तक(३ अक्तुबर १९९६ तक) बाबा जैसा त्यागी और निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती बना नही। इसी का मतलब उपर दिये नुसार बाबा ने स्थापित किया हुआ मानव धर्म का और परमेश्वरी कृपा का प्रचार और प्रसार का कार्य करने का काम बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल को सौपा है और मंडल यह कार्य निरंतर कर रहा है।
१) जनरल चर्चा बैठक
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल स्थापित करने के बाद बाबाने परमेश्वरी कृपा का प्रचार और प्रसार करने के लिए सेवकों को आया आत्मानुभव और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का मार्गदर्शन सेवको को मिलते रहे इसलिए नागपूर शहर में विभागवार गट बनाकर हर गट में चर्चा बैठक लेने का आदेश बाबाने दिया। उसी तरह गाँव-गाँव में भी चर्चा बैठक ली जाये ऐसा बाबाने कहाँ। उस प्रकार चर्चा बैठक होने लगी। मंडल के वर्धमान नगर स्थित मानव मंदिर में भी हर शनिवार को शाम को चर्चाबैठक होती है। इसके उपरांत बाहरगाँव में आसपास के कुछ गांव के सेवक मिलकर हवन कार्य और
परमेश्वरी कृपा और मानव धर्म का प्रसार, प्रचार करने के लिए मंडल के सहयोग से सेवक सम्मेलन और जनरल चर्चाबैठक का आयोजन होता है। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी थे तब तक बाबा कार्यक्रम में स्वयं हाजीर रहकर सेवकों को मार्गदर्शन करते थे। बाबा परमेश्वर में विलीन होने के बाद भी मंडल के सहयोग से सेवक सम्मेलन और जनरल चर्चबैठक का आयोजन हो रहाँ है। इन कार्यक्रमों में मंडल के पदाधिकारी एंव मार्गदर्शन करते हैं। उससे दुःखी, पिडीत, अंधश्रध्दा से पिडीत और व्यसनाधिन लोगों को परमेश्वरी कृपा का फायदा मिलकर वे सुखी, समाधानी और व्यसनमुक्त होने से दिन-बदिन सेवको की संख्या बढ रही है।
२) मानवधर्माची शोभायात्रा
भारत यह देश बहुधर्मीय देश होने से हर धर्म के लोग अपने अपने धर्म का प्रसार के लिए तरह तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते है। इनमे रामनवमी शोभायात्रा, झुलेलाल शाभायात्रा, मुस्लीम धर्म की शोभायात्रा इस प्रकार सब धर्म के लोग अपने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए शोभायात्रा का आयोजन करते है।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने परमेश्वरी कृपा प्राप्त की। बाबाके मार्गदर्शन के । नुसार चार तत्व, तीन शब्द और पांच नियमों का पालन करने से मानव को उनके दुख, अंधश्रध्दा और बुरे व्यसनों से मुक्ती मिली और उनका परिवार सुखी और समाधानी हुआ। बाबा के यह कार्य मानव कल्याण का रहने से उसका लाभ हजारो लोगों को हुआ। है। बाबाने स्थापित किया हुआ इस "मानव धर्म'" का प्रसार और प्रचार करने के लिये। शोभायात्रा निकालनी चाहिए ऐसा कार्यकर्ताओं को लगने लगा। कार्यकर्ता ओने अपने विचार बाबा के सामने रखे। बाबा ने सेवक के विचार और उनकी इच्छा ध्यान में लेकर। शोभायात्रा निकालने के लिय संमती दी। इस तरह २४/२/१९९१ को पहली बार मानव धर्म की भव्य शोभायात्रा महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवासस्थान टिमकी, नागपूर यहाँ से निकालकर वह गोलीबार चौक, गांजाखेत, शहीद चौक, गांधी पुतला, टेलिफोन एक्सचेंज,सुभाष पुतला, हरीहर मंदिर मार्ग से वर्धमान नगर स्थित "मानव मंदिर" में आने के बाद उस जगह चर्चाबैठक होकर महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने सेवको को मार्गदर्शन किया। इस शोभायात्रा में हजारो सेवक महिला, पुरुष सम्मिलीत थे। उसी तरह बाबा के मार्गदर्शन, सेवक को आये हुये अनुभव पर आधारित असंख्य झाँकीया भी सम्मिलीत थी।
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी परमेश्वर में विलीन होने के बाद बाबा के जन्मदिन ३ एप्रिल को "मानव मंदिर" में जयंती कार्यक्रम आयोजित होने लगा। श्री. गणपतरात टाकळीकर इनकी अध्यक्षता में २२/३/१९९८ को हुये परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के संचालक मंडल की सभा में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी जयंती के उपलक्ष में शोभायात्रा निकालने के बारे में चर्चा हुयी और इसे सभी ने मंजूरी दी। कार्यकर्ताओं की सभा बुलाई गई उसमें सभी ने सहमती दर्शाते हुये २४/२/१९९१ को निकाली गयी शोभायात्रा जैसे ही हर साल ३ एप्रिल को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की जयंती के उपलक्ष में शोभायात्रा बाबा का निवासस्थान टिमकी से निकाली जाये इसे सभी ने मान्यता दी। इस तरह हर साल ३ एप्रिल को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के निवासस्थान टिमकी से शोभायात्रा निकाली जाती है। उसमें लाखो सेवक और असंख्य झाकीया सम्मिलीत होती है। शोभायात्रा का समापन वर्धमान नगर स्थित मानव मंदिर में होता है। उसके बाद मानव जागृती, अंधश्रध्दा और व्यसनमुक्ती पर चर्चा सत्र का आयोजन होता है।
३) एक भगवंत का प्रगट दिन-
महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने उनके परिवार में हो रहे भुतबाधा, तकलिफे और उस कारण परिवार में निरंतर आ रहे दखो से मुक्ती पाने के लिए बाबा को मिले हुए मंत्र व्दारा विधीवत ४२ दिन की साधना कर भगवान बाबा हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने से बाबा के परिवार में हो रही भुतबाधा की तकलीफे पुरी तरह खत्म हुई और उनके परिवार में सुख समाधानी मिली। लोगों को इस बारे में जैसे-जैसे जानकारी होने लगी। वैसे-वैसे दुखी और भुतबाधाओं से पिडीत लोग बाबा के यहाँ आने लगे वाबा मंत्र से फुक मारकर उनकी तकलिफे दूर करने लगे। लेकीन भुतबाधाओं से पिडीत लोगों को थोडे समय के लिए ही लाभ होता था। इसलिए बाबाने सोचा की हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के बाद भी भुतबाधा पर पुरी तरह मात कर नहीं सकता। तब उन्होने हुनुमानजी के सामने सवाल रखा की हे हुनुमानजी संसार में ऐसी कौनसी शक्ती है, जो शैतान को एक पल में निकाल सके । भूत किसे कहें और भगवान किसे कहे। इसका स्पष्टीकरण हमे समझा दो। तब हनुमानजी ने बाबा को बताया की "यह एक ही परमेश्वर है। वह चौबीस घंटे चैतन्य है। उसे प्राप्त करने के लिए पांच दिन हवन करना पडेगा।" वह दिन रक्षाबंधन का था।
