Sunday, May 31, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (४०) "परमपुज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के कार्य"

                 "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



             "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                 प्रकरण क्रमांक (४०)

"परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के कार्य"


प्रकरण क्रमांक:- (४०) "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के कार्य"


            महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के बाद गरीब और कई प्रकार से पिडीत दुःखी मानव को तत्व, शब्द और नियमों का पालन करने से परमेश्वरी कृपा प्राप्त करके जीवन में सुख और समाधानी प्राप्त कर सकते है। यह सिध्द करके दिखलाया है। इसलिये बाबाके मार्गदर्शन से चलनेवाले मानव के दुःख दुर होकर उन्हे सुख समाधानी मिलने लगी और उनके तरफ आनेवाले सेवकों की संख्या दिन-ब- दिन बढ़ती गयी। सेवकों की बढती संख्या ध्यान में लेकर सेवकों की एकता बनाकर एक संघटना स्थापित कर उस व्दारा उनके कल्याण के लिए कार्य करे जिससे सेवकों को शारिरीक, मानसिक समाधान के साथ समाज में उन्हे मान मिले इसलिए कार्य कर सकते है। इस उद्देश से ४ दिसंबर १९६९ को बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ की स्थापना की।

            महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन से शारिरीक और मानसिक समाधान मिलनेवाले नागपूर शहर, गाँव-गाँव और देहातों में रहनेवाले सेवकों को परमेश्वरी कृपा के बारे में जगाने के लिए बाबा का मार्गदर्शन हमेशा मिलते रहे इसलिए मंडळ की तरफ से चर्चाबैठक का आयोजन होने लगा और इस प्रकार इस मार्ग का प्रचार और प्रसार करने का कार्य मंडळ व्दारा होने लगा। उसी प्रकार सेवकों की आर्थिक और सामाजिक तरक्की के लिये सेवकों व्दारा मिलनेवाला आर्थिक सहयोग से तरह तरह की संस्थाये स्थापना करने से उसका फायदा सेवकों को और समाज के लोगों को होने लगा।

        १९८८ के जनवरी माह में बाबा को साक्षात्कार हुआ की, उनकी आयु खत्म हो रही है, अब वह ज्यादा दिन जिंदा नही रहेंगे। यह बात उन्होने सेवकों को बताई। इसलिए परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ के सभागृह में २० जनवरी १९८८ को कार्यकर्ताओंकी सभा बुलाई गयी। उसमें बाबा को हुये साक्षात्कार के बारे में बताया गया। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी भी सभा में हाजीर थे। उस वक्त सब सेवकों की ओर से श्री. मेघराजजी कोहाड़ इन्होने बाबा को बिनती की, "बाबा हम सब अनपढ सेवक रहने से दैवी शक्ती के बारे में और मानव जागती के कार्य के लिये हम सेवकों को बाबाका निरंतर मार्गदर्शन मिले इसलिए और कुछ साल हमे बाबा का सहयोग चाहिए। तब बाबाने मागदर्शन किया और बताया की भगवंत सेवकों की इच्छा पूरी करेंगे और अगले आदेश तक मार्गदर्शन करेंगे।"

         विधीलिखीत टलता नही ऐसा कहते है। इसप्रकार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी आयी आपत्ती और मातोश्री सौ. वाराणसीबाई ठुब्रीकर इनके ३१ जुलै १९९० को हुये। स्वर्गवास तक का वृत्तांत परिणती इस प्रकरण में खुलासेवार देने में आया है।

         मातोश्री सौ. वाराणसीबाई इनकी इच्छा थी की बाबा ने सेवको को और मानव को मार्गदर्शन करके परमेश्वरी कृपा और दैवी शक्ती के बारे में जगाते रहने का कार्य निरंतर करते रहे। इसलिए उन्होने अपनी बाकी आयु बाबाको दी। आई के जाने के बाद बाबा के सुपुत्र डॉ. मनो इन्होने बाबाको बिनती की, "बाबा आप यहाँ अकेले रहने के बजाय अमेरिका चले" लेकीन बाबा अमेरिका जाने को राजी नही हुये वैसे भी आईने किया हुआ त्याग ध्यान में लेते हुए सेवको को मार्गदर्शन करने के लिय बाबा यहीपर रहे।। इस प्रकार आई की इच्छा पुरी की। आई के जाने के बाद बाबा का ध्यान उनके छोटे भाई श्री. मारोतराव ठुब्रीकर इनके परिवारने रखा। उसी तरह मठाधिपती करके परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडलने बाबा को सभी तरह सहयोग दिया।

             आई की आयु बाबा को मिली उस वक्त महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की आयु ७० वर्ष की थी। फिर भी सेवकों को परमेश्वरी प्राप्ती के लिए और मानव धर्म का प्रचार और प्रसार करने के लिए निरंतर नागपूर और गाँव-गाँव, देहातों में मंडल द्वारा चर्चाबैठक का आयोजन करके सेवकों को जगानेका काम बाबा अपने मार्गदर्शन से करते थे। अपने शारिरीक स्वास्थ का ध्यान न रखते हुये निरंतर दौड-धूप और मेहनत के कारण उनका स्वास्थ बिघडने लगा इस कारण कार्यकर्ताओं और सेवकों को फिक होने लगी की, बाबा के बाद इस मार्ग की जिम्मेदारी संभालकर तत्व, शब्द, नियम से चलकर
बाबा की तरह निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती होना जरुरी है। इसलिये परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल की ८/११/१९९० की संचालक मंडल की सभा में चर्चा होकर २/१२/१९९० को सभी कार्यकर्ताओं की सभा बुलाई गयी। इस सभा में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी भी हाजिर थे। कार्यकर्ताओं की इस सभा में चर्चा होकर बाबाके पश्चात बाबाने स्थापन किया हुआ इस "मानव धर्म" का और परमेश्वरी कृपा का प्रसार और प्रचार करके मानव को अंधश्रध्दा और बुरे व्यसनो से मुक्त कर एक अच्छा समाज बनाने के लिए कार्य करनेवाला कोई आदमी होना जरुरी है, ऐसे विचार सामने आये और इस बात पर बाबा हमे मार्गदर्शन करे ऐसी कार्यकर्ताओं ने बाबाको बिनती की। कार्यकर्ताओं की बिनती पर मार्गदर्शन करते हुये बाबाने बताया की, "हे सेवक बाबाने भगवत कृपा प्राप्त करने से लेकर आजतक मानव को जगाने का कार्य निष्काम भाव से किया है। मानव यह गृहस्थी होने से पुरी तरह से बाबा की तरह मोह, माया, अहंकार का त्याग करेगी ही, यह कहना मुश्कील है। " बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मडल की स्थापना की तबसे मंडल बाबाके मार्गदर्शन नुसार इस "मानव धर्म' का प्रसार, प्रचार और सेवकों के कल्याण के लिये कार्य कर रहा है। मंडल यह व्यक्ती नही, एक शक्ती है। आगे भी मंडल यह कार्य करता रहेगा। फिर भी सेवकों की इच्छा बाबाने सुनी। आप सेवक २१ दिन के साधे कार्य करो और भगवान से बिनंती करो। भगवान को क्या घडाना है वह घडायेगा। बाबा के आदेश के नुसार २१/१२/१९९० से २१ दिन के साधे कार्य सभी सेवकोने किये वह इस तरह थे।

           "भगवान बाबा हनुमानजी और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इन्हे हम बिनती करते है की, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी तरह त्यागी और निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती मानव धर्म का निरंतर प्रचार करने के लिए बाबा रहते हुये उनके। उपस्थिती में बनाये ऐसी हम भगवान बाबा हनुमानजी और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी आपको बिनती करते है।"

           उपर दिये गये कार्य करने के बाद भी बाबा के रहते याने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी परमेश्वर में विलीन होने तक(३ अक्तुबर १९९६ तक) बाबा जैसा त्यागी और निष्काम कार्य करनेवाला व्यक्ती बना नही। इसी का मतलब उपर दिये नुसार बाबा ने स्थापित किया हुआ मानव धर्म का और परमेश्वरी कृपा का प्रचार और प्रसार का कार्य करने का काम बाबाने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल को सौपा है और मंडल यह कार्य निरंतर कर रहा है।

१) जनरल चर्चा बैठक


            परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल स्थापित करने के बाद बाबाने परमेश्वरी कृपा का प्रचार और प्रसार करने के लिए सेवकों को आया आत्मानुभव और महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का मार्गदर्शन सेवको को मिलते रहे इसलिए नागपूर शहर में विभागवार गट बनाकर हर गट में चर्चा बैठक लेने का आदेश बाबाने दिया। उसी तरह गाँव-गाँव में भी चर्चा बैठक ली जाये ऐसा बाबाने कहाँ। उस प्रकार चर्चा बैठक होने लगी। मंडल के वर्धमान नगर स्थित मानव मंदिर में भी हर शनिवार को शाम को चर्चाबैठक होती है। इसके उपरांत बाहरगाँव में आसपास के कुछ गांव के सेवक मिलकर हवन कार्य और
परमेश्वरी कृपा और मानव धर्म का प्रसार, प्रचार करने के लिए मंडल के सहयोग से सेवक सम्मेलन और जनरल चर्चाबैठक का आयोजन होता है। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी थे तब तक बाबा कार्यक्रम में स्वयं हाजीर रहकर सेवकों को मार्गदर्शन करते थे। बाबा परमेश्वर में विलीन होने के बाद भी मंडल के सहयोग से सेवक सम्मेलन और जनरल चर्चबैठक का आयोजन हो रहाँ है। इन कार्यक्रमों में मंडल के पदाधिकारी एंव मार्गदर्शन करते हैं। उससे दुःखी, पिडीत, अंधश्रध्दा से पिडीत और व्यसनाधिन लोगों को परमेश्वरी कृपा का फायदा मिलकर वे सुखी, समाधानी और व्यसनमुक्त होने से दिन-बदिन सेवको की संख्या बढ रही है।

२) मानवधर्माची शोभायात्रा


          भारत यह देश बहुधर्मीय देश होने से हर धर्म के लोग अपने अपने धर्म का प्रसार के लिए तरह तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते है। इनमे रामनवमी शोभायात्रा, झुलेलाल शाभायात्रा, मुस्लीम धर्म की शोभायात्रा इस प्रकार सब धर्म के लोग अपने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए शोभायात्रा का आयोजन करते है।
        महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने परमेश्वरी कृपा प्राप्त की। बाबाके मार्गदर्शन के । नुसार चार तत्व, तीन शब्द और पांच नियमों का पालन करने से मानव को उनके दुख, अंधश्रध्दा और बुरे व्यसनों से मुक्ती मिली और उनका परिवार सुखी और समाधानी हुआ। बाबा के यह कार्य मानव कल्याण का रहने से उसका लाभ हजारो लोगों को हुआ। है। बाबाने स्थापित किया हुआ इस "मानव धर्म'" का प्रसार और प्रचार करने के लिये। शोभायात्रा निकालनी चाहिए ऐसा कार्यकर्ताओं को लगने लगा। कार्यकर्ता ओने अपने विचार बाबा के सामने रखे। बाबा ने सेवक के विचार और उनकी इच्छा ध्यान में लेकर। शोभायात्रा निकालने के लिय संमती दी। इस तरह २४/२/१९९१ को पहली बार मानव धर्म की भव्य शोभायात्रा महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवासस्थान टिमकी, नागपूर यहाँ से निकालकर वह गोलीबार चौक, गांजाखेत, शहीद चौक, गांधी पुतला, टेलिफोन एक्सचेंज,सुभाष पुतला, हरीहर मंदिर मार्ग से वर्धमान नगर स्थित "मानव मंदिर" में आने के बाद उस जगह चर्चाबैठक होकर महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने सेवको को मार्गदर्शन किया। इस शोभायात्रा में हजारो सेवक महिला, पुरुष सम्मिलीत थे। उसी तरह बाबा के मार्गदर्शन, सेवक को आये हुये अनुभव पर आधारित असंख्य झाँकीया भी सम्मिलीत थी।

           महानत्यागी बाबा जुमदेवजी परमेश्वर में विलीन होने के बाद बाबा के जन्मदिन ३ एप्रिल को "मानव मंदिर" में जयंती कार्यक्रम आयोजित होने लगा। श्री. गणपतरात टाकळीकर इनकी अध्यक्षता में २२/३/१९९८ को हुये परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के संचालक मंडल की सभा में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी जयंती के उपलक्ष में शोभायात्रा निकालने के बारे में चर्चा हुयी और इसे सभी ने मंजूरी दी। कार्यकर्ताओं की सभा बुलाई गई उसमें सभी ने सहमती दर्शाते हुये २४/२/१९९१ को निकाली गयी शोभायात्रा जैसे ही हर साल ३ एप्रिल को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की जयंती के उपलक्ष में शोभायात्रा बाबा का निवासस्थान टिमकी से निकाली जाये इसे सभी ने मान्यता दी। इस तरह हर साल ३ एप्रिल को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के निवासस्थान टिमकी से शोभायात्रा निकाली जाती है। उसमें लाखो सेवक और असंख्य झाकीया सम्मिलीत होती है। शोभायात्रा का समापन वर्धमान नगर स्थित मानव मंदिर में होता है। उसके बाद मानव जागृती, अंधश्रध्दा और व्यसनमुक्ती पर चर्चा सत्र का आयोजन होता है।

३) एक भगवंत का प्रगट दिन-


       महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने उनके परिवार में हो रहे भुतबाधा, तकलिफे और उस कारण परिवार में निरंतर आ रहे दखो से मुक्ती पाने के लिए बाबा को मिले हुए मंत्र व्दारा विधीवत ४२ दिन की साधना कर भगवान बाबा हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने से बाबा के परिवार में हो रही भुतबाधा की तकलीफे पुरी तरह खत्म हुई और उनके परिवार में सुख समाधानी मिली। लोगों को इस बारे में जैसे-जैसे जानकारी होने लगी। वैसे-वैसे दुखी और भुतबाधाओं से पिडीत लोग बाबा के यहाँ आने लगे वाबा मंत्र से फुक मारकर उनकी तकलिफे दूर करने लगे। लेकीन भुतबाधाओं से पिडीत लोगों को थोडे समय के लिए ही लाभ होता था। इसलिए बाबाने सोचा की हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के बाद भी भुतबाधा पर पुरी तरह मात कर नहीं सकता। तब उन्होने हुनुमानजी के सामने सवाल रखा की  हे हुनुमानजी संसार में ऐसी कौनसी शक्ती है, जो शैतान को एक पल में निकाल सके । भूत किसे कहें और भगवान किसे कहे। इसका स्पष्टीकरण हमे समझा दो। तब हनुमानजी ने बाबा को बताया की "यह एक ही परमेश्वर है। वह चौबीस घंटे चैतन्य है। उसे प्राप्त करने के लिए पांच दिन हवन करना पडेगा।" वह दिन रक्षाबंधन का था।

             हनुमानजी ने किये हुए मार्गदर्शन के नुसार बाबा परिवार के लोगों से बोले की "परिवार के लोग सुनो, हम कल से पांच दिन हवन करेंगे।" इस तरह दूसरे दिन से बाबाने पांच दिन के हवन की शुरुवात की। वह दिन श्रावण वद्य प्रतिपदा होकर तारिख २० अगस्त १९४८ थी। हर दिन एक इस प्रकार शाम को हवन करने लगे। पाचवे दिन हवन समाप्त होते बराबर बाबा निराकार अवस्था में आये। उस वक्त बाबा के मुखकमलों व्दारा शब्द बाहर निकले, "घरवाले सुनो, मैं कहाँ आ गया हूँ। सेवक भगवान बन गया ।" कुछ देर बाद बाबा निराकार अवस्था सें बाहर आये मगर वे गुंगी मे ही थे।

           दूसरे दिन याने छटवे दिन तारिख २५ अगस्त १९४८ को बाबा गुंगी मे ही रहने के बजह से परिवार के लोगों ने हवन कर कार्य की समाप्ती की। हवन समाप्त होते ही बाबा का ब्रम्हांड चढा और वे फिरसे निराकार अवस्था में आये। उस समय बाबा के मुखकमल से उदगार निकले की, "मैं सबका एक भगवान हूँ। सेवक, तु मुझे कहा ढुँढ रहा है। मैं चोबीस घंटे तेरे पास हँ। जो क्षण में तुझसे छुट जाऊँगा, तेरा शरीर मृत हो जायेगा।" कुछ समय बाद फिरसे उदगार निकले की, "हे सेवक मैं भगवान हूँ। तु मानव है। मैं जानता हूँ, मानव यह बेईमान है। उनमे से तु एक मानव है। भलेही तुने मुझे प्राप्त किया, मैं भगवान हूँ। मैं मानवपर कदापिही विश्वास नही करता।" तब बाबाने भगवान से इमानदारी से चलने का वचन दिया। कुछ देर बाद बाबा के मुखकमल से शब्द निकले की, "परमात्मा एक" "मरे या जिये भगवत नामपर।" यह दो वचन बाबाने भगवान को दिये। कुछ देर बाद फिरसे शब्द निकले की "दुःखदारी दूर करते हुये उध्दार।" "इच्छा अनुसार भोजन" यह दो वचन भगावन ने बाबा को दिये। यही चारों वचन बाबाने
परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने के लिए सिध्दान्त(तत्व) के रुप में स्विकारा। इस मार्गपर आनेवाले लोगोने इस सिध्दान्त(तत्व) का पालन करने से उनके दुःख और कष्ट खत्म होकर उनको सुख और समाधानी मिलेगी ऐसा बाबाने मार्गदर्शन किया। इस तरह इन सिध्दान्तोका पालन करनेवाले लाखो सेवको को सख और समाधानी मिली है। यह तत्व बाबा को रक्षाबंधन के बाद घटवे दिन मिलने की वजह से हर साल वह दिन एक भगवंत का प्रगट दिन करके मनाया जाता है।

            दुःखी, कष्टी, अंधश्रध्दा से पिडीत और व्यसनाधीन लोगोने परिवार का दुःख दूर करने के लिये औषधोपचार, तांत्रिक, मांत्रिक और तरह तरह की कोशिशे करने के बाद भी उनके दुख दूर न होने से वे इस मार्ग पर आकर महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के  मार्गदर्शन से और बाबाने दिये हुये तत्व, शब्द और नियमों का अपने परिवार में पालन  करने से उनके परिवार के दुख खत्म होकर उनको सुख समाधानी मिली है। और वे अपना जीवन खुशीसे जी रहे है, और वे बाबाके सेवक बने है। इसलिये दिवाली, दशहरा इन त्यौहारोसे भी "एक भगवंत का प्रगट दिन" यह उनके लिए बहोत ही महत्व का रहने के कारण उस दिन सब सेवक अपने अपने घर हवन कर के त्यौहार मनाते है। उसी तरह मंडळ के वर्धमान नगर के "मानव मंदिर" में एक दिन पहले"एक भगवंत का प्रगट दिन" के उपलक्ष में कार्यक्रम का आयोजन कर उसने परमेश्वरी कृपा, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन, अंधश्रध्दा निर्मुलन, व्सनमुक्ती और सिमित परिवार विषयोंपर चर्चासत्र का आयोजन होता है। उसी प्रकार १० वी, १२ वी और पदवी परिक्षा  में प्राविण्य श्रेणी प्राप्त सेवकों के लडके लडकियों को पुरस्कार देकर सम्मानित करने में आता है। इस कार्यक्रम में हजारो सेवक महिला और पुरुष हाजीर रहकर कार्यक्रम  लाभ उठाते है।

४) ३ अक्तुबर पुण्यतिथी कार्यक्रम -


          महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इन्होने परमेश्वरी कृपा प्राप्त कर मानव को परमेश्वर का परिचय करा दिया। परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए मानव ने सत्य मर्यादा, प्रेम का अपने जीवन में स्विकार कर तत्व, शब्द और नियम से अपने परिवार मे चलने से उन्हें कभी भी दुखी नही होना पडेगा ऐसा बाबाने देशवासियों को संदेश दिया है इसका अनुभव हजारो लोगों को आया है। मानव ने अपने जीवन में मानवता से व्यवहार करना याने मानव धर्म का पालन करना है और उसके लिए सत्य, मर्यादा और प्रेम से बर्ताव करना आवश्दयक है। फिलहाल कलियुग शुरु है तो भी मानव ने मानव धर्म का पालन किया तो वे सतयुग निर्माण कर सकते है। बाबाके मार्गदर्शन के अनुसार हजारो सेवक मानव धर्म का पालन कर रहे है, इस प्रकार बाबने सतयुग महानत्यागी बाबा जुमदेवजी युगप्रवर्तक है। उनका देहान्त ३ अक्तुबर १९९६ का हुआ और वे परमेश्वर में विलीन हो गये। महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने दुनिया एक नया। मार्ग दिखाया है ऐसे महान युगप्रवर्तक की बर्शी (पुण्यतिथी) हर साल ३ अक्तुबर को मनाई जती है। परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ के वर्धमान नगर स्थित "मानव मंदिर" में बाबा की पुण्यतिथी के उपलक्ष्य में मानव धर्म पर चर्चासत्र और मार्गदर्शन का आयोजन करने में आता है। उसी तरह रक्तदान शिबीर आँखो की जाँच शिबार का आयोजन किया जाता है। इस पुरणतिथी कार्यक्रम में हजारो महिला और पुरुष सेवक हाजीर रहकर कार्यक्रम का लाभ उठाते है। 

५) १५ नवम्बर जनरल हवन कार्य-


         महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने उन्हे मिला हुआ सन्यासी के मंत्र व्दारा ४२ दिन की साधना कर उन्होने भगवान बाबा हनुमानजी की कृपा प्राप्त की। बाबा के यहाँ आनेवाले दुःखी  मानव को मंत्र व्दारा फुक मारकर बाबा उनके दुख पुरी तरह दुर नही होता था। इसलिए बाबाने हनुमानजी को मार्गदर्शन करने की बिनती की। उसपर मार्गदर्शन करते हुए हुनुमानजी ने बाबा को बताया की, सृष्टी रचयता एक परमेश्वर की कृपा प्राप्त करना होगा। इसके लिए हर दिन शाम को एक इस तरह पांच दिन हवन करना होगा।

           हनुमानजी ने किये मार्गदर्शन नुसार बाबाने हवन करना शुरु किया वह दिन रक्षाबंधन के बाद का दिन था। पाचवे दिन हवन समाप्त होते बराबर बाबा निराकार अवस्था में आये और देहभान खो बैठे। इस तरह उन्हे विदेह स्थिती प्राप्त हयी थी। बाबा की यह स्थिती देखकर परिवार के लोग चिंताग्रस्त हये छटवे दिन परिवार के लोगोने हवन करके कार्य की समाप्ती की। उस समय बाबा के मुखकमलोसे चार वचन निकले। यही चार वचन निकले। यही चार वचन याने परमेश्वर प्राप्ती के चार तत्व है। दसरे दिन परिवार के लोगो ने बाबा को बिनती की, "'हे भगवान आप सेवक को इस विदेह स्थिती से मुक्त करो, सेवक की खुद की गृहस्थी है। बच्चा है। " उस वक्त भगवान ने बाबा के मुखकमलों से जवाब दिया की, "अगर आपका भाई आपको इतना प्यारा था, आपको उससे इतनी हमदर्दी थी तो आपने उसे भगवान की सेवा करने क्यों लगाई, उस समय आपने उसे रोकना था। अब सेवक भगवान का हो गया, न की किसी का रहा और भगवान सेवक का हो गया है। मेरा सर सेवक का धड और सेवक का सर मेरा धड ऐसा विलीन हो गया है। इस तरह दोनो की आत्मा एक हो गई है। " कुछ देर बाद भगवान ने बाबा के मुखकमल से फिरसे परिवार के लोगों को संबोधित शब्द निकले की, "सेवक भगवान बन गया। इसलिए सेवक एक ही समय थोडासा साधा भोजन करेंगे। जिसमें दाल, चावल, सब्जी और घी होगा। और कोई महिला घर की हो या बाहर की, उसकी छाँव सेवक पर ना पड़े। नही तो सेवक कही का नही रहेगा। जिंदा नही रहेगा।" इस प्रकार भगवान ने सेवक
को दैवी शक्ती की जागृती दी।

           बाबा की यह विदेह स्थिती देखकर चिंताग्रस्त हये परिवार के लोगों को एक दिन बाबा ने मार्गदर्शन करते हुये कहाँ की, "परिवार वाले सुनो, आप सब लोग तीन माह तक भगवान से बिनती करो की हमारे भाई की यह अवस्था समाप्त कर उन्हे गृहस्थी में रखो। भगवान को दया आयेगी तो बाबा गहस्थी में रहेंगे।" बाबाने किये मार्गदर्शन नुसार परिवार के लोगों ने हर रोज सबेरे सरज निकलने के पहले बिनती करने के कार्य शुरु किये। लगभग तीन माह बाबा विदेह स्थिती में थे। बाबा की विदेह स्थिती पुरी तरह समाप्त होकर पुरा होश मे आये। वह दिन १५ नवंबर १९४८ का था।

          सन्यासी के मंत्र व्दारा परमेश्वरी कार्य करना याने सन्यासी होकर ही परमेश्वरी कृपा प्राप्त कर सकते है। उसी तरह जिन्होने कृपा प्राप्त की वह व्यक्ती मंत्र व्दारा फुक मारकर बाकी लोगों का दूःख दूर कर सकता है। गृहरस्थी में रहने वाला व्यक्ती ऐसे मंत्रोसे भगवत कृपा प्राप्त नही कर सकता। लेकीन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने सन्यासी के मंत्रोच्दारा प्राप्त की हुयी परमेश्वरी कृपा अपने त्यागसे और निष्काम कर्मयोग से गृहस्थी में रहने वाले दुखी, पिडीत लोगो के कल्याण के लिए काम आकर उन्हें सुख और समाधान मिला दिया है। अगर बाबा विदेह स्थितीसे बाहर नही आते तो गृहस्थी में रहने वाले मानव को इस कृपा का लाभ नही मिलता। इसलिए बाबा की विदेह स्थिती समाप्त होकर वे होश
में आये, इसलिये याद रहे करके हर साल १५ नवबंर को मंडल के मानव मंदिर में जनरल हवन कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमे सहभाग होनेवाले सेवक अपने-अपने खाने के डिब्बे लेकर आते है। और हवन कार्य समाप्ती के बाद, भगवत कार्य की चर्चा बैठक होने के उपरान्त सभी सेवक सहभोजन का आनंद लेते है। तद्पश्चात सेवकों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतीक कार्यक्रम का आयोजन रहता है। इस जनरल हवन कार्य में भी लाखों सेवक महिला पुरुष अपने-अपने डिब्बे के साथ हाजीर रहकर इस भगवत कार्य का लाभ उठाते है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।


सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Saturday, May 30, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३८) " धर्मार्थ अस्पताल"

                 "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



                "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                   प्रकरण क्रमांक (३८)

                   "धर्मार्थ अस्पताल"


प्रकरण क्रमांक:- (३८) "धर्मार्थ अस्पताल"


        सृष्टी के बदलते वातावरण से अनेक रोग उत्पन्न होते है। और उससे मानव को तकलीफ होती है। वर्तमान के गतीशील समय में समाज के निर्बल और कमजोर वर्ग के लोगो को मुफ्त वैद्यकिय सेवा उपलब्ध होना यह समय की मॉँग है। तथापि परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर इस संस्था से संबंध रखनेवाले अनेक गरीत लोग वैद्यकीय उपचार से वंचित है। उन्हें वैद्यकीय सेवा उपलब्ध करा देना यह उद्देश सामने रखकर नागपूर शहर के पिछडे क्षेत्र में इस मार्ग के अधिकतम सेवक निवास करते है। ऐसे क्षेत्र में धर्मार्थ अस्पताल खोल कर उन्हे वैद्यकीय सेवा उपलब्ध करनी चाहिए इस उद्देश सें दिनांक ४ सिंतबर १९८८ को इस संस्था के कार्यकर्ताओं की बैठक हुई। और मंडल ब्दारा धर्मार्थ अस्पताल खोलने का निश्चय किया गया|

          "स्वास्थय ही धन है (Health is Wealth) इस कथनानुसार मानव की तबीयत स्वस्थ रहने पर ही वह अपने संपूर्ण जीवन में अनेक बातों को आसानी से उपलब्ध करा सकता है। मंडल की ओर से धर्मार्थ अस्पताल महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके मार्गदर्शन से खोला जाए ऐसा निश्चित होने के बाद बाबां को मंडल की ओर से तत्ससंबंधी बिनती की गई।

       महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने आध्यात्मिक कार्य करने के लिये मानव को जागृत किया। उसके साथ-साथ इस मार्ग के सेवकों के लिये सामाजिक कार्य भी किया। उनके रोजमर्रा जीवन के अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सहकारी बैंक, ग्राहक भाडार, दूध उत्पादक संस्था आदि अनेक संस्थाये निर्माण कर इस मार्ग के सेवक गरीब और परिश्रमी होने के कारण उनका जीवन निर्वाह समाधानकारक होने के लिये सहयोग किया। मंडल की बिनती अनुसार उनकी तबीयत सुदृढ एवं स्वस्थ रहे। उनका रोगो से संरक्षण हो, ऐसे दृष्टिकोण से बाबाने मंडल के इस कार्य को बढावा दिया और स्वय इस पर योग्य मार्गदर्शन कर धर्मार्थ अस्पताल खोलने हेतु अग्रेसर हुए।

            इस प्रकार इस मंडल की आर्थिक परिस्थिती को देखते हुए दि. २९ जुन १९८९ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी प्रमुख उपस्थिती में डॉ. मनो ठुब्रीकर, असोसिऐटेड प्रोफेसर, व्हर्जिनिया, मेडीकल सेंटर, व्हर्जिनिया, यु. एस.ए. इनकी अध्यक्षता में डॉ. कडासने, सिविल सर्जन, मेयो जनरल हॉस्पीटल, नागपूर इनके करकमलों व्दारा "मानव मंदिर" भवन की रुम नं ५ में धर्मार्थ अस्पताल का उद्घाटन हुआ। तत्पश्चात अस्पताल का लाभ इस मार्ग के सेवक तथा अन्य लोग जो पिछडे एवं गरीब बस्ती में रहते थे। उन सभी को अधिकतम लाभ मिले इस कारण पिछड़ा क्षेत्र समझे जानेवाले जागनाथ बुधवारी क्षेत्र में स्थानांतरीत किया गया। यह क्षेत्र गोलीबार चौक ,बांगला देश, बिनाकी मंगलवारी, लालगंज, शांतीनगर, इतवारी जुनी मंगलवारी, महाल इस क्षेत्र का मध्यवर्ती स्थल है, क्योंकी इस क्षेत्र में इस मार्ग के अधिकतम सेवक रहते है। तथापि उपरोक्त संपूर्ण क्षेत्र पिछडा होकर गरीब बस्ती का है। इसलिये अन्य गरीब लोगों को भी इसका लाभ मिले यह उद्देश था।

         इस अस्पताल में दो नियमित डॉक्टर है और हर दिन सामान्यतः ७० से ८० रुग्ण उसका लाभ पाते है। इस प्रकार बाबांने मानव को शारिरिक वेदना से (रोग) मूक्त करने का कार्य किया है। यह अस्पताल केवल गरीब सेवकों की ओर से प्राप्त होने वाले दान पर ही चलता है, यह विशेषता है। इस प्रकार यह एक गरीब लोगों की ओर से संचालित होने वाला भारत का "एकमात्र अस्पताल" है, ऐसा कहना गलत नही होगा।

          इसी प्रकार का वैद्यकीय लाभ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मिले इस उद्देश से बाबांके मार्गदर्शन में मंडलकी ओर से भंडारा जिला के मोहाडी तहसील के धोप इस गांवमें अस्पताल खोलकर गरीब सेवकों की और लोगों की सेवा करने का संकल्प महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इन्होने लिया। इस प्रकार दिनांक १४ अक्तुबर १९९१ को महानत्यागी
बाबा जुमदेवजी इनके शुभ हस्ते अस्पताल का उद्घाटन हुआ और पहले ही दिन ८० रुग्णोंने उसका लाभ पाया। इस उद्घाटन कार्यक्रम के लिये आमदारव्दय श्री. सुभाष कारेमोरे एवं श्री. राम आस्वले उपस्थित थे। इस क्षेत्र की गरीब जनता अधिकाधिक संख्या में इस अस्पताल का लाभ उठा रही है। धन्य वह मानव धर्म स्थापन करनेवाले सेवकों के धर्मगुरु महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Friday, May 29, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३७) "परमात्मा एक सेवक मानव मंदिर"

                  "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



                "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                    प्रकरण क्रमांक (३७)

          "परमात्मा एक सेवक मानव मंदिर"


प्रकरण क्रमांक:- (३७) "परमात्मा एक सेवक मानव मंदिर"


          महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने परमेश्वर प्राप्ती करने के पश्चात आध्या्मिक ज्ञान से सेवकों के शारिरीक दुःख नष्ट कर उन्हें आर्थिक लाभ मिलना चाहिये। इस दृष्टी से सहकारी बैंक और दुध उत्पादक संस्था स्थापित की। उनका लाभ सेवकों को मिलने के কাरण उनका जीवनमान सुधारणे का सामाजिक कार्य बाबाने किया, बाबांने "मानवधर्म" स्थापन करने पर मानव को उसकी अनुभूती रहे इसलिये "मानव मंदिर" रहना आवश्यक है ऐसा उन्हे लगने लगा। इसलिये सबसे पहले उन्होने परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर यह धर्मदाय संस्था स्थापन की।

        उक्त संस्था की ओर से इस मार्ग का प्रगट दिन हर साल सेवक मनाते हैं। तथापि मंडल के सदस्यों के लिये, मानव जागृती के कार्य करने के लिये बाहरगाँद के सेवकों को आराम करने के लिये, बाहर गांव के सेवकों के बच्चो कों उच्च शिक्षा हेतु रहने के लिये छात्रावास तथा अन्य सामाजिक कार्य और मंडल व्दारा समय-समय पर होनेवाले अन्य कार्य करने के लिये स्वयं की भव्य वास्तु होना चाहिए ऐसी सेवकों की बहुत दिनों से इच्छा थी। इसी तरह हर वर्ष मानव जागृती के कार्य के लिये हमेशा बडी जगह देखकर कार्यक्रम करना पडता था। इस मार्ग कें सेवकों की दिन-ब-दिन बढती संख्या ध्यान में रखते हुए और संघटना के दृष्टिकोन से कोई भी जगह किराये पर लेने से वह अधुरी पडती थी। इसलिये मंडल की खुद की भव्य वास्तु रहनी चाहिए। जिससे हर वर्ष अन्य भवन किराये पर लेने रो जो अधिभार सेवकों पर होता था वह बचेगा और उसी राशि से स्वयं का भवन निर्माण होगा। इस उद्देश से और सही मायने में वह भवन "मानव मंदिर" के समान बने ऐसा विचार दि. १५ फरवरी १९८० को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की प्रमुख उपस्थिती में हुई सेवकों की बैठक में व्यक्त किया। बाबांको सेवकोंने इस विषय पर मार्गदर्शन करने के लिये बिनती की।

           सेवकों की बिनती के अनुसार बाबांने सेवकों को मार्गदर्शन करते हुए बताया की आपने रखे हुए विचार योग्य है, लेकीन पैसा लगेगा। उस दृष्टिकोन से सेवकों ने आर्थिक सहायता करने की इच्छा रखनी चाहिए और इसके लिये सामान्यतः बीस हजार वर्ग फीट जगह नागपूर शहर में खोजनी होगी। बाबांने आगे का की सेवकोंने मानव-मंदिर की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अभी से दान देन प्रारंभ करना चाहिए। तदूनुसतार प्रथम दिन रु. १००१ श्रीमती नागाबाई किसन घायड इन्होने २८/२/१९८० को दिया।

          भवन की आवश्यक जगह के लिये इस मंडल के 3ध्यक्ष श्री. महादेवराव कुंभारे इनकी अध्यक्षता में एक शिष्टमंडल नागपूर सुधार प्रन्यास के कमिश्नर को १४ सितंबर १९८२ को मिले। वर्धमान नगर, नागपूर स्थित "स्मॉल फॅक्टरी एरिया" क्षेत्र में धर्मदाय  संस्था के लिये आरक्षित जगह बाबत शिष्ट मंडल ने कमिश्नर से चर्चा की। इस जगह बुनकर समाज के श्री. हेडावू मुख्य कार्यपालन अभियंता(उएए) कार्यरत थे महानत्यागी बाबा जुमदेवजी और इस संस्था के बाबत् सपूर्ण जानकारी थी। इसलिये उन्होने वहाँ के कमिश्नर साहब को इस संस्था की संपूर्ण जानकारी देकर बताया की यह एक बहुत बडी संस्था है। और उसके संस्थापक को परमेश्वरी कृपा प्राप्त हुई है और वह निष्काम भावना से मानव जागृती के कार्य नियमित कर रहे हैं। वह स्वयं त्यागी है। संस्था की चार प्लॉटस् की मॉँग है। अतः उन्हें सुधार प्रन्यास की जगह देने में कोई आपत्ती नही है। इतना ही नही, तो उन्होने इस संस्था को जगह दिलाने के लिये बहुत प्रयास किये और उसके लिये कमिश्नर के मन में सद्भावना जगायी। तद्नुसार नागपूर सुधार प्रन्यास के पत्र क्र. ८९८० दि. ६ जनवरी १९८४ को निकले पत्रानुसार वर्धमान नगर स्थित स्मॉल इण्डस्ट्रिज एरिया इस क्षेत्र में प्लॉट नं. ५० सी से ५० एफ ऐसी २०७६७ वर्गफिट वाली जगह मंडल को देनेबाबत् पत्र दिया और प्लॉट के संबंध में संपर्ण करारनामा होने पर पत्र क्र. ६३७९ दि. १७ फरवरी १९८४ अनुसार दि. २४ फरवरी १९८४ को जगह का कब्जा मंडल को मिला।

