Tuesday, June 2, 2020

प्रकरण क्रमांक:- (४२) "उपदेश"

                  "मानवधर्म परिचय"


"मानवधर्म परिचय पुस्तक" (  हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती



                "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

                      प्रकरण क्रमांक (४२)

                            "उपदेश"


प्रकरण क्रमांक:- (४२) "उपदेश"


          महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने परमेश्वर प्राप्ती के बाद भगवंत के आदेशानुसार नये "मानव धर्म" की शुरूवात की। इस धर्म का प्रमुख उद्देश यही है की, प्रत्येक नर-- नारी में भगवंत का निवास है। वह आत्मा है और आत्मा यह २४ घंटे चैतन्य है। क्योंकी उसमें दैवी शक्ती जागृत है। मानव को संबोधित करते हुए बाबा कहते है की, सजिवों में भगवान है। नि्जीव वस्तुओं में नहीं है। इसलिये वे मानव को जीवन में निर्जीद मूर्ती की पूजा बंद करने को कहते है। क्योंकी मानव ने अनेक देवता को मानने से उसका मानसिक परिणाम नर-नारी इन दोनों पर भी होता है। इसका दुष्परिणाम उसके परिवार पर होता है। इन बातों का लाभ ज्योतिषी, तांत्रिक-मांत्रिक लोग अधिक मात्रा में उठाते है।

         परमेश्वर ने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी की ओर से वचन लिया और बाबाने वह भगवंत को दिया,"जीवन में परमेश्वरी सेवा में सच्चाई से निष्काम सेवा करुंगा।" तदनुसार पिछले ४६ वर्षो से निष्काम भावना से मानव जागृती करते है। बाबा एक गृहरस्थी होकर भी त्यागी है। वह गुरुपुजा (गुरुदक्षिणा) नही लेते। तथा किसी भी प्रकार की दक्षिणा या दान नहीं लेते। उनका उद्देश एक ही है। भगवान नर-नारी में विराजमान है। इसलिये बाबा इमान(सच्याई) सामने रखकर निष्काम भावना से नर नारी को मार्गदर्शन करते है और उनके जीवन का दुख दूर होता है। नर-नारी स्वयं भगवंत को विनंती करके अपने दु ख दूर करते है। बाबा उसमें हस्तक्षेप नहीं करते।

       बाबा के मार्गदर्शन से इस धर्म में प्रवेश किये लोग स्वयं हवन करते हैं। विद्वानों के लिखे अनुसार,"अपना छुटकारा स्वयं करे।" इस कथनानुसार वे व्यवहार करते हैं। स्वयं का छुटकारा स्वयं करते हैं और उनके यहाँ आनेवाले दुःखी लोगों को मार्गदर्शन कर उनके भी दुःख दूर करते हैं। साप का जहर उतारते है। इस धर्म की स्त्री हो या पुरुष, उसका आत्मशक्तीबल उसकी सद्भावना के कारण बढ़ा है। यह प्रचिती इस धर्म के प्रत्येक सेवकों को है। आत्मानुभव यही सत्य आत्मप्रचिती है। और यही सत्य आत्मज्ञान है। यह इस धर्म में प्रमाणित(सिध्द) हुआ है इस देश में प्रत्येक धर्म में लोग अघकारमय जीवन कैसे जियेंगे। उसका लाभ अपने धर्म को कैसे मिलेगा यह उसके पिछे उद्देश होगा ऐसा बाबा समझते है। इसलिये यह दैवी शक्ती इस धर्म में सत्य जागृत हुई है। इस देवी शक्तीने चार तत्व, तीन शब्द, पांच नियम इन बंधनों के कारण मानव को बुरे विचारों से मुक्त किया और दृष्ट विचारों का नाश किया। आज देश को इन नियमों की अत्यंत आवश्यकता है। इस धर्म का प्रमुख उद्देश त्याग है। ऐसा त्याग किसी भी धर्म में नहीं है। आज बाबांके नजरों में आता है की, इस देश में लोकतंत्र आया है। तथा जो जिम्मेदार लोग है। वे मतिभ्रष्ट(बुध्दिभ्रष्ट) हुए है। इस देश के गरीब लोगों का जीवन नष्ट करने में लगे हैं। इस देश में सच्चा लोकतंत्र नही है। इस देश की सत्ता पूँजीपती लोगों के हाथ में है। ऐसा कहना गलत नही होगा। हम हर रोज व्यवहार में जो-जो देखते है वह सभी देवी शक्ती के विरूषद कार्य है। दैनिक जीवन बिताना कठीन हुआ है। परिस्थिती बिधड रही है। इसलिये इस देशवासियों को बाबां का आवाहन है की, वे जागृत हो और सत्ययुग निर्माण करें।

नमस्कार..!

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

टिप:- ये पोस्ट कोई भी कॉपी न करे, बल्कि ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।



🔸 ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।



सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )

परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर


🌐 हमें सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।

सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w

सोशल मीडिया लिंक:-https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/

1 comment:

  1. 🙏जी दादा सत्य विचार धन्यवाद

    ReplyDelete

परमात्मा एक मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.

  "परमात्मा एक" मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.         !! भगवान बाबा हनुमानजी को प्रणाम !!       !! महानत्याग...