हनुमानजी ने किये हुए मार्गदर्शन के नुसार बाबा परिवार के लोगों से बोले की "परिवार के लोग सुनो, हम कल से पांच दिन हवन करेंगे।" इस तरह दूसरे दिन से बाबाने पांच दिन के हवन की शुरुवात की। वह दिन श्रावण वद्य प्रतिपदा होकर तारिख २० अगस्त १९४८ थी। हर दिन एक इस प्रकार शाम को हवन करने लगे। पाचवे दिन हवन समाप्त होते बराबर बाबा निराकार अवस्था में आये। उस वक्त बाबा के मुखकमलों व्दारा शब्द बाहर निकले, "घरवाले सुनो, मैं कहाँ आ गया हूँ। सेवक भगवान बन गया ।" कुछ देर बाद बाबा निराकार अवस्था सें बाहर आये मगर वे गुंगी मे ही थे।
दूसरे दिन याने छटवे दिन तारिख २५ अगस्त १९४८ को बाबा गुंगी मे ही रहने के बजह से परिवार के लोगों ने हवन कर कार्य की समाप्ती की। हवन समाप्त होते ही बाबा का ब्रम्हांड चढा और वे फिरसे निराकार अवस्था में आये। उस समय बाबा के मुखकमल से उदगार निकले की, "मैं सबका एक भगवान हूँ। सेवक, तु मुझे कहा ढुँढ रहा है। मैं चोबीस घंटे तेरे पास हँ। जो क्षण में तुझसे छुट जाऊँगा, तेरा शरीर मृत हो जायेगा।" कुछ समय बाद फिरसे उदगार निकले की, "हे सेवक मैं भगवान हूँ। तु मानव है। मैं जानता हूँ, मानव यह बेईमान है। उनमे से तु एक मानव है। भलेही तुने मुझे प्राप्त किया, मैं भगवान हूँ। मैं मानवपर कदापिही विश्वास नही करता।" तब बाबाने भगवान से इमानदारी से चलने का वचन दिया। कुछ देर बाद बाबा के मुखकमल से शब्द निकले की, "परमात्मा एक" "मरे या जिये भगवत नामपर।" यह दो वचन बाबाने भगवान को दिये। कुछ देर बाद फिरसे शब्द निकले की "दुःखदारी दूर करते हुये उध्दार।" "इच्छा अनुसार भोजन" यह दो वचन भगावन ने बाबा को दिये। यही चारों वचन बाबाने
परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने के लिए सिध्दान्त(तत्व) के रुप में स्विकारा। इस मार्गपर आनेवाले लोगोने इस सिध्दान्त(तत्व) का पालन करने से उनके दुःख और कष्ट खत्म होकर उनको सुख और समाधानी मिलेगी ऐसा बाबाने मार्गदर्शन किया। इस तरह इन सिध्दान्तोका पालन करनेवाले लाखो सेवको को सख और समाधानी मिली है। यह तत्व बाबा को रक्षाबंधन के बाद घटवे दिन मिलने की वजह से हर साल वह दिन एक भगवंत का प्रगट दिन करके मनाया जाता है।
दुःखी, कष्टी, अंधश्रध्दा से पिडीत और व्यसनाधीन लोगोने परिवार का दुःख दूर करने के लिये औषधोपचार, तांत्रिक, मांत्रिक और तरह तरह की कोशिशे करने के बाद भी उनके दुख दूर न होने से वे इस मार्ग पर आकर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन से और बाबाने दिये हुये तत्व, शब्द और नियमों का अपने परिवार में पालन करने से उनके परिवार के दुख खत्म होकर उनको सुख समाधानी मिली है। और वे अपना जीवन खुशीसे जी रहे है, और वे बाबाके सेवक बने है। इसलिये दिवाली, दशहरा इन त्यौहारोसे भी "एक भगवंत का प्रगट दिन" यह उनके लिए बहोत ही महत्व का रहने के कारण उस दिन सब सेवक अपने अपने घर हवन कर के त्यौहार मनाते है। उसी तरह मंडळ के वर्धमान नगर के "मानव मंदिर" में एक दिन पहले"एक भगवंत का प्रगट दिन" के उपलक्ष में कार्यक्रम का आयोजन कर उसने परमेश्वरी कृपा, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन, अंधश्रध्दा निर्मुलन, व्सनमुक्ती और सिमित परिवार विषयोंपर चर्चासत्र का आयोजन होता है। उसी प्रकार १० वी, १२ वी और पदवी परिक्षा में प्राविण्य श्रेणी प्राप्त सेवकों के लडके लडकियों को पुरस्कार देकर सम्मानित करने में आता है। इस कार्यक्रम में हजारो सेवक महिला और पुरुष हाजीर रहकर कार्यक्रम लाभ उठाते है।