        इस जगह की किमत मात्र ४ रु. प्रतिफिट लगायी और यह जगह "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर" इस नाम से पंजीकृत की गई। इस समय तक बहुत से सेवकोंने भवननिधी के नाम से १००१ रु. दान दिया था। इस कालावधी में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी स्वयं भवननिरधी के लिये दान इकठ्ठा करने हेतु कुछ सेवकों के साथ गाँवो-गाँव दौरे पर गये। उन्होने अपने मार्गदर्शन से सेवकों को जागृत किया। "मानव मंदिर" बनाने के लिये प्रत्येक सेवकों के परिवार से कम से कम १००१ रु. दान करे ऐसा बताया। बाबांके इस आदेश को प्रत्येक सेवक ने बडे उत्साह से साथ दिया और धीरे-पीरे राशि जमा होने लगी। बाबांके सभी सेवक गरीब थे। बाबांकी इच्छा ऐसी थी की, इस देश में ही नही अपितु संपूर्ण दुनियामें जो भवन निर्माण हये है वे सभी धनवान लोगों के है। लेकीन परिश्रमी मेहनत मजदूरी करनेवाले लोगों का भवन नही है। इसलिये उन्हें इस देश को यह दिखाना था की, गरीब लोग भी धनवानों की अपेक्षा अच्छा कार्य कर सकते है इसलिये गरीबों की भी इज्जत करनी चाहिए और उन्हें मानव के समान ही गरीबां की भी इज्जत करनी चाहिए औ उन्हें मानव के समान ही व्यवहारित करना चाहिए। उन्हें समाजने बेकार (निकृष्ठ) नही समझना चाहिये। और यह भवन सेवकों के ही राशि से निर्मित हो, ऐसी बाबा की इच्छा थी और बाबा का कहना ऐसा था की, इस देश में धनवानों के हाथ में सत्ता है और बाबा के साथ गरीब सेवक है। अत: गरीबों के हाथ मे संस्था की सत्ता रहे, वह धनवानों के हाथ में न जाये। इसलिये इस संस्था की ओर से स्थापित हुई बैंक में अनेक धनवान लोग आते थे। वह लोग भवन निर्मिती के लिए सहायता देने लिए अपनी इच्छा बाबा के पास व्यक्त करते थे। फिर भी बाबा उनकी इच्छा को नम्रतापुर्वक अस्वीकृत करते थे। इस तरह धनवान लोगों से दान लेना टालते रहे।

        "मानव मंदिर" की जगह मिलने पर भवन आर्किटेक्ट के नाम से प्रसिध्द  आर्किटेक्चर श्री. व्ही.डी.पुसदकर इन्हें भवन निर्माण के लिये मनोनीत किया गया। तत्पश्चात वहाँ कुआँ और कंपाऊन्ड (चार दिवारी) बनाने हेतु कोटेशन मंगवाये गये और दिनांक १४ अप्रैल १९८४ को कोटेशन खोले गये। श्री. अशोक नंदनवार इनका कम रेट का कोटेशन होने से और उसमें भी ३ १/२ प्रतिशत छुट देने से वह काम उन्हें दिया गया। दिनांक १५ अप्रैल १९८४ को कुएँ की जगह का भुमीपुजन श्री. नेमाजी मौँदेकर, उपाध्यक्ष, परमात्मा एक सेवक नागरिक सह. बैक, नागपूर इनके शुभहस्ते हुआ। और उसी दिन से प्रत्यक्ष कार्य प्रारंभ हुआ। तत्पश्चात भवन का नक्शा बनाकर उसका २२ लाख का एस्टिमेट श्री. पुसदकर इनसे तैयार किया गया। १५ नवम्बर १९८४ से २५ नवम्बर १९८४ तक भवन हेतु निर्विदा मंगाकर दि.२६ नवम्बर १९८४ को निविदाएँ खोली गई। इसमें भी कम रेट की निविदा श्री. अशोक नंदनवार की ही थी। नक्शा बनाते समय श्री. पुसदकर साहब ने बाबांको भवन कैसा बनाये यह पुछने पर बाबांने उन्हे बताया की "मानव मंदिर" ऐसा बनाये जिससे इस मानव मंदिर में प्रवेश करनेवाला प्रत्येक व्यक्ती प्रसन्न होना चाहिए। निविदा खोलने के समय मंडल के पास केवल ४ लाख रुपये जमा थे।
इन चार लाख रुप यों में भवन का निर्माण प्रारंभ करने से और २२ लाख रुपये निर्माण कार्य के लिये आवश्यक राशि इकठ्ठा नही होती तो नुकसान पु्र्ती के लिये बिल्डर दावा करेंगे, इसलिये निव्दा रद्द कर, जबतक निर्माण कार्य के लिये आवश्यक राशि इकठ्ठा नही होती तब तक निर्माण कार्य स्थगित रखे, ऐसा बाबांने मंडळ को आदेश दिया। श्री. अशोक नंदनवार की कम रेट की निविदा थी फिर भी उसमें ३ प्रतिशत छुट देने के लिये बाबाने बताया और मंडलने उस आवेदन पर विचार विमर्श कर उसे दिनांक ५ दिसम्बर १९८४ को भवन निर्माण का कार्य दिया। 

          महाराष्ट्र राज्य शासन की ओर से खाद्यान्न एवं नागरी आपुर्ती विभाग, नागपूर की ओर से ३९१० बोरी सिमेंट की अनुज्ञा ली गई। तथा स्टील अॅथॉरिटी ऑफ इंडिया की और से ५५ टन लोहा प्राप्त किया। तत्पश्चात जगह का भुमिपुजन दि. १६ दिसंबर १९८४ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी प्रमुख उपस्थिती में डॉ. मनो ठुब्रीकर, असोसिएटेड प्रोफेसर एवं हेड ऑफ दी डिपार्टमेन्ट ऑफ सर्जरी, व्हर्जिनिया मेडीकल सेटर, व्हर्जिनिया, अमेरिका, य.एस.यू. इने करकमलो व्दारा हुआ। उसी दिन इस परिसर में वृक्षारोपन का कार्यक्रम संपन्न हुआ।

          भवन निर्माण का कार्य लगभग दो वर्ष तक चालू रहा। इस दौरान बाबाने सभी सेवको की गाँव-गाँव में ऐसा आदेश दिया की प्रत्येक सेवक ने १००१ रु. कम से कम और यशाशक्तीनुसार २००१-५००१ और जिनकी तीव्र इच्छा हो उन्होने दस हजार एक रुपये भवन निरधी दान देवे। बाबांने यह नििधी इकठ्ठा करना वे लिये कई महिने गाँवो-गाँव लगातार दौरा किया। बाबा के साथ हमेशा पांच-छः सेवक रहते थे| बाबा अपने गावं मे। आ रहे है, यह सेवकों को मालूम होते ही वे सब लोग एक साथ मिलकर आते थे। बाबा के आदेश का स्वखुशी से पालन करते थे। यह दौरा बाबांने साईकील, बैलबंडी, मोटर जैसा । हो वैसा, धूप बारीश, ठंड इनकी परवाह न करते हुए किया। तथापि निर्माण कार्य के
दौरान वे स्वयं निर्माण कार्य में ध्यान देते थे। क्योंकी वे भी कॉन्ट्रॅक्टर थे। निरधी इकठ्ठा। करते समय बाबा को किसी प्रकार की परेशानी अथवा कठिनाई निर्माण नही हुई और श्री. अशोक नंदनवार इन्होने भी समय पर राशि नही मिलने के कारण निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न नही की।

         इस प्रकार इस संपूर्ण भवन निर्माण का कार्य लगभग २६ लाख ७० हजार रुपयों । का हुआ। और "मानव मंदिर" की भव्य वास्तु गरीबों के परिश्रम की राशि से निर्मित हुई। इस भवन का वास्तुपुजन २५ नवम्बर १९८६ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके करकमलों व्दारा किया गया। क्योंकी इस वर्ष (१९८६ में) भगवंत का प्रगट दिन २५ अगस्त १९८६ को मनाया गया था। तब से तीन महिने पश्चात इस वास्तु का पूजन किया गया। क्योंकी बाबांने ऐसा मार्गदर्शन किया की, बाबांने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद विदेह (निराकार) अवस्था में तीन महिने पश्चात गृहस्थी में प्रवेश किया। उस वक
से इस भवन में "प्रगट दिन" मनाने के बाद तीन महिने पश्चात प्रवेश करना। प्रत्येक वर्ष "प्रगट दिन" १५ अगसत को वार्षिक हवन कर १५ नवम्बर को सामुहिक हवन कार्य भवन में किया जाता है।

         ऐसी यह गरीब लोगों की संपूर्ण दुनिया में नही है ऐसा निराला "मानव मंदिर" की भव्य इमारत (भवन) सुसज्ज स्थित है। इस भवन में अंदर प्रवेश करते ही सही मायने में मन को शांति मिलती है। इसी जगह गरीब विद्यार्थीयों के लिये और उच्च शिक्षा हेतु आनेवाले बाहरगांव के सेवकों के बच्चो के लिये छात्रावास भी तैयार किया है। उन्हे शिक्षा में सहायता मिले इसलिए वाचनालय भी शुरु करने में आया है। इतना ही नही तो उन बच्चों की सेहत स्वस्थ रहे इस दृष्टि से क्रिडा मंडल स्थापित कर क्रिडांगण बनाया गया है। उन्हें खेल का संपूर्ण साहित्य मंडल की ओर उपलब्ध है। इस बात का लाभ अन्य सवक भी लेते है।

        इस भवन में हर वर्ष समय-समय पर मानव जागृतीपर चर्चासत्र होता है। हर वर्ष १५ नवम्बर को होने वाले हवन कार्य में हजारो सेवक उपस्थित होते है। हर परिवार को सेवक अपने घर से खाने (भोजन) का डिब्बा लाते है। तथा हवन कार्य एवं बाबा के मार्गदर्शन के पश्चात् सामुहिक रुप से भोजन करते है। और सभी लोग सामुदायिक आनंद मनाते है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Thursday, May 28, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३६) "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था,धोप"

              "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



               "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                    प्रकरण क्रमांक (३६)

      "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था, धोप"


प्रकरण क्रमांक:- (३६) "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था, धोप"


            सालईमेटा इस जगह दुध उत्पादक संस्था प्रारंभ होने के बाद उसकी दिनोंदिन हो रही प्रगती देखकर भंडारा जिल्हा के घोप, लोहारा, ताडगांव गायमुख, सोरना, सिरसोली, मोरगांव, कारटी, लंजेरा, जांब, कांद्री इत्यादी गाँवों के "मानव धर्म" इस मार्ग  के सेवकों ने घोप इस गांव में १४ सितंबर १९७९ को श्री. श्यामरावजी कार, लोहारा इनकी अध्यक्षता में सभा आयोजित की, और इस क्षेत्र में दुध डेअरी स्थापित की जाए और इसके लिये महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को बिनती की जाए ऐसा निश्चित किया गया। उसी जुमदेवजी को बिनती की जाए ऐसा निश्चित किया गया। उसी सभा में श्री. हिराजी शेंडे, धोप इनको प्रमुख मनोनीत किया गया।
        
         निश्चित किये अनुसार उपरोक्त गांवों से सेवकों का एक शिष्ट मंडल श्री. हिराजी शेंडे इनकी अध्यक्षता में महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को विनती करने हेतु नागपूर आये। उन्होने बाबांसे बिनती की की, हमें छः सात मैल(१५-१८कि.मी.) दूरी तक दुध ले जाना पड़ता है। और अन्य डेअरी से भी हमें परेशानी है। इसलिये इस ग्रामीण क्षेत्र के सेवकों कों तथा अन्य लोगों को दुध डेअरी स्थापना करने से एक उद्योग मिलेगा और परेशानी से सेवक मुक्त होंगे। दुध उत्पादकों के दुध को उचित किमत मिलेगी। दूध की राशि भी उनको समय पर मिलेगी और इससे इस क्षेत्र के दी-गरीब सेवकों की परिस्थिती सुधरेगी। इसलिये आप हमारे क्षेत्र के "धोप" इस गांव में दुध डेअरी तैयार कर देवे, जिससे हमारा जीवनमान उँचा होगा। बाबाने उनकी बिनती को मान कर थोप इस गांव में उस क्षेत्र के सेवकों की बैठक बुलायी। बाबा उस बैठक में स्वयं उपस्थित थे।
         
             महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने इस बैठक में सभी सेवकों को योग्य मार्गदर्शन किया और श्री. हिराजी शेंडे इनको प्रमुख प्रव्तक नियुक्त कर उनकी अध्यक्षता में ग्यारह लीगों की समिती बनाकर श्री. हिराजी शेंडे को भंडारा जिला दुग्ध विकास अधिकारी, भंडारा इनसे पत्र व्यवहार करने का अधिकार दिया। साथ ही साथ इसी बैठक में ११२ सादस्य बनाकर उनकी ओर से शेअर्स के रुप में डिपोजीट राशि जमा की।
          
          श्री. हिराजी शेंडे, धोप इन्होने दूध उत्पादक संस्था के लिये पत्राचार करके सहकारी कानून के अनुसार इस संस्था को धोप की जगह "गायमुख" इस गांव के नाम पर दुध उत्पादक संस्था के लिये भंडारा जिला दुग्ध विकास अधिकारी भंडारा इनके पत्र क्र.बी. एच.ए./पी.आर.डी./ए.१९४, दि. ७ अप्रैल १९८१ को पंजीयन किया क्योको धोप यह गांव जांब इस गांव के दूध डेअरी की कक्षा में आता था। इस संस्था का नाम । "परमात्मा एक सेवक दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था मर्या. गायमुख" ऐसा रखा गया। संस्था का दधाटन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके एकलौते सुपुत्र डॉ. मनो ठुब्रीकर ,असोसिएटेड प्रोफेसर, व्हर्जिनिया मेडीकल सॉटर, व्हिजिनिया, यु. एस ए. इनके करकमलों व्दारा दिनांक १ फरवरी, १९८१ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की उपस्थिती में ग्रामपंचायत ऑफीस, धोप यहाँ हुआ। इस गांव के सरपंच श्री आत्माराम सोलंकी इन्होने उनके क्षेत्र में आनेवाली जगह महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की निष्काम सेवा देखकर उन्हें दूध डेअरी के लिये किराये के बगैर उपयोग करने दी। इसी दिन प्रत्यक्ष रूप में दुध संकलन को शुरुवात हुई। पहले ही दिन २०० लिटर  दुध संकलित किया गया।
         
