Thursday, April 23, 2020

प्रकरण क्रमांक: (१) "जन्म व जीवन"

               "मानवधर्म परिचय पुस्तक"

"मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर


               
                          प्रकरण क्रमांक (१)

                         "जन्म व जीवन"


प्रकरण क्रमांक:- (१) "जन्म व जीवन"


            नागपूर शहर महाराष्ट्र राज्य की उपराजधानी है और भारत देश के सीमानुसार मध्यभाग में बसा हुआ शहर है। यह एक ऐतिहासिक शहर है। इस शहर में गोलीबार चौक नामक पिछडा समझनेवाला प्रसिध्द इलाका है। ब्रिटीश शासन के दौरान भारत देश को आजाद करने हेतु कई भारतियोंने अनेक प्रकारके सत्याग्रह किये। उन्हींमें से एक झंडा सत्याग्रह सन १९२१ में किया गया था। उसका एक हिस्सा समझ इस क्षेत्र में सत्याग्रह हुआ। उनमें नागपुर वासियोंने लिया था। इस सत्याग्रह में लोगों ने अग्रेंजो के खिलाफ उन्हे यह देश छोडकर जाने का नारा दिया गया था तब अंग्रेजो ने इन सत्याग्रहियों को तितर-बितर करने के लिए उनपर बंदुक से गोलीयाँ चलाई थी। इन शुरोंने वह गोलीयाँ अपने सीने पर झेल कर देश के लिए आत्म बलिदान किया और वे शहीद हुए तब से इस क्षेत्र (भाग) को गोलीबार चौक के नाम से जानने लगे, आज भी इस चौक में इन शहीदों की स्मृती में शहीद स्तम्भ बनाया गया है।

           यह गोलीबार चौक भविष्य में मुहल्ले में प्रचलित हुआ। इस मुहल्ले में हिंदु संस्कृति के हलबा इस आदिवासी जनजाति के लोग बडी संख्या में रहते है। इस चौक के बाजु में आदिवासी हलबा जमात के ठुब्रीकर खानदान के सगे भाई रहते थे उनके नाम थे - तानबा, महादेव, विठोबा एवं बालाजी। उनका मुल व्यवसाय बुनकरी (साडीयों बुनना) था। चारों भाई संयुक्त परिवार पध्दतिनुसार एक साथ रहते थे घरके हालात अति गरीबी के थे। रोज बुनाई कर शाम को मजदूरी मिलने पर घर गृहस्थी चलाते थे।

          ऐसे अती गरीबी हालात परिवार में दिनांक ३ अप्रैल १९२१ को श्रीमान विठोबाजी राखडु ठुब्रीकर तथा सरस्वतीबाई इस दंपत्ती के यहाँ महानत्यागी बाबा जुमदेवजी का जन्म हुआ। इस दंपत्ती के बाबा यह चौथी संतान है। बाबा के तीन बडे भाई - बाळकृष्ण, नारायण एवं जागोबाजी तथा एक भाई मारोती सबसे छोटे थे। ऐसी पांच संतान इस दंपत्ती को थी। बाबा के बचपन का नाम जुम्मन था।

           घर की स्थिती अत्यंत गरीबी की थी और संयुक्त परिवार के कारण बाबा की शिक्षा मराठी चौथी कक्षा तक हुई। खर्च अधिक और आमदनी कम होने से बाबाने आगे की पढाई बीच में ही छोड़ घर के हालात में मदद करने का निश्चय कर उन्होंने उम्र के सिर्फ बारहवे साल में पारिवारिक बुनकरी के व्यवसाय की शुरूआत की।

         बचपन से ही बाबा का उमदा स्वभाव था। चेहरे पर तेज था, गठा हुआ शरीर था। बचपन से ही उनमें चुस्तीस्फुर्ती थी। वे बचपन से ही नितिमत्तात्मक व्यवहार करते। वे दयालु स्वभाव के थे। तथा उनका बचपन से ही परमेश्वर पर अप्रतीम विश्वास था।उन्हें बचपन में हनुमान चालीसा पढ़ने का शौक था वे रोज शाम को हनुमान चालिसा पढते रहते। प्रायमरी स्कुल में पढते समय स्कुल से लौटने के पश्चात रसोई घर का दरवाजा बंद रहने से वे दरवाजे की दरार से अंदर झाँकते रहते, तब उन्हें उस कमरें में भूरे रंग का व्यक्ती दिखाई देता तथापि उस व्यव्ती को विशाल एकही आँख होने बाबत उन्हें हरदम दिखाई देता था।

