"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
"भगवत प्राप्ती का मार्ग मिला"
"मानवधर्म परिचय पुस्तक"
प्रकरण क्रमांक:- (२) "भगवत प्राप्ति का मार्ग मिला"
सन १९३३ में पुरानी जगह रहते समय मोहल्ले में पडोसियों से हमेशा झगडा होता था। इसलिए ठुब्रीकर घराना वहाँ उब गया था । इसलिए उन्होने दूसरी ओर मकान खरीदने की सोची। रंभाजी रोड, टिमकी में रामेश्वर तेलघाणी के पीछे वाला झुनके सावकार का मकान बिकाऊ था। वह मकान ठुब्रीकर बंधुओं ने लेने का निश्चित किया और मकान मालिक से सौदा किया। इससे पहले उस मकान के बारे में ऐसी हकीकत थी की वह मकान शैतानी है। उस मकान में भूतबाधाएँ हैं। एक मुसलमानने उस घर में पांव रखते ही वह मर गया। इसलिए वह मकान न खरीदे ऐसा बताकर उस मोहल्ले के लोगोंने उन्हें मकान लेने से विन्मुख करने का प्रयत्न किया। बाबा का घराणा हिन्दू संस्कृतिनुसार गुरुमार्गी था। उनके गुरु श्री. यादवराव महाराज, धापेवाडा वाले थे बाबा के बुजुर्गो ने विचार किया कि हमने होम हवन, पुजा पाठ करने पर वह भुतबाधाएँ नष्ट होगी । और हम सुख से रह सकेंगे। ऐसा पक्का विचार कर उन्होने वह मकान खरीदा इस समय बाबा बारह साल के थे। फिलहाल बाबा जिस घर में रहते है यही वह मकान है।
निश्चित किये अनुसार उस मकान में गृहप्रवेश के पूर्व उन्होने मकान की शांति करने हेतु गुरु मंत्रोसे होम हवन, पुजा पाठ किया और खुशी से उस मकान में रहने आये । आसमान से गिरे और खजुर में अटके इस कहावत के अनुसार इस मकान में रहने को आने के बाद किसी को भी सुख-शांति नही मिलती थी। वे सालभर भी सुखी नही रह सके। घर के लोगों को सतत् स्वप्नविकार होता था। खाना खाते समय सिढीयों की आवाज सुनाई देती। सिढीयों पर कोई निरंतर चल रहा है ऐसा आभास होता था। घर के सामने रातभर कुत्तो का भौंकना जैसे भुतबाधाओं के प्रकार चालु थे। उनके घर में पैदा हुए बच्चे भी बाहर खेलते समय कुत्तो समान भौंक कर मर जाते।
इस तरह संपूर्ण परिवार दुःखी था। बाबाकें पिता श्री. विठोबाजी इन्होने बहुत इलाज किया। मांत्रिक, तांत्रिक लोगों से इलाज कराया। शरीर में देवी- देवता प्रवेश करने वाले लोगों से इलाज कराया। कई मनौतियाँ की, विभिन्न तरह के इलाज करके भी परिवार में समाधान व शांति नही मिलती थी। हजारों रुपये खर्च हुए थे। भूत बाधाओं के कारण कई प्राण गरवाँ चुके थे। इस कारण संपूर्ण परिवार त्रस्त हुआ था। परिवार में शांतता नही थी। बाबा जुमदेवजी हनुमानजी की सेवा करते रहते थे। इसलिए उन्हें हनुमान चालिसा कंठस्थ था। इसमें ऐसा निर्दिष्ट है की जहाँ हनुमान चालिसा पढा जाता वहाँ भूत नहीं रह सकते। तब भूतबाधाओं का विनाश होने हेतु बाबा रोजाना दो-तीन बार हनुमान चालिसा पढते थे। फिर भी घर में सुख-समाधान नही था। छोटे बच्चे हमेशा बीमार होते और उन्हें कुछ न कुछ दिखाई देता। इन्ही भूतबाधाओं के कारण उनके घरमें उनके रिश्तेदार आने की हिम्मत नही करते थे। यह भूतबाधाओं का खेल लगातार बारह साल चालू था।
१९४५ साल के नवम्बर माह की घटना, बाबा का रोजाना दो-तीन बार हनुमान चालिसा पढना शुरु था। उसी के साथ हनुमानजी को बिनती करते थे की बाबा हनुमानजी आप कुछ तो भी योग दो और यह दुःख दूर करो।