            इस संस्था की स्वयं का भवन हो इसलिये रामटेक-तुमसर मार्ग पर एक अच्छी सी जगह देखने का निश्वय किया गया। इसके लिये संभावित खर्च के नाम से ८० लोगों से चोबीस हजार रुपये हिपॉजीट जमा किये गये इसी गाँव में तुकाराम पतीराम शेंडे नामक बाबा का एक सेवक रहता था। वह अत्यंत गरीब था। लेकीन उसके संपूर्ण दुःख इस मार्ग में आने से नष्ट हुए थे। उसे इस मार्ग में आने से पूर्व जो शारिरीक कष्ट थे। उसके लिये उसने बहुत पैसा खर्च किया। तांत्रिक-मात्रिक उपचार किया था। लेकीन दुःख दूर नही हुये। उल्टे वह बरबाद हुआ। इस मार्ग में आनेपर उसका संपूर्ण दूख दूर होकर उसकी सभी प्रकार की शासिरीक, मानसिक और आथिक परिस्थिती सुधरी। जिससे आनंद हुआ। उसकी धान(चावल) की खेती तुमसर-रामटेक इस मार्ग पर थी। उसमें से १০० X १०० फिट जगह उसने इस संस्था के लिये दान देने की इच्छा बाबा समक्ष प्रस्तुत  की। लेकीन बाबाने उसकी आर्थिक स्थिती देखकर उसे संस्था की ओर से तीन हजार रुपये जमीन की किमत के नाम से दी। और इस संस्था में आजीवन चौकीदार की भी दी। आज भी इस संस्था में वह चौकीदार है। दुध डेअरी अच्छी चले इसलिये इन संस्था ने उस परिक्षेत्र के पचास लोगों की जिम्मेदारी लेकर अन्य बैंको से उन्हें गाय. भैस लेने के लिये कर्ज उपलब्ध करा दिया। उसी तरह डेअरी की इमारत निर्मिती के लिये परमपूज परमात्मा एक सेवक मंडल, नागपूर की ओर से भी आर्थिक सहायता ली।
   
           इस तरह से इस डेअरी की दिनोंदिन प्रगती हो रही है। आज इस तरह रोजाना ८००  लिटर दुध संकलित होता है। यहाँ के दूध उत्पादकों को समयपर एवं बिना परेशनी के पैसे दिये जाते है इस कारण इस क्षेत्र के दूध उत्पादक उत्साहीत है। आज इस डेअरी की स्वयं की वास्तु है और उसका परिसर यहाँ के कर्मचारियों ने अत्यंत रमणीय बनाया है। इस संस्था की स्वयं की "फॅट परिक्षण मशीन" है और दूध उत्पादकों के जानवरों के लिये पशु-आहार का क्रय-विक्रय केन्द्र भी शुरु किया है। उसी तरह पुरक धंदे के रुप में रासायनिक खाद का व्यवहार प्रारंभ किया है। जिससे इस परिक्षेत्र के लोगों का बरबाद होने वाला समय, वे कृषी के कार्य में उपयोग करते है।
         
            यह सभी बातें महानत्यागी बाबा जुमदेवजीं इनके मार्गदर्शन से संभव हुई है। उन्होने अपने सेवकों को इस ग्रामीण विभाग में आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर व्यावहारिक ज्ञान दिया। इस प्रकार बाबाने अपने सेवकों की सामाजिक समस्याएँ हल की हैं।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।


टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )

https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

सेवक एकता परिवार ( Blogspot )

https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1

सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )

https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w


सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Wednesday, May 27, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३५) "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था सालईमेटा"

                      "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



                  "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                    प्रकरण क्रमांक (३५)

     "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था सालईमेटा"


प्रकरण क्रमांक:- (३५) "दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था, सालईंमेटा" 


            सन १९७६ में परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक का काम शुरु हुआ। उसकी सीमा संपूर्ण नागपूर जिला होने से उस बैंक का लाभ नागपूर जिले में रहनेवाले कुछ गांव के सेवकों ने जोडधंघे के नाम से कोई भी योजना चलायेंगे ऐसा सोचकर उन्होने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को मार्गदर्शन करने की बिनती की । 
 
         सन् १९७८ में एक दिन श्री. गडीरामजी डोनारकर इनके साथ श्री. यादोराव गावंडे, रामा दिवटे, फकीरचन्द भिवगडे आदी १०-१५ सेवक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी से मिलने आये। वे नागपूर जिला के रामटेक तहसील में शामील सालईंमेटा, आसोली, भंडारबोडी, पिमनटोला, कथलाबोडी, घमाँपुरी इस गांव में रहनेवाले सेवक थे ।  यह क्षेत्र पहाडों के आसपास का होने से ओंर वहॉ की जमीन सुखाग्रस्त (कोरडवाहु) होने से नागपूर जिले का यह क्षेत्र पिछडा हुआ क्षेत्र से जाना जाता है। इस क्षेत्र के निवासी अधिकतर आदिवासी है । वे बाबां को बिनती कर कहते कीं, बाबा हमारे क्षेत्र के नाम से जाना जाता है । इस क्षेत्र में महादुला, शिवनी यहॉ दुध डेअरी है, लेकीन हमें पेमेंट समयपर नही मिलता। इस प्रकार हमें व्यावहारिक कठिनाई है। इसलिये आप हमारे क्षेत्र में पिछडे हुए कृषक वर्ग को पूरक ऐसा जोडघंघे के नाम से दुग्ध व्यवसाय(दुघ डेअरी) शुरु करके हम सेवकों का जीवनमान उँचा करे । 

          बाबांने जिस तरह इन सेवकों के शारिरीक , मानसिक दुख दूर करके उन्हे सुख समाधान दिया । उसी तरह उनका जीवनस्तर उँचा बनाने के लिये आर्थिक लाभ मिलना चाहिए इसलिये उन्होने उपरोक्त बिनती कों सहमती दी। उसके पीछे बाबां का एक ही उद्देश था की व्यवहार में सत्यता लाये। सत्य के सिवाय श्रमजीवी लोगों को न्याय नहीं मिलेगा। इसलिये बाबांने दुध डेअरी की अस्थापना करके श्रीमान गडीरामजी डोनारकर इन्हे प्रमुख प्रवर्तक बनाया और एक समिती गठित की । तथापि ३ १ सेवकों की और से रु. ६१० पूँजी जमा काके जिल्हा दुग्ध विकास अधिकारी, उमरेड ब्दारा परमात्मा एक सेवक दुग्ध उत्पादक सह. संस्था म. सालईमेटा इस नाम से उनके पत्र क्रमांक ए.आ.यू. /ए.जी.आर.आय. / २५९ / ७८ दि. २२ / ०६ / १९७८ कों पंजीयन किया गया । 

           एक अक्तुबर १९७८ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके शुभ हाथों इस मार्ग के सेवक और विदर्भ बुनकर सहकारी संस्था नागपूर के अध्यक्ष स्व.श्री. सोमाजी बाबुरावजी बुरडे इनकी अध्यक्षता में उदघाटन का कार्यक्रम पूरा हुआ। और डेअरी के कार्य को नियमानुसार शुरुवात हुई । पहले ही दिन १५० लीटर दुध संकलित किया गया। लोगों को दूध की राशि (रक्कम ) हर हप्ले समयपर मिलने लगी। इससे उन्हे अति आनंद हुआ । 

           दिसंवर १९७८ मैं इस क्षेत्र के २७ सेवकों को कमजोर समूह मानकर परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक नागपूर यहाँ से पचहत्तर हजार रुपयों की भैसे वितरित की गई। इसलिये इस क्षेत्र के लोगों को और अधिक उत्पन्न का साधन प्राप्त होने से इस दुग्ध संस्था की बहुत प्रगती हुई लेकीन सरकारी दुध योजना के जो कर्मचारी दुध जाँच कर मिल्क स्कीम में ले जाते थे, उन लोगों ने दुध डेअरी को बहुत परेशान किया। बाबाँने यह सब सह लिया लेकीन कुछ दिन बाद उन कर्मचारियों को पुछा की, इसके पिछे आपका उद्देश क्या है ? सत्य व्यवहार होकर आपको अच्छे किस्म का दुध मिलता है और ऐसा होकर भी ग्रेड के नीचे दुध है कहकर दुध छोड देते हो। तब मॅनेजर और दुध उत्पादकों नें बाबा को बताया की, आपने सिखाये अनुसार हमने सारा व्यवहार किया और उन्हे रिश्वत नही दी इसलिये ८०० ९०० लीटर दुध छोड दिया । यह सुनकर बाबाको बहुत दुख हुआ । तब उसी दिन बाबाँने उन दुध उत्पादकों को संपूर्ण दुध मुफ्त में बाँट दिया और उन्हे दही, घी, मख्सन बनाकर उसका उपभोग लेने बताया। इस तरह यद्यपि संस्था का नुक़सान हुआ फिर भी आगे यह सरकारी लज्जित होकर सुधरे और उन्होने इसके बाद का व्यवहार अच्छा किया । 

         इस ठेअरी के लिये, "मानव घर्मं " इस मार्ग का सेवक श्री. सदाशिवरावजी तुपट इन्होने अपनी जगह में से ५०×५० फिट जगह दान दी । क्योंकी वह मार्ग का सेवक होने से पूर्व अत्यंत दु:खी-त्रस्त था । वह भावनाओँ के पीछे गया था । इस दुखों के कारण अनेक देवी-देवताओं का विसर्जन कर वह इस मार्ग में आया । उसे समाधान प्राप्त हुआ। इसलिये उसने दान देते समय कुछ भी लालच न रखका अपनी संस्था है यह क्या दान किया। लेकीन महानत्यागी बाबा जुमदेवर्जीने उन्हे इस संस्था में आमरण चौकीदार की नौकरी देकर उन्होने किये दान की और उनकी उदार भावना की बाबांने कदर की और उन्होने चौकीदार की नौकरी सहर्ष स्विकार की । 

        इस संस्था की इतनी जोरदार प्रगती हुई कीं केवल छ: महिने में अर्थात मार्च १९७९ में संस्थाने स्वयं का कुआँ बनाकर कर्मचारी निवासस्थान भी बनाया। इतना ही नही तो चारा कटर मशीन और आटाचक्की भी संस्थाने जोडधंधा के नाम से प्रारंभ किया। सन १९८० में आरे कालोनी, मुंबई से सरकारी योजनानुसार १०८ भैंसों के बछड़े लाकर दुध उत्पादक सभासदों कों बाबा के हाथों से वितरित किये गये । सन १९८१ में दुध उत्पादकों के जानवरों के लिये पशुआहार याजीय किमत में सप्लाई करने के उद्देश्यों से संस्थाने पशुआहार खरेदी-बिक्री का व्यवसाय शुरु किया । मशीनपर चारा कटर वाजीब भाव में उत्पन करने से उत्पादकों के पास के चारा (कडबा ) की बरबादी होने से बचाने में कामयाबी प्राप्त हुई। इस तरह इस संस्थाने किये हुए जनसेवा के कार्यं देखकर महाराष्ट्र शासनाने जिला दुध बिकास विभाग के द्वारा १५ हजार रुपये की कडबा ( चारा ) ५०% प्रतिशत अनुदान पर संस्था को दी । 

         इस संस्थाने दूध उत्पादकों को खेती (कृषी ) के लिये आवश्यक रासायनिक खाद का खरेदी-बिक्री का व्यवसाय सन् १९८५-८६ में शुरु करके दुध उत्पादकों को होनेवाली कठनाइंर्यों से मुक्त किया तथा उनके समय की भी बचत की । सन १९८६- ८७ मैं संस्था का कार्यक्षेत्र बढने से जगह कम पडने लगी इसलिये संस्थाने कार्यालय के लिये पक्का भवन तैयार किया। इस संस्था की दिनोंदिन हो रही प्रगती( तरक्की ) देख कर महाराष्ट्र शासन ने १९८८-८९ साल में ७५% प्रतिशत अनुदान पर २८ हजार रुपये की मिल्को टेस्टर ( फँट परिक्षण) मशीन दी । 

        इस प्रकार इस संस्थाने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के मार्गदर्शन से दिनोंदिन प्रगती का अपना नाम महाराष्ट्र शासंन के पास उज्जल किया है इसका संपूर्ण श्रेय महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनको ही है । इस बारे में इस क्षेत्र के सेवक बाबा के ऋणी है ।

नमस्कार...!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Tuesday, May 26, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३४) "सहकारी ग्राहक भांडार"

               "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



              "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                   प्रकरण क्रमांक (३४)

                "सहकारी ग्राहक भांडार"


प्रकरण क्रमांक:- (३४) "सहकारी ग्राहक भांडार"


       महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने आध्यात्मिक कार्य के व्दारा सेवकों के शारिरीक दुःख दूर करने पर उनका जीवनस्तर उपर लाने हेतु उन्हें आर्थिक लाभ प्राप्त हो इसलिये  सहकारी बैंक स्थापित कर सहायता की। तत्पश्चात सेवकों की दैनिक मुलभत आवश्यकताएँ आसानी से कैसे पुरी होंगी इस ओर भी उन्होने ध्यान दिया।

        सितंबर १९७६ में एक दिन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवासस्थान पर परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के पदाधिकारी उपस्थित थे। चर्चाबैठक के दौरान उन्होंने बाबा को बिनती की की, वर्तमान में बाजार में अच्छी वस्तुएँ मिलती नही। जिधर उधर खाद्य वस्तुओं में मिलावट हो रही इसलिये हम सेवकोंकी ऐसी इच्छा है की, अपने मार्ग के सेवकों को जीवनोपयोगी वस्तु अच्छी, शुष्द और आसानी से मिले। इस उद्देश से सहकारी तत्वोपर बाबा के मार्गदर्शक में एकाथ ग्राहक भांडार तैयार होना चाहिए। इस पर बाबांने सेवकों को मार्गदर्शन किया। बाबांने उस प्रस्ताव का स्वागत किया और उन्होने कहा, आप सबकी इच्छा है तो सहकारी भांडार स्थापित करने में कोई दिक्कत नही। बाबा सेवकों की इच्छा को हमेशा साथ देकर वह पुरी करते है। तथापि हमें अच्छी चीजे योग्य दर पर आसानी से कैसे प्राप्त होगी, इसका विचार करे, ऐसा कहकर बाबाने सेवकों को आदेश दिया की बहुउद्देशिय भांडार के बॉयलॉज खरीदकर सहृकारी तत्वोपर
प्रयोजल तैयार करें और जिला उपनिबंधक सहकारी संस्था इनकी ओर भेजे वैसे ही खाद्य-आपुर्ती अधिकारी इनसे अनाज के लिये संपर्क करे इसके लिये श्री. देवाजी दिल्दुजी खापरे इनको मुख्य प्रदर्तक मनोनीत कर के ग्यारह लोगों की समिती स्थापन की गई और बाबांके मार्गदर्शन में इस समितीने ग्राहक भांडार निर्मिती का कार्य किया।

        जिला उपनिबंधक सहकारी संस्था नागपूर इनसे पत्र व्यवहार पूरा होने पर उनके पत्र व्यवहार पूरा होने पर उनके पत्र क्रमांक एन.जी.पी./सी. ओ.एन/ १८७/७६ दि. १६ दिसंबर १९७६ के पत्रानुसार "परमात्मा एक सेवक बहुउद्देशिय ग्राहक भांडार सहकारी संस्था, नागपूर" इस नाम से चिल्लर खरीदी-बिक्री के लिये संस्था का पंजीयन किया गया। इस समय तक सेवकों की पूँजी के रूप में ६०२० रुपये जमा हुये थे। व्यवहार के लिए राशि की कमी होने से सेवकों की ओर से सावधि जमा स्वीकार किये गये। साथ ही जिला मध्यवर्ती ग्राहक भांडार सहकारी संस्था की पूँजी भी ली गई। उसी तरह नागपूर डिस्ट्रीक्ट को ऑपरेटिव्ह बैंक, नागपूर से पचास हजार रुपये का कॅश क्रेडीट कर्ज लिया। गया। दुकान के लिये सुयोग्य ऐसी जगह देखकर पहले किराणा और खाद्य दुकान १०३२० रुपये पूँजी पर खोली गयी। ४ जुन १९७७ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनकी प्रमुख उपस्थिती में श्री. नागोराव खापरे, अध्यक्ष, परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक इनके शुभ हाथों से भांडार का उद्घाटन जागनाथ बुधवारी, तीन नल चौक यहाँ पर हुआ। इस दिन फल्ली तेल का कोटा बाँटा गया। इस दुकान में दैनिक जीवनोपयोगी बस्तुएं, अनाज, किराणा, आदि रखे गये थे। इस प्रकार सेवकों को तथा उस क्षेत्र के गरीब लोगों को उचित दाम पर अच्छी वस्तुएँ मिलने का एकमात्र केन्द्र बना है।

        इस दुकान में संपूर्ण व्यवहार सत्य से ही किया जाता है। इस दुकान की प्रगती होकर उसी का दुसरा हिस्सा कुछ ही दिनों में कपड़ा बिक्री से प्रारंभ किया गया। इस दुकान की ख्याती सुनकर महाराष्ट्र सरकारने शक्कर और सिमेंट की एजेन्सी भी संस्था को दी और इस चिल्लर व्यवहार के साथ थोक व्यवहार शुरू हुआ। यह ग्राहक भांडार सहकारी तत्यों पर बाबा के आदेशानुसार "ना लाभ ना हानी" इस तत्व पर शुरु है। यहाँ के संचालक मंडल निष्काम भावना से ग्राहक मंडल की सेवा करते है यहाँ के कर्मचारी स्वयं की दुकान समझकर बाबाने सिखाये अनुसार सत्य, मर्यादा, प्रेम से व्यवहार करते है। इस कारण इस दुकान के बारे में जानकर बुधवारी क्षेत्र में आदर स्थापित होकर विश्वास निर्माण हुआ है। इसलिये यह संस्था कम समय में प्रगती पथ पर आयी है। इस दुकान के कर्मचारी भी निस्वार्थ भावना से कार्य कर के ग्राहक भांडार का नाम उज्ज्वल करने में सहायता दे रहे है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

प्रकरण क्रमांक:- ( ३३) "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"

                "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



              "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                    प्रकरण क्रमांक (३३)

 "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"


प्रकरण क्रमांक:- (३३) "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बँक"


       त्यागी बाबा जुमदेवजी के आदेशानुसार फंड अनुदान जमा किया गया। यह कार्य लगातार नौ वर्ष तक चलता रहा। इस समय सेवकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी। बूंद-बूंद से तालाब भरता है" इस कहावत के नुसार १९६६ से १९७५ इन नौ साल में उनतालीस हजार रुपये फंड अनुदान में जमा हुआ था। वह संपूर्ण राशि बैंक में  जमा ही रही थी। इस राशिपर उन्नीस हजार रुपये व्याज मिला था। इस प्रकार अठ्ठावन हजार रूपये जमा हुये थे।

           जनवरी १९७५ में बाबा जुमदेवजी की प्रमुख उपस्थिती में परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर के कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी गई थी। उसमे इस जमा हुए पैसे का कैसा उपयोग करना चाहिए। इस विषय पर चर्चा हुई तब अधिकतर कार्यकर्ताओं की ओर से ऐसा विचार व्यक्त किया गया की, इस राशि से क्रेडीट सोसायटी निर्माण
करनी-चाहिए, जिससे गरीब सेवकों को इसका लाभ मिलेगा। बाबांने सब के विचार शांतीपूर्वक सुन लिये। तत्पश्चात बाबाने अपने मार्गदर्शन में बताया की, "हमे खजिना तैयार करना है।" तब सेवकोंने बाबासे सर्विनय पुछा की, बाबा सहकारी बैंक स्थापना करना है क्या? तब बाबांने हाँ कहा और बैंक स्थापन करने के लिये लगनेवाली पूँजी ५० हजार रुपये चाहिये यह भी बताया। यह पचास हजार से अधिक पूँजी जमा होने पर कुछ कार्यकर्ताओं को बाबांने आदेश दिया की उपविधी (बायलॉज) की किताब लेकर बैंक का प्रपोजल तैयार करे। तदूनुसार उन कार्यकर्ताओंने बैंक का प्रपोजल १५ दिन में तैयार किया। जमा किये गये रुपयों को शेअर्स में अंतरित किए। इस प्रपोजल की प्रवर्तक कमेटी बनाकर श्री. महादेवरावजी कुंभारे इनको प्रमुख मनोनीत किया गया। वह प्रपोजल अतिशिघ्र सहकारी अधिनियम के अनुसार नागरिक सहकारी बैंक पंजीकृत करने के लिये सहकार विभाग की ओर आवश्यक संपूर्ण जानकारी के साथ प्रस्तुत किया गया, उस वर्ष तक अर्बन बैंक की पचास हजार पूँजी पर पंजीयन होता था।

         पंद्रह दिन बाद यह प्रपोजल सहकार विभाग से वापस आया उसकी सपूर्ण जॉँच पड़ताल करने से पता चला की बैक पंजीयन के लिये ५० हजार के स्थानपर १ लाख पूँजी  चाहिये। इसलिये १ लाख पूँजी होने पर प्रपोजल भेजे ऐसा फाईल पर लिखा था। क्योंकी उसी समय सहकार विभाग के नियमों में बदलाव हुआ था।

          महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके समक्ष प्रश्न निर्माण हुआ की नौ साल में ३९ हजार रुपये जमा हुए तो एक लाख रुपये जमा होने में कितना समय लगेगा? इसलिये फिरसे कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी गई और वहाँ विचार विमर्श शुरु हुआ। बाबांने कार्यकर्ताओं को योग्य मार्गदर्शन किया और बताया की, यदी कार्यकर्ता बाबाको साथ देते होंगे तो नागपूर के हरएक गट में सेवकों की बैठक लेकर मार्गदर्शन करेंगऔर इस तरह बाबा के साथ जो कार्यकर्ता घुमने के लिए तैयार है, उन्होने अपना नाम दै। इसके बावजूद अगर नागपूर में उतनी पूँजी जमा नहीं हुई तो बाहर गांव के सेवकों से जमा की जाएगी ऐसा भी तय हुआ। इस समय इस मागे के सात सौ (७००) सेवक थे।

           निश्चित किये अनुसार महानत्यागी बाबा जुमदेवजी और ९० से १०० सेवक मंडली हरदिन सुबह आठ बजे निकलकर रात बारा बजे तक नागपूर के सेवकों के यहां घर-घर जाकर उन्हें कठिनाई बताकर उनसे पैसा जमा करने लगे। इस समय इस मार्ग में  अधिकतर गरीब लोग सेवक थे। उन्होने बाबां के आदेशो का पालन कर ज्यादा से ज्यादा सहायता की। नागपूर के सेवकों की ओर से जमा हुई राशि सहकार विभाग की सीमा पूरी  नहीं कर सकी। इसलिये बाबा और सेवक बाहरगांव में रहनेवाले सेवकों के घर गये और  सामान्यतः दो महिनों में ५० हजार पूंजी जमा की। यह पूंजी जमा करने के दौरान बाबांने  खाने-पीने की परवाह नहीं की। वे गर्मी-धूप में निरंतर घूमते थे। किसी के भी यहाँ चाय नही लेते थे। घन्य है महानत्यागी बाबा जुमदेवजी।

       पूँजी की एक लाख की सीमा पूर्ण होने पर प्रपोजल पुनः पंजीयन हेतु सहकार विभाग में प्रस्तुत किया। उस विभाग ने वह प्रपोजल मुंबई को भेजा। लेकीन उसका जवाब ६ माह होने पर भी नही आया  नागपूर में पूछताछ करने पर हमेशा टालमटोल का जवाब मिलता था। इसलिये बाबां के मन में शंका निर्माण हुई। उस समय बाबां के साले श्री सोमाजी बुरडे हमेशा काम के सिलसिले में मुंबई जाते रहते थे इसलिये बाबांने उन्हे इस प्रपोजल की पूछताछ करने को बताया। तदनुसार उन्होने पत्र क्रमांक और तारीख नोट की और नागपूर आनेपर उन्होने वह जानकारी बाबा को दी। बाबा स्वयं इस प्रपोजल के प्रमुख प्रवर्तक श्री. महादेवरावजी कुंभारे इनके निवासस्थान पर गये और उन्हें वह जानकारी देकर नागपूर के सहकार विभाग में पूछताछ के लिये भेजा।