४) ३ अक्तुबर पुण्यतिथी कार्यक्रम -
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इन्होने परमेश्वरी कृपा प्राप्त कर मानव को परमेश्वर का परिचय करा दिया। परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए मानव ने सत्य मर्यादा, प्रेम का अपने जीवन में स्विकार कर तत्व, शब्द और नियम से अपने परिवार मे चलने से उन्हें कभी भी दुखी नही होना पडेगा ऐसा बाबाने देशवासियों को संदेश दिया है इसका अनुभव हजारो लोगों को आया है। मानव ने अपने जीवन में मानवता से व्यवहार करना याने मानव धर्म का पालन करना है और उसके लिए सत्य, मर्यादा और प्रेम से बर्ताव करना आवश्दयक है। फिलहाल कलियुग शुरु है तो भी मानव ने मानव धर्म का पालन किया तो वे सतयुग निर्माण कर सकते है। बाबाके मार्गदर्शन के अनुसार हजारो सेवक मानव धर्म का पालन कर रहे है, इस प्रकार बाबने सतयुग महानत्यागी बाबा जुमदेवजी युगप्रवर्तक है। उनका देहान्त ३ अक्तुबर १९९६ का हुआ और वे परमेश्वर में विलीन हो गये। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने दुनिया एक नया। मार्ग दिखाया है ऐसे महान युगप्रवर्तक की बर्शी (पुण्यतिथी) हर साल ३ अक्तुबर को मनाई जती है। परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ के वर्धमान नगर स्थित "मानव मंदिर" में बाबा की पुण्यतिथी के उपलक्ष्य में मानव धर्म पर चर्चासत्र और मार्गदर्शन का आयोजन करने में आता है। उसी तरह रक्तदान शिबीर आँखो की जाँच शिबार का आयोजन किया जाता है। इस पुरणतिथी कार्यक्रम में हजारो महिला और पुरुष सेवक हाजीर रहकर कार्यक्रम का लाभ उठाते है।
५) १५ नवम्बर जनरल हवन कार्य-
महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने उन्हे मिला हुआ सन्यासी के मंत्र व्दारा ४२ दिन की साधना कर उन्होने भगवान बाबा हनुमानजी की कृपा प्राप्त की। बाबा के यहाँ आनेवाले दुःखी मानव को मंत्र व्दारा फुक मारकर बाबा उनके दुख पुरी तरह दुर नही होता था। इसलिए बाबाने हनुमानजी को मार्गदर्शन करने की बिनती की। उसपर मार्गदर्शन करते हुए हुनुमानजी ने बाबा को बताया की, सृष्टी रचयता एक परमेश्वर की कृपा प्राप्त करना होगा। इसके लिए हर दिन शाम को एक इस तरह पांच दिन हवन करना होगा।
हनुमानजी ने किये मार्गदर्शन नुसार बाबाने हवन करना शुरु किया वह दिन रक्षाबंधन के बाद का दिन था। पाचवे दिन हवन समाप्त होते बराबर बाबा निराकार अवस्था में आये और देहभान खो बैठे। इस तरह उन्हे विदेह स्थिती प्राप्त हयी थी। बाबा की यह स्थिती देखकर परिवार के लोग चिंताग्रस्त हये छटवे दिन परिवार के लोगोने हवन करके कार्य की समाप्ती की। उस समय बाबा के मुखकमलोसे चार वचन निकले। यही चार वचन निकले। यही चार वचन याने परमेश्वर प्राप्ती के चार तत्व है। दसरे दिन परिवार के लोगो ने बाबा