Sunday, May 17, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (१५) "माँ की ममता"

                  "मानवधर्म परिचय"

"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (हिंदी) सुधारित द्वितीय आवृत्ती

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर


           "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                प्रकरण क्रमांक (१५)

                    "माँ की ममता"


प्रकरण क्रमांक:- (१५) "माँ की ममता"


         महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने एक भगवंत की प्राप्ती की, और तब से वे । भगवान के प्रति लोगों को जागृत करने का कार्य निष्काम भावना से कर रहे हैं। इस कृपा का लाभ अनेक लोगों कों मिलने से बहुसंख्य सेवक इस मार्ग में आ रहे है ।उन सब को विविध प्रकार के लाभ उदा. शारिरीक, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक तथा पुत्र प्राप्ती इत्यादी बाबत लाभ भी उन्हें प्राप्त हो रहे है। उसके साथ ही उन्हें विभिन्न चमत्कारिक अनुभव हो रहे है। बाबांने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद भी भगवत उनकी कभी-कभी परिक्षा लेते है। उसमें से यह एक प्रसंग है। सन १९५१ के अप्रैल माह की यह घटना है। बाबा की जेष्ठ भाभी श्री. बाळकृष्णराव की पत्नी श्रीमती सीताबाई इन्हें सपने में बाबा हनुमानजीने आकाश में उडने की स्थिती में दर्शन दिये एवं आकाशवाणी की, की सेवक के (बाबा के) पांच भाईयों के परिवार में जो स्त्री गर्भवती है, उसे लडका होगा और उसकी आयु मात्र तीन महिने की होगी। इसके बाद वह दुनिया से चला जाएगा।

        इस समय श्री. नारायणराव इनकी पत्नी सात माह से गर्भवती थी। वह महिला नौ माह पूर्ण होने पर १ जुलाई १९५१ को प्रसुत हुई और उसने एक सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया। भविष्यवाणी सच हुई। श्री. नारायणराव के यहाँ आनेवाली यह प्रथम संतान और वह भी पुत्र होने से सभी तरफ आनंद ही आनंद हुआ। बालक को झुले में डाला गया। गरीब परिस्थिती होने के बावजुद लडके का नामकरण(बारसा) धूमधाम से मनाया गया। लड़का दिनो-दिन बढ रहा था। अच्छी तरह खेलता था उसे कभी बुखार नही आया। सर्दी नही हुई। दुध नही पिता या हमेशा रोते रहता हो, ऐसी कोई शिकायत भी नही हुई। इसलिये वह सबका प्यारा था। उसका लाड-प्यार भी वैसे ही होता था। वह तीन माह का होने तक उसे कोई भी तकलीफ नही हुई।

        "भगवान की लीला न्यारी" इस कथनानुसार घटित भविष्यवाणी के अनुसार तीन माह पुरे हुए और दूसरे ही दिन अचानक वह बीमार हुआ। उसका शरीर एकदम ठंडा हो गया। शरीर की हलचल बंद हुई। डॉक्टर के उपचार से कोई फायदा नहीं हुआ। सुबह का समय था। उस लड़के के पिता नारायणराव बच्चे को लेकर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के यहाँ आये, पिता बहुत गुस्से में थे। वह लडके के मोहमाया में लिप्त थे। उनके साथ परिवार के अन्य लोग भी इकठठा हुए। उन्होने उस बच्चे को बाबा के सामने नीचे सुलाया। वह गुस्से से बोले, "अपने घर में बाबा(भगवंत) है तो यह बच्चां जावित रहना चाहिए। तभी सच्चा परमेश्वर है। अन्यथा परमेश्वर की प्राप्ती झुठ है।" बाबा को परमेश्वर के बारे में ऐसे शब्द सुनकर बहुत दुःख हुआ। उनके समक्ष बहुत बड़ा प्रश्न उपस्थित हुआ। परिवार के किसी भी व्यक्ती के ऐसे विचार उचित नही है ऐसा उन्होंने समझा। वे निराकार अवस्था में आये और परिवार के लोगों को संबोधित किया। "बाबा हनुमानजी ने उस बाई को बताया की बच्चा तीन महिने की आयु लेकर आने वाला है अब उसकी तीन महिने की आयु पूरी हुई हैं। इसे जाना है। अब इसे किसकी आयु दे।"और आदेश दिया की, "परिवार के लोग एक कतार में खडे हो जाओ और जिसकी इच्छा हो वह कहे की मेरी आयु इसे दे दो।" तदनुसार सब लोग पुरुष तथा महिलाएँ एक कतार में अलग-अलग खडे हुए। सभी ओर शांतता थी। सभी विचाराधीन हुए। किसी के भी मुख से शब्द नही निकला की, मेरी आयु इस बच्चे को दो। क्योंकी सभी को अपनी-अपनी जान प्यारी थी। प्रत्येक को लग रहा था की मैने अधिक जीना चाहिये और यह स्वाभाविक भी है, कुछ समय बाद उस बच्चे की माँ ने बाबां को बिनती की, बाबा मुझे सोचने के लिएे दो घंटे  का समय चाहिये। बाबांने उसे दो घंटे का समय दिया निराकार बैठक समाप्त हुई। बच्चा वही पड़ा रहा। दो घंटे बाद पुनः उसी स्थान पर निराकार बैठक हुई। बच्चा वैसे ही अचेतन अवस्था में पड़ा रहा। सभी लोग इकठ्ठा हुये थे। बाबा निराकार में आये और परियार के लोगों को कहा, "परिवार के लोग सुनो, बच्चे को आयुष्य मिल गया।" इस संबंध में बाबांने किसी प्रकार का संकेत नही दिया। बाबा के शब्द उनके मुखकमल से बाहर निकलते ही उस अचेतन बच्चे ने एकदम जोरो से रोना शुरु किया तब सब लोग चकित हुए। उस बच्ये को कहाँ से आयुष्य मिले इस बारे में बाबाने किसी प्रकार का संकेत नही दिया। इस प्रकार "भगवंत की लीला निराली," इस कथन को बाबांने सिध्द कर दिखाया।

        पन्द्रह दिन के बाद उस बच्चे की माँ अचानक बीमार हुई। बहुत औषधोपचार किया। परिवार के लोगों ने भगवान को विनती की, लेकीन उससे कोई लाभ नही हुआ। उस महिला ने जो दो घंटे का समय मांगा था। उसके पिछे उसका क्या द,इरादा था, यह उसने किसी को नही बताया था। अंततः कुछ दिनों में वह भगवान को प्यारी हुई। वह यह संसार छोड़ गई। लडका अभी भी जिवीत है।

         तब बाबांने बताया की इस बाई ने अपनी आयु अपने बच्चे को दी। उसने प्रत्यक्ष सब के सामने नही बताया। तब भी उसने भगवंत को उस तरह बिनती की थी। इससे "माँ की ममता" कितनी महान है, तथा एक की आयु समाप्त कर दुसरे को दिया जा सकता है यह इस उदाहरण से इस मार्ग ने सिध्द किया है। सचमूच यह मार्ग(मानवधर्म) अन्यों की तुलना में "दुनिया में निराला मार्ग है।"

         जीवित रहे लडके का नाम "अशोक" है और आज वह साठ वर्ष का है। वह सुख एवं समाधानी तथा सर्वगुण संपन्न है।

नमस्कार...!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

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🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।


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