      बाबा का आदेश लेकर श्री. महादेवरावजी कुंभारे सहकार विभाग, नागपूर में तुरंत उसी दिन पूछताछ करने के लिये गये लेकीन इस भ्रष्टाचार के जमाने में नौकरशाही किसी की सुनेंगे तो ना? वह दिन पूछताछ करने में गया। इस भ्रष्टाचार के समय में नौकरशाही किसी की सुनेंगे वह दिन अच्छा समझना चाहिए। सभी नियम उनके हाथ में होते है। लोगो नें उन्हें सलाम करना ही चाहिए। पूछताछ के पश्चात श्री. कुंभारे जी ने बहुत बिनती की की, आप जाँच कर देखो। शायद आया है ऐसा लगता है। यदि किसी ने सुन लिया तो वह नौकरशाही (लालफिताशाही) कैसी ? उलटे वे कुंभारेजी पर क्रोधीत हुए। ऑफिस में काम हम करते है या आप? फाइल न ढूंढते ही उन्होने कहा की, आपके प्रपोजल की स्विकृती आयी नही। एक माह का समय लगेगा. आप जाईये, हम आपको सुचित करेंगे। यह सुनकर श्री. कुंभारेजी को बहुत बुरा लगा। कुंभारे जी के पास प्रपोजल स्विकृत होने की जानकारी रहने से उन्होने उनको बताने के बावज़ुद वे सुनने को तैयार  नही थे। इससे लालफिताशाही कितनी सख्त होती है यह सिध्द होता है। महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने श्री. कुंभारेजी को बताये अनुसार उनकी शिकायत "जाँईंट रजिस्टार" को की और सभी सत्य परिस्थितीयों से अवगत कराया गया। उन्होने शांततापुर्वक सुन लिया सहकार विभाग को फोन करके उन्होने संपूर्ण  प्रपोजन अपने पास मँगवाया। उनके पास संपूर्ण रिकॉर्ड के साथ फाईल गई। उन्होंने स्वयं वह केस देखी और तुरन्त चार दिन बाद प्रवर्तक को उनके विभागीय सह निबंधक
(असि. रजिस्ट्र), सहकारी संस्था इनकी ओर से उनके पत्र क्र. एन.जी.पी./बी.एम.के./२३८/७५ अनुसार दि.१९/०९/१९७५ को संस्था रजिस्टर्ड (पंजीकृत) होने बाबत सूचित किया लालफिताशाही वरिष्ठ अधिकारी पूरी  तरह ध्यान नहीं दे पाते, इसलिये लोगो ने हमेशा सजग रहना चाहिए, यह इससे स्पष्ट होता है। उपरोक्त पत्रानुसार "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, नागपूर" कार्यक्षेत्र संपूर्ण नागपूर जिला निर्धारित कर पंजीकृत की गई।

         बैंक का नियमानुसार पंजीकरण होने के बाद बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने के  लिए रिजर्व बैंक के पास अनुमती के लिये आवेदन प्रस्तुत किया गया। लेकीन इस समय भी कठीनाई आयी। इसी दरम्यान रिझव््ह बैंक के नियम बदले थे इसलिये नये बदले हुए मियमानुसार तीन लाख रुपये पुँजी जमा हुए बिना बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने की अनुमती नही दी जा सकती, ऐसा सुचित किया गया। यह जानने पर बाबा के समक्ष पुन: प्रश्न उपस्थित हुआ की एक लाख रुपये जमा करने में बहुत कष्ट उठाना पड़ा तो तीन लाख रुपये जमा करने के लिये कितना समय लगेगा और कैसे जमा होंगे? क्योंकी इस मार्ग के सेवक गरीब और परिस्थिती से पिछडे थे दूसरी बात राशि केवल सेवकों से ही लेना यह बाबां का निश्चय था उस समय केवल ७०० सेवक थे। फिर से बाबांने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर उन्हें संपूर्ण परिस्थिती बाबत मार्गदर्शन किया और नागपूर में प्रत्येक गट में बैठक लेने का निश्चय किया।

          पहली बैठक बिनाकी मंगलवारी, नागपूर यहाँ हुई। इस बैठक में प्रवर्तक कमिटी के अलावा बाबा की प्रमुख उपस्थिती थी। इस बैठक में उस गट के सेवकों के अलावा अन्य गट के सेवक भी उपस्थित थे। प्रमुख कार्यकर्ताओंने बैठक के आयोजन के बारे में बता कर बैंक की निर्मिती के लिये आनेवाली दिक्कतों के विषय में विचार सेवकों के समक्ष रखे । तब कुछ सेवकों ने अपने विचार रखे की हम गरीब आर्थिक स्थिती से पिछड़े सेवक दो लाख रुपये कैसे जमा करेंगे? यह तो संभत नही होगा। तथापि बाबा हमें योग्य मार्गदर्शन रें। ऐसी सेवकों ने बिनती की।

         सेवकों की इच्छानुसार बाबांने मार्गदर्शन किया उन्होने कहा, बाबा जिसके लिये यहाँ उपस्थित हुए है इस बारे में प्रमुख कार्यकर्ताओंने जानकारी दी है, और अपने जो विचार रखे वह वाजीव (योग्य) और सत्य है। इसमें दोमत नही लेकीन आज की। आवश्यकता की पुर्ती के लिये थोडा कष्ट करना पडेगा। थोडा कष्ट सहन करना होगा। तभी भगवंत तुम्हारी गरज(आवश्यकता) पुरी करेगा लेकीन सेवक इन्कार ना करें। इस तरह से बाबांके मौलीक (अनमोल) मार्गदर्शन होने पर बैठक संपन्न हुई। दुसरी बैठक बुधवारी में श्री. हरिभाऊ भनारकर इनके यहाँ हुई। वहाँ भी बैंक निर्मिती के लिये आयी समस्या बताई गयी। उस पर सेवकों ने अपने-अपने विचार रखे । और गरीब परिस्थिती में पैसा कहा से लायेंगे यह प्रश्न उपस्थित किया। उस समय ऐसे  लग रहा था की, बैंक निर्माण करने के लिये किये गये सारे प्रयत्न और श्रम सेवकों की  समस्या रहने से बेकार जाते हैं क्या ? ऐसा कार्यकर्ताओं को लगने लगा। लेकीन भगवंत  की कृपा महान है। सेवकोंने बाबा को मार्गदर्शन करने की बिनती की। बाबांने सबके विचार सुने थे। सेवकों ने बाबा को मार्गदर्शन करने की बिनती की। बाबा निराकार में आयें और सभी सेवकों कों संबोधित करते गुससे से  बोले "बैठक बंद करो। बाबा किसी की नहीं सुनेगे। जब तक २ लाख रुपया जमा नहीं। होता तब तक बाबा किसी सेवक के घर में पानी तक नहीं पियेगे, यह बाबा का प्रण है"।
यह सुनते ही सभी सेवक चकीत और दुखी हुए तत्पश्यात बाबा पुनः सेवकों के यहाँ पेसा जमा करने के लिये कुछ सोवकों के साथ गाँव-गाँव, गर्मी-धुप में पैदल, बैलगाडी से धुमे लेकीन किसी के यहाँ पानी तक नही पीते थे। इस तरह बाबांने त्याग से, ओर सेवकों ने किये प्रयास से दो लाख रुपए केवल दो माह में जमा किये और यह संपूर्ण राशि ( रक्कम)  गरीब सेवकों की ओर से ही जमा की गई। सेवकों के अलावा किसी और लोगों से यह  राशि वसुल नही की गई। इन सेवक-सेविकाओं ने बहुत मेहनत-मजदूरी कर के कुछ सेविकाओं ने तो स्वयं के आभुषण बेचकर बाबा के आदेशों का पालन किया और उन्होंने किये त्याग फलस्वरूप यह कार्य भगवतने अल्प समय में पूरा किया।"भगवान के पास देर हैं। अंधेर नहीं" इस कहावत नुसार इन गरीब लोगों ने जो कष्ट झेला है उसकी पूर्णतः पूर्ती भगवंतने उन्हें शीघ्र ही कर दी।

         तीन लाख रुपये पूँजी पुरी होने पर रिझव्ह बैंक को सुचित किया गया और दि. ३० अगस्त १९७६ को रिझर्व्ह बैंक से नियमानुसार बैंकींग व्यवसाय प्रारंभ करने का परवाना (अनुमती) प्राप्त हुआ। दिनांक ४ दिसंबर १९७६ को गोलीबार चौक यहं बैंक का कार्यालय प्रारंभ किया गया। उस समय के महाराष्ट्र राज्य महाराष्ट्र राज्य के सहकार मंत्री श्री. रामकृष्णाजी बेत इनकी अध्यक्षता में और श्री. व्ही. एम. जोगलेकर, रिटायई डायरेक्टर, महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक म.मुंबई इनकी प्रमुख उपस्थिती में बैंक के संस्थापक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी उनके हाथो बैंक का उद्घाटन शुभारंभ किया गया।

          इस तरह दरिद्री रेखा के नीचे जीवन जीने वाले मानवों की एक बैंक निर्माण हुई और एक-एक बुँद से बैंक रूपी तालाब बाबांने भर दिया है ऐसा कहना अतिष्योक्ती नहीं होगी। यह बैंक निर्माण करते समय गोलीबार चौक जैसे पिछड़े हुए क्षेत्र में यह बैंक कसी निर्माण होगी इस बारें में वहाँ के अन्य लोगों के मन में कुशंकाओं का बीज बोया गया था। क्योंकी व्यवसाय अमीर लोगों के हाथ में थे और दुनिया में सहकारी तत्वोंपर जो बैंक निर्माण हुई उनमें सब अमीर लोग भरे हैं ऐसी परिस्थिती में इस पर लोगों का विश्वास नहीं बैठता था। लेकीन बाबा जुमदेवजी का मार्गदर्शन और किया गया त्याग, कार्यकर्ताओं की जिज्ञासा, सेवकों ने दिया हुवा सहयोग और परमेश्वरी कृपा इससे यह महान कार्य हुआ। इरमें कोई शंका नही है।

          तत्पश्चात इस बैंक की स्वयं की वास्तु रहनी चाहिए। शहर के पिछड़ा वर्ग क्षेत्र में लोगों का विश्वास कायम हों और लोगों का बैंकीग व्यवसाय में सहकार्य मिले इस दृष्टि से  यहाँ के कार्यकर्ताओं ने विशेषतः बैंक के कार्यकारी मंडलने निष्काम भावना से सेवा की। बैंक के शेअर घारकों ने बँक को होनेवाले मुनाफे से आवश्यक वह प्रोबिजन करने पर। बाकी मुनाफा इमारत निरधी में अंतरित करने का निश्चय किया और जब तक बँंक की वास्तु तैयार नहीं होती तब तक लाभांश नही लेना ऐसा संकल्प शेअरधारकों ने किया। इस संकल्प के कारण ही अल्प समय में ही इस बैंक की स्वयं की वारतु तैयार हुई और २५ मार्च १९८४ को महानत्यागी बाबा जुमदेवजी के हाथों उसका उद्घाटन हुआ। जिस समय यह वास्तु निर्माण हुई उस समय सहकारी क्षेत्र में शुरु रहनेवाली नागपूर की आठ बैंको में स्वयं की वास्तु रखने वाली यह एकमात्र बैंक बनी।

           महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने दिये हुए प्रेरणानुसार बँक के पदाधिकारी तथा कर्मचारी निष्काम सेवा से बँधे हुए है। बैंक का कोई भी पदाधिकारी सेवाबाबत किसी प्रकार का मानधन नही लेते। बैंक के संचालक मंडल की सभा में भी स्वयं के चाय-पान का खर्थ स्यं करते हैं। इतना ही नही जिस बाबांने इतनी बडी बैंक निर्माण की, मार्गदर्शन किया, स्वयं कष्ट किया, स्वयं शारिरीक कष्ट उठाया, वह महानत्यागी बाबा जुमदेवजी यहाँ के संस्थापक होकर भी यहाँ के पैसो पर जीना अथवा स्वयं के लिये कुछ पेसा खर्च करना, यह तो छोडिये, बैंक में गये तो वह बैंक के पैसे से चाय तक नही लेते है धन्य वह महानत्यागी बाबा जो हम सेवकों को मिले और इस देश में ही नही तो संपूर्ण दुनिया में तारीफ करने लायक, निष्काम भावना से कार्य करनेवाले, दारिद्री रेखा के नीचे के गरीब लोगों के उत्पन्न से निर्माण हुई, अलग थलग निराली बैंक "परमात्मा एक सेवक नागरिक सहकारी बैंक" मर्यादित नागपूर यह है।

      इस बैंक के भरोसे पर ही महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने रामटेक तालुका के सालईमेटा और भंडारा जिला के धोप इस गांव में दूध उत्पादक संस्था और बुधवारी  नागपूर में ग्राहक भांडार की स्थापना की है। और सामाजिक परिवर्तन लाया है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/


Monday, May 25, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३२) "फंड अनुदान"

               "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



              "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                  प्रकरण क्रमांक (३२)

                         "फंड अनुदान"


प्रकरण क्रमांक:- (३२) "फंड अनुदान"


          महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके मार्गदर्शन से इस मार्ग के सेवकों को परमेश्वरी कृपा का लाभ मिला है। इसी कारण उन्हें शारिरीक और मानसिक समाधान मिला। तथापि, भगवत्कृपा उनके साथ खड़ी रही। बाबां के यहाँ आनेवाले बहुत से सेवक विशेषतः अधिक संख्या में आर्थिक दृरष्टी से पिछडे वर्ग के गरीब, मेहनत, मजदुरी करनेवाले, खेतमजदुर, बुनकर इत्यादी बहुजन समाज के लोग है। वे सेवक दुखो के जलजले मे धुसने के कारण उनकी आर्थिक परिस्थिती अत्यंत कमजोर थी।

       महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके निवासस्थान पर हर शनिवार को सायंकाल में निराकार बैठक होती थी। सन १९६६ की बात है। ऐसे ही एक शनिवार को निराकार बैठक के दौरान सेवकों की आर्थिक परिस्थिती सुदृढ हो और आर्थिक स्थिरता मिले इसलिये सेवकोंने बाबां को इस बाबत मार्गदर्शन करने की बिनती की।