           पुराने जमाने में देह यष्टी (शरीर सौंष्ठन) को बड़ा महत्व था। इसलिये जगह-जगह अखाडे बनाये गये थे। इन अखाडों में छोटे बड़े लड़के व्यायाम हैतु जाते रहते। इस प्रकार बाबा को भी अपने बालपण में अखाडों में जाने का शौक लगा और देखते ही देखते वे उस परिसर में पहलवान के नाम से प्रसिध्द हुए। उन्हें कुश्ती खेलने का भी शौक था।

            बाबा का विवाह उनकी उम्र के सतरवे साल यानि सन १९३८ में मई महिने में नागपूर जिल्हा के खापा गांव के प्रतिष्ठीत निवासी श्रीमान बापुजी बुरडे इनकी सुकन्या और तडफदार व अप्रगण्य बुनकर नेता श्री सोमाजी बुरडे इनकी बहन वाराणसीबाई उनके साथ संपन्न हुआ।

         बाबाने विवाहोपरान्त उम्र के उन्नीसवे साल बुनकरी का व्यवसाय छोड़ दिया और वे सेढ केसरीमल के यहाँ वहीखाता लिखने का काम मासिक तीस रुपये वेतन पर करने लगे। दुकान मालिक मारवाडी समाज के थे। सेठ केसरीलाल की मृत्यू के बाद उनका लडका मदनसेठ पुगलिया उनका मामा सेठ सरदारमल की देखभाल में दुकान का
कारोबार संभालने लगे। बाबाने वहाँ पाँच-छ: साल नौकरी की। बाबा जहाँ नौकरी करते है वह सोने चांदी की दुकाना थी।

             एक दिन बाबा को दुकान साफ करते समय दस तोले का सोने का हार दुकान की आलमारी (कपाट) में रखा हुआ दिखा वह हार खुला देखकर बाबाकों धक्का लगा। बाबाने वह हार सेठ सरदारमल के घर पहुँचा दिया। उन्होने डागाजी को बुलाया, वह उनका भाँजा था। उन्होंने डागाजी को हार के बारे में पुछताछ की और उसे एक जोरदार थप्पड लगाया। उन्होने उससे कहाँ की यह (बाबा) इमानदार है इसलिये हार लाकर दिया, अन्यथा यह हार चोरी हुआ होता अथवा गुम हो गया होता, तब इसका कौन जिम्मेदार रहता? इससे बाबा के सत्य और इमानदारी यह गुण दिखाई दिये। तब से इस घर के लोग बाबा की ओर इमानदार समझकर देखने लगे। मदनसेठ का छोठा भाई अनाप-शनाप पैसा खर्च करता है यह बाबा को मालुम था। इसलिए बाबाने स्वयं विचार किया की यद्यपी आज इमानदार कहते है, लेकीन कल भी यही स्थिती होगी यह कैसे कह सकते है? नौकर आदमी इमानदार होकर भी कल प्रसंगवश यही लोग भाँजे का पक्ष लेकर उसे बदनाम कर सकते है। ऐसे विचार मन में आते ही केवल सत्य को संजोए रखने के लिए बाबा के मन में उन विचारों ने जोर पकडा और उन्होने वह नौकरी छोड दी तथा पूर्ववत् वे साडीया बुनने का व्यवसाय करने लगे।

            बाबा दिनमें एक नौ वार रेशम की साड़ी बुनते थे। वह साडी इतनी अच्छी होती थी दुकानदार लोग माल बेचने के लिए ग्राहकों को दिखाने हेतु उसे उपर रखते थे लेकीन। हातमाग के व्यवसाय को मिलों के कारण मंदी आने लगी। बाबा के बड़े साले श्री. सोमाजी बुरडे विदर्भ बुनकर कैद्रिय सोसायटी, नागपूर के अध्यक्ष थे। इसलिए उन्होने बाबा को सुपरवाइजर की नौकरी दिलायी। बाबा की कामों के प्रति चतुराई और महत्ता देखकर उन्हें सोसायटी की ओर से गडडी गोदाम, नागपुर में पैरो से चलाये जाने वाली चादर बनाने की मशीन की ट्रेनिंग हेतु भेजा गया। बाबाने वहाँ ट्रेनिंग पुर्ण की। पिली मारबत (एक मोहल्ला) के पास सोसायटी का एक कारखाना था। उस कारखाने में बाबा काम करने लगे। बाबा इतने होशियार थे की अकेले स्वयं किसीकी मदत न लेते, संपूर्ण मशीन खोलकर उसके अलग-अलग पार्टस् कर फिर से पूर्ववत स्थितीमें उसकी फि्टींग करते थे। इसी दौरान बाबा ने दैवी शक्ती भी प्राप्त की थी।