एक दिन बाबा के अनुज (छोटे भाई) मारोतराव घर में अकेले सो रहे थे। रसोईघर में कोई नही था और बाबा बरामदे में बैठे थे। बाबा बरामदे से जब रसोईघर में गये तब मारोतराव उठकर बैठे थे। तब बाबाने मारोतरावजी को पुछा कि तू क्यों बैठा है? तब मारोतरावजी ने पुछा की मेरे पांव को किसने हिलाया? और मुझे किसने जगाया? तब बाबाने फिर से उनसे कहा की मैं तो अभी घर में आया और अंदर तो कोई भी नही है। फिर तेरे पांव किसने हिलाये थे मुझे मालूम नही। इतना कहकर बाबा आश्चर्यचकित हुए तत्पश्चात उन्होने इसका पता लगाने के लिए मांत्रिक के पास जाने का विचार किया।
बाबा मांत्रिके के यहाँ जाने की तैयारी में ही थे, की तभी बाबा हनुमानजी को बिनती किये अनुसार उन्हें योग प्राप्त हुआ और उनके यहाँ कभी न आने वाला एक साधारण व्यक्ती उनके घर आया। उसने बाबा को पुछा की, तु कहाँ जा रहा है? तब बाबाने उपरोक्त घटित प्रकरण उस व्यक्ती के पास कथन किया। उन्होने उसे कहाँ, मैं मांत्रिक के यहाँ जा रहा हूँ। यह सुनकर उस व्यक्ती को दया आयी। उसने बाबा से कहाँ तुम क्यों जाते हो? मेरे पास परमेश्वरी कृपा प्राप्त करने का एक मंत्र है। वह एक सन्यासीने दिया हुआ मंत्र है। उनका विधी करने से परमेश्वरी कृपा संपादित कर सकते है एवं सभी दुःखों का विनाश होता है। यदि उस मंत्र से मैं किसी को भी तीर्थ (मंत्रोच्चारित जल) बनाकर देता हूँ तो उसके दुःख दूर होकर वह अच्छा होता है। ऐसे मुझे कई अनुभव आये है। तब बाबाने उस व्यक्ती से पुछा की यह संन्यासी का मंत्र आपके पास कैसे आया? क्योंकि आप तो संन्यासी नही लगते। तब उसने जवाब दिया की, मेरे पिता एक संन्यासी के साथ रहते थे। उस संन्यासी के मृत्युपरान्त मेरे पिता उसके पास के सारे ग्रंथ घर ले आये। पिताजीने हनुमानजी के इस मंत्र के व्दारा अनेकों के दुःख दूर किये। यह करते हुए वे दोनो आँख से अंधे हो गये। मैंने स्वयं इस मंत्र का विधी कभी नहीं किया। जिस किसने भी यह विधी किया और करने का प्रयत्न किया उनमें से कुछ विधी करते हुए मर गये, तो कुछ पागल हुए। तत्पश्यात बाबा सोचने लगे और उन्होने मांत्रिक के यहाँ जाना। निरस्त किया। कुछ देर रुककर वह मंत्र और उसका पता बाबाने उस व्यक्ती से लिखा लिया। वह व्यक्ती मौदा इस गाँव का रहनेवाला था। उस मंत्र से तीर्थ तैयार कर के मारोतराव को पीने के लिये दिया। तीर्थ पीने के बाद मारोतराव को समाधान मिला। इस कारण बाबा के मन में विचार आया की वे स्वयं या उनके परिवार के किसी व्यक्तीने इस मंत्र का विधी पुरा करना चाहिए और परिवार को हो रहे दःखो से मुक्त कराये। इस तरह बाबा को भगवत् प्राप्ति का मार्ग मिला। उस समय बाबा युवावस्था में अर्थात मात्र चौबास
वर्ष के थे।
नमस्कार..!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।
नमस्कार..!
टिप:- ये पोस्ट कोई भी काॅपी न करें, बल्की ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।
🔶 उपर लिखीत पोस्ट "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
सौजन्य:- सेवक एकता परिवार ( फेसबुक पेज )
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर नागपूर
🌐 हमें सभी सोशल मीडिया पर अवश्य मिले।🌐
सेवक एकता परिवार ( Facebook Page )
https://www.facebook.com/SevakEktaParivar/
©️सेवक एकता परिवार ( Blogspot )
https://sevakektaparivar.blogspot.com/?m=1
©️सेवक एकता परिवार (YouTube Channel )
https://www.youtube.com/channel/UCsZFWZwLJ3AzH1FWhYNmu8w
No comments:
Post a Comment