          एक बार बाबा निराकार स्थिती में विदेह अवस्था में रहने पर उनके मुखकमल से शब्द बाहर निकले की, इस मार्ग में आये हुए सेवक बुध्दीहीन श्रमिक, गरीब और मेहनतकश है। इस कलियुग में असत्य व्यवहार के कारण उनको उनके परिश्रम का लाभ उनके जीवन में नही मिलता। बाबा ने आगे कहा-इस मार्ग में आये हुए सेवकों पर नियम के रूप में सभी प्रकार के 'बंधन लगाये' और बुरे मार्ग से जाने वाला पैसा बचाए। इसी कारण उनके जीवन में प्रगती हुई, उनकी बुरी भावनाएँ समाप्त हुई, इसलिये उनकी आर्थिक परिस्थिती में उत्तरोत्तर प्रगती होनी चाहिए। इसलिये उन्होने सत्य निर्माण करने के लिये और मानव जीवन का स्तर उपर लाने के लिये फंड अनुदान देने का सेवकों
को आदेश दिया।

             इसके बाद में अगली बैठक इस मार्ग के वरिष्ठ सेवक श्री बाजीरावजी माटे इनके निवासस्थान पर हुई। उस बैठक में सेवक और जबाबदार कार्यकर्ता उपस्थित थे। इस बैठक में बाबां के आदेशानुसार एक सेवकने सभी सेवकों को बताया की, महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनका ऐसा उद्देश है की, इस मार्ग में दीन दुःखी, गरीब सेवक हैं वे आशिक्षित है। इसलिये वे साहूकार से पैसे व्याज पर लेते हैं। परिश्रम से कमाया हुआ समस्त पैसा व्याज के रूप में साहूकार के पास जाता है, यह अच्छा नहीं। साहुकार के फाँसे से मुक्त होने के लिये, मानव मंदिर सजाने के लिये, सत्य काम निर्माण करने के लिए फंड अनुदान जमा करना आवश्यक है। इसके लिये अपने-अपने विचार रखे की फंड अनुदान किस तरह जमा किया जाये। जिससे वह इन गरीब सेवकों के उपयोग में आएगा।

         इस पर कुछ सेवकों नें अपने-अपने विचार निम्नानुसार प्रदर्शित किये। कुछ सेवकोंने कहा की बाबांने सेवकों का पैसा बचाया है। इसलिए दस रुपये महिना फंड अनुदान जमा करें। इससे मानवी जीवन साध्य होगा। कुछ लोगों ने कहा की, हम दस रूपये क्या पांच रूपये महिना भी जमा नही कर सकते। इसपर जबाबदार सेवकोंने कहा की, चार आणा, आठ आणा, एक रुपया इस तरह महिने के अंत तक जमा करें कन लोगोंने यही राशी प्रत्येक सप्ताहू को जमा करना चाहिये ऐसे विचार रखें। सबसे अंत में बाबांने इस पर मार्गदर्शन किया की सेवकोंने अपनी परिस्थिती अनुसार और सामर्थ्य अनुसार जमा करना होगा और मार्ग लेनेवाले नये सेवकों को फंड अनुदान जमा करना होगा। हर सप्ताह में होनेवाली चर्चा बैठक में सेवकोंने उपस्थित रहना चाहिये। ध्येय घोरण से चले ऐसा आदेश दिया। तदनुसार सभी सेवक बाबांके आदेश का पालन कर पाच रुपये महिना अथवा सवा रुपया हप्ता इस प्रकार सेवक फंड अनुदान में राशि जमा करने लगे। इस कार्य के लिये श्री. रामाजी मौंदेंकर और श्री. मोतीराम हरडे इन्हे राशि(पैसा) जमा करने के लिये नियुक्त किया गया।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

प्रकरण क्रमांक:- (३१) "परमपुज्य परमात्मा एक सेवक मंडल"

                  "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



            "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                 प्रकरण क्रमांक (३१)

    "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल"


प्रकरण क्रमांक:- (३१) "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल" 


           महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने एक परमेश्वर की प्राप्ती करने के बाद से वह भगवंत के प्रती मानवों को जगाने का कार्यं निरंतर कर रहे है । उन्होने स्थापन किये हुए मानव धर्म के जो तत्व, शब्द और नियम दिये है उनका परिपूर्ण पालन करने पर अनेक सेवकों के दुख नष्ट हुए है और हर दिन हो रहे है । जैसे-जैसे इस कृपा का लाभ सेवकों को हो रहा है, वैसे-बैसे इस मागं के सेवकों की संख्या दिनोंदिन बढ रही है । 

            यह घर्म नया होने के कारण इसके तत्व, शब्द, नियम के कारण, पुरानी विचारधारा, धर्म को तिलांजली देकर नई संस्कृती निर्माण करने की प्रक्रिया चल रही है । पिंढी-दर-पिढी से चल रहे बिचार धर्म को छोंडना, यह अघिकतर लोगों को नहीं भाँता और जो लोग इस मार्ग के सेवक बनते है उन्हे भी यह पुराने रिती-रिवाज नष्ट करने होते है। इसलिये इस मार्ग में आये हुए सेवक बाबांके मार्गदर्शन से शारिरीक और मानसिक दुखो से मुवत्त हुए है फिर भी उन्हें सामाजिक कष्ट होने की संभावना थी। इसलिये सेवकों को किसी भी प्रकार का सामाजिक कष्ट न हो ऐसा बाबा को लगने लगा । 

            महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनके यहाँ भगवत कार्यं की चर्चा बैठक के दौरान वह निराकार में आये और अपने मार्गदर्शन में उन्होंने कहा की, इस मार्ग के सेवक बुश्दीहीन और श्रमिक है। संस्कृती में व्यवहारित होने से पुराने आचार-विचार के लोगों को यह सुहाता नही । और उन्हें समाज की ओंर से कष्ट होता है । इसलिये उनकी एकता और संघटना होना आवश्यक है । इसलिये बाबांने उन "सेवकों में ओंर परिवार में एकता कायम करना' ' यह नियम पालन करने के लिये दिया है । 

            संघटना सशक्त हो इस उद्देश से बाबांने फंड अनुदान शुरु कर के हर महिने में एक बार सेवकों के यहाँ और प्रत्येक शनिवार को बाबां के यहाँ भगवत् कार्यं की चर्चा बैठक प्रारंभ की। इस तरह निरंतर १ ९ ६ ६ से १९६९ तक कार्यं शुरु थे और सेवकों की संख्या में उस्तरोत्वर वृब्दि हो रही थी, इसलिये सेवकों के हितों के लिये बाबांने आध्यात्मिक कार्य के साथ-साथ सामाजिक कार्यं कीं ओर भी ध्यान दिया और सेवकों को दिन-व-दिन होनेवाली आवश्यकताएँ पुरी काने के लिये कुछ बाते निर्माण काने का निश्चय लिया। सेवकों की संघटना थी फिर भी ४ दिसंबर १९६९ को "परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल, नागपूर" इस नाम की संस्था तैयार की गयी । इस मंडल की कार्यकारिणी श्रीमान महादेवरावजी कुंभारे इनकी अध्यक्ला में स्थापन कीं गई और सही मायने में मंडल का कार्य प्रारंभ हुआ। इस मंडल का कार्यालय श्री. रामाजी भौंदेकर इनके निवासस्थान टिमकी यहाँ शुरु किया गया । इस मंडल की ओर से हर वर्ष "एक भगवान प्रकट दिन" मनाना, सेवकों की, बैठक लेकर भगवत् कार्य की चर्चा करना, इसके साथ ही सेवकों के लिये सामाजिक कार्य करना इत्यादि कार्य किये जाते हैं। सर्व प्रथम फंड अनुदान जमा कर सन १९७६ में सहकारी बैंक निर्माण की गई। तत्पश्चात हर रोज उपयोग में आनेवाली वस्तूएँ योग्य एव वाजीव भाव में सेवकों को मिले इसलिये जागनाथ बुधवारी, नागपूर यहाँ "ग्राहक भंडार" की स्थापना की गई। इस संस्था के व्दारा वे लोगों की सेवा कर रहे हैं। इसके साथ ही इस मंडल के गाँव के सेवकों को उनके कृषी व्यवसाय में पुरक व्यवसाय के रूप के रामटेक तहसील के सालईमेटा और भंडारा जिला के धोप इस गांव में दुध उत्पादक संस्था स्थापित कर वहाँ के लोगों को रोजगार दिलाया। यह सब कार्य करते हुए इस मंडल का धर्मादाय विभाग में धर्मादाय संस्था के रूप में सन १९७९ में पंजीयन किया गया। संस्था का नियमानुसार पंजीयन हुआ है और धर्मदाय आयुक्त नागपूर उनके पंजीयन पत्र क्रमांक महाराष्ट्र/२२३/७९ नागपूर, १४ अगस्त १९७९ होकर प.ट्रस्ट न. एफ २५०२
नागपूर ऐसा है।

             उपरोक्त संपूर्ण कार्य करने के पश्चात् इस संस्था की स्वयं की वास्तु हो इसलिये वाबांके मार्गदर्शनानुसार सेवकोने प्रयत्न कर "मानव-मंदिर" नाम की स्वंय की भव्य वास्तू (भवन) निर्माण की है। इस संस्था के संस्थापक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी है। और वे आद्य(प्रारंभिक) मठाधिपती है।

          इस वास्तु में नागपूर से बाहर के सेवकों के उच्च शिक्षा लेने वाले बच्चों के लिये रहने की व्यवस्था की है। इस मंडल की ओर से उच्च शिक्षा लेनेवाले बच्चो को योग्य मार्गदर्शन मिलना चाहिए इसलिये वाचनालय भी प्रारंभ किया गया है उसका लाभ अनेक गरीब छात्रो को मिल रहा है। जिससे उनका शैक्षणिक दर्जा बढ़ रहा है। इस वाचनालय धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक, रोजगार समाचार इत्यादी आवश्यक विषयों से संबंधित पुस्तके एवं दैनिक मासिक पत्रिकाएँ रखी गई है। और अनेक सेवक इसका लाभ ले रहे हैं।

           इसा मंडल की ओर से क्रिडामंडल की स्थापना की गई है और क्रिडांगण (खेल मैदान) भी तैयार किया गया है। अनेक सेवक इसका लाभ ले रहे है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।


🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

Sunday, May 24, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (३०) "मठाधिपती"

               "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



              "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                 प्रकरण क्रमांक (३०)

                      "मठाधिपती"


प्रकरण क्रमांक:- (३०) "मठाधिपती"


         भारत देश में बहुध्मी लोग रहते है। इस देश का इतिहास देखने से यह पता चलता है की इस देश में अनेक भक्तिपंथ अथवा मार्ग का उगम हुआ है तथा उस मार्ग के मठ निर्माण कर के उसके मठाधिपती मनोनीत किये गये है। उसका कारण यह है की। भारतीय संस्कृति का उगमस्थान भक्ती का हो या मार्ग का हो उसे अनन्य साधारण महत्व इस समाजमें है तथा उसके संस्थापक और प्रचारक इन्हें उस संस्था के अथवा मठ  के स्वाधिकार प्राप्त होते हैं।

            महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने अपने निवासस्थान पर एक भगवत की प्राप्ती कर मानव धर्म स्थापित किया। इस मार्ग का उगमस्थान उनका स्वयं का निवासस्थान है और वह १९४८ से निरंतर मानव जागृती का प्रचार कर मानव को जगाने का कार्य निष्काम भावना से कर रहे हैं। और इसी उद्देश से"मानव-मंदिर" इस भवन की निर्मिती हुई। इसलिये उन्हें इस नवनिर्मित "मानव-मंदिर" इस भवन का मठाधिपती घोषित करना यह प्रमुखता है। उसी तरह मठाधिपती इस अधिकार से उनका उत्तराधिकारी मनोनीत करने का संपूर्ण अधिकार भी उन्हे बहाल किये जाते है। ऐसा ३१ जनवरी १९८८ को हुई मंडल के कार्यकारिणी एवं कार्यकर्ताओं की बैठक में निश्चित किया गया। तदनुसार कार्यकारिणीने बाबा के "मठाधिपती" का पद विभूति करने की बिनती की गयी तथा बाबाने यह बिनती मान्य की।

      तद्नुसार परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, नागपूर के दिनांक २७ मार्च १९८८ की आमसभा में मानव को सुयोग्य मार्ग दिखाकर निष्काम भावना से मानव जागृती का कार्य करनेवाले, सब सेवकों के मार्गदर्शन व प्रणेता(प्रेरणास्त्रोत), मानवधर्म के सस्थापक महानत्यागी बाबा जुमदेवजी इनको "मठाधिपती" घोषित किया गया तथा उन्हें मठाधिपती के समस्त अधिकार बहाल किये गये उसी तरह मठाघिपती इस दायित्व से उनके व्दारा लिये गये सभी निर्णय मंडल एवं समस्त सेवक इन्हे बंधनकारक रहेगा। ऐसा एकमत से (एकतापूर्वक)निश्चित किया गया। इस तरह महानत्यागी बाबा जुमदेवजी यह परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडल के संस्थापक है एवं मानव-मंदिर के मठाधिपती है।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

परमात्मा एक मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.

  "परमात्मा एक" मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.         !! भगवान बाबा हनुमानजी को प्रणाम !!       !! महानत्याग...