को बिनती की, "'हे भगवान आप सेवक को इस विदेह स्थिती से मुक्त करो, सेवक की खुद की गृहस्थी है। बच्चा है। " उस वक्त भगवान ने बाबा के मुखकमलों से जवाब दिया की, "अगर आपका भाई आपको इतना प्यारा था, आपको उससे इतनी हमदर्दी थी तो आपने उसे भगवान की सेवा करने क्यों लगाई, उस समय आपने उसे रोकना था। अब सेवक भगवान का हो गया, न की किसी का रहा और भगवान सेवक का हो गया है। मेरा सर सेवक का धड और सेवक का सर मेरा धड ऐसा विलीन हो गया है। इस तरह दोनो की आत्मा एक हो गई है। " कुछ देर बाद भगवान ने बाबा के मुखकमल से फिरसे परिवार के लोगों को संबोधित शब्द निकले की, "सेवक भगवान बन गया। इसलिए सेवक एक ही समय थोडासा साधा भोजन करेंगे। जिसमें दाल, चावल, सब्जी और घी होगा। और कोई महिला घर की हो या बाहर की, उसकी छाँव सेवक पर ना पड़े। नही तो सेवक कही का नही रहेगा। जिंदा नही रहेगा।" इस प्रकार भगवान ने सेवक
को दैवी शक्ती की जागृती दी।
बाबा की यह विदेह स्थिती देखकर चिंताग्रस्त हये परिवार के लोगों को एक दिन बाबा ने मार्गदर्शन करते हुये कहाँ की, "परिवार वाले सुनो, आप सब लोग तीन माह तक भगवान से बिनती करो की हमारे भाई की यह अवस्था समाप्त कर उन्हे गृहस्थी में रखो। भगवान को दया आयेगी तो बाबा गहस्थी में रहेंगे।" बाबाने किये मार्गदर्शन नुसार परिवार के लोगों ने हर रोज सबेरे सरज निकलने के पहले बिनती करने के कार्य शुरु किये। लगभग तीन माह बाबा विदेह स्थिती में थे। बाबा की विदेह स्थिती पुरी तरह समाप्त होकर पुरा होश मे आये। वह दिन १५ नवंबर १९४८ का था।
सन्यासी के मंत्र व्दारा परमेश्वरी कार्य करना याने सन्यासी होकर ही परमेश्वरी कृपा प्राप्त कर सकते है। उसी तरह जिन्होने कृपा प्राप्त की वह व्यक्ती मंत्र व्दारा फुक मारकर बाकी लोगों का दूःख दूर कर सकता है। गृहरस्थी में रहने वाला व्यक्ती ऐसे मंत्रोसे भगवत कृपा प्राप्त नही कर सकता। लेकीन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने सन्यासी के मंत्रोच्दारा प्राप्त की हुयी परमेश्वरी कृपा अपने त्यागसे और निष्काम कर्मयोग से गृहस्थी में रहने वाले दुखी, पिडीत लोगो के कल्याण के लिए काम आकर उन्हें सुख और समाधान मिला दिया है। अगर बाबा विदेह स्थितीसे बाहर नही आते तो गृहस्थी में रहने वाले मानव को इस कृपा का लाभ नही मिलता। इसलिए बाबा की विदेह स्थिती समाप्त होकर वे होश
में आये, इसलिये याद रहे करके हर साल १५ नवबंर को मंडल के मानव मंदिर में जनरल हवन कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमे सहभाग होनेवाले सेवक अपने-अपने खाने के डिब्बे लेकर आते है। और हवन कार्य समाप्ती के बाद, भगवत कार्य की चर्चा बैठक होने के उपरान्त सभी सेवक सहभोजन का आनंद लेते है। तद्पश्चात सेवकों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतीक कार्यक्रम का आयोजन रहता है। इस जनरल हवन कार्य में भी लाखों सेवक महिला पुरुष अपने-अपने डिब्बे के साथ हाजीर रहकर इस भगवत कार्य का लाभ उठाते है।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
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