          एक दिन इसी कारखाने में काम करनेवाले वासुदेव नंदनवार नामक बाबा के पडोस में रहनेवाले एवं बाबा के मित्र रहे गृहस्थ को काम करते समय सतत जुलाब और उलटीयाँ होने लगी। तब अपने मित्र की हो रही दुर्दशा बाबा से देखी नही गयी। इसलिये उन्होंने उसे पास बुलाकर एक गिलास में पानी लेकर उसे ग्यारह बार फुंक मार कर तीर्थ दिया जिस कारण उसे होने वाली तकलीफ यकायक बंद हुई। तब से बाबा के पास कोई शक्ती है यह लोगों को मालुम हुआ। बाद में बाबानें उस कारखाने की नौकरी छोड़ दी और वे महानगरपालिका में ठेकेदार की हैसियत से काम करने लगे।

             यह घटना १९७६ की है नागपुर के दिघोरी क्षेत्र में महानगरपालिका की ओर से नहर खोदने का कार्य (ठेका) बाबा को मिला था। वह काम करते समय उन्हें बहुत परेशानी हुई। उन्हे उस जगह भी बेईमानी दिखने लगी। इसलिये बाबा का मन उस बेईमानी से उबने लगा। उनके स्वाभिमानी स्वभाव को वह नहीं भाता था। इसी दौरान बाबा के सुपुत्र डॉ. मनो ठुब्रीकर इन्हे व्हर्जिनिया मेडीकल सेंटर, व्हर्जिनीया (अमेरिका) यहाँ नोकरी लगी थी। उन्हे प्रथम वेतन मिलनेपर उन्होने बाबा से कहाँ की अब आप काम बंद कर परमेश्वर के मानव जागृती के कार्य करे। बाबानें सोच विचार कर और वर्तमान में घटित बेईमानी के व्यवहार से उब कर उन्होने ठेकेदारी का धंदा बंद किया। तत्पश्चात उन्होंने आध्यत्मिक कार्यों के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पण किया।

            बाबा जब काम करते थे तब वे मित्रों के साथ रहकर भी खुद का और उनका खर्च स्वयं ही करते थे वे किसी को भी खर्च नहीं करने देते। बाबा सन १९७६ से भगवत् कार्यों के लिए खुद के पैसों से गांव देहात में धुप, बारिश की पर्वा न करते, पैदल, सायकिल, बैलगाडी, बस जो भी मिलेगा उस साधन से यात्रा कर मानव जागृती के कार्य निष्काम भावना से निरंतर कर रहे है। लोगों के विभिन्न प्रकार के दुःख, कष्टों का
नि्वारण कर रहे है। वे गुरुदक्षिणा नही लेते। आत्मा का अनादर न हो इसलिए किसी को अपने पैर पड़ने नही देते।

             आध्यात्मिक कार्य के व्दारा अत्यंत गरीब, श्रमिक लोगों को सुख, समाधान दिलाने के बाद उन्हे जीवन चलाने के लिए उनकी गृहस्थी उच्च स्तर पर लाने के लिए उन्होने अपना सारा ध्यान सामाजिक कार्यों की ओर मोडकर सहकारी स्तरपर बैंक बहुउ्देशिय ग्राहक भंडार, दुग्ध डेअरी, मानव मंदिर आदि की स्व- श्रमो से निर्मिती की यह सब करने पर भी उन्होने खुद की गृहस्थी के लिए कभी भी इन संस्थाओं का लाभ नहीं
लिया। उन्होने आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए हमेशा त्याग किया है। इस कारण उन्होने अपने समान अनेक शिष्य तैयार किये है और अपने समान बनाने में कोई समयसीमा नही होती ऐसी कहावत को सिध्द किया है। इसलिये उनके शिष्यों ने उन्हें "महानत्यागी" उपाधी से सुशोभित किया है।

           बाबाने गृहस्थी सम्भालते हुए परमार्थ साध्य किये। बाबा आज भी उम्र में इकहत्तर वर्ष के होते हुये भी मानव जागृती के कार्य के लिए निरंतर दौरा कर रहे है। बाबा आज अपना जीवन ऐश्वर्यपूर्ण बिता रहे है। "देगा वही पायेगा" इस कहावत के अनुसार प्रारंभ में बाबाने कडी मेहनत की जिससे अच्छे फल भगवान उन्हे दे रहे है।


लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में  "भगवान बाबा हनुमानजी"और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" से क्षमा मांगता हूं।

नमस्कार..!

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🔶 उपर लिखीत पोस्ट "मानवधर्म परिचय" पुस्तक ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।

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3 comments:

  1. नमस्कार दादा 🙏🙏🙏
    दादा एक विनंती आहे तुम्हाला,please मानवधर्म परीचायव्ही(हिंदी) चे प्रकरण 1 ते 5 upload करा please.🙏💐💐🙏

    ReplyDelete

परमात्मा एक मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.

  "परमात्मा एक" मानवधर्मात सेवकांनी दसरा सण कशाप्रकारे साजरा करावा.         !! भगवान बाबा हनुमानजी को प्रणाम !!       !! महानत्याग...