महानत्यागी बाबा जुमदेवजींच्या निष्काम व निस्वार्थ कार्याची माहिती सर्व सेवकांना व नागरिकांना देण्यास प्रयत्नशील आहोत. परमात्मा एक मानवर्धमाचा प्रचार, प्रसार हाच एकमेव उद्देश.परमात्मा एक मानवधर्माशी संबंधित मानवधर्म परिचय, फोटो, व्हिडिओ, बातम्या, कार्यक्रम व माहिती नमस्कार..! ★आपल्या या Blog ला Follow नक्की करा.★
Thursday, December 31, 2020
नुतनवर्षाभिनंदन" "विशेष लेख" हा लेख नक्की वाचा व आवडल्यास इतर सेवकांपर्यंत शेअर करा.
. "नुतनवर्षाभिनंदन"
1 जानेवारी रोजी साजरा करण्यात येणारा नवीन वर्ष जगभरात उत्साहाने साजरा केला जातो. या दिवशी सर्व वर्गातील लोक त्यांच्या पद्धतीने साजरे करतात. नवीन वर्षाबद्दल खासकरुन तरुणांमध्ये खूप उत्साह असतो. त्याचबरोबर नवीन वर्षाला वेगवेगळ्या ठिकाणी कार्यक्रम आणि पार्टी इत्यादींचे आयोजनही केले जाते.
त्याच वेळी, बरेच लोक नवीन वर्ष नवीन काम सुरू करतात, त्यानंतर बरेच लोक येत्या वर्षात आपली उद्दीष्टे ठरवतात आणि पूर्वीपेक्षा स्वत: ला चांगले बनवण्याचा संकल्प करतात, तर काही लोक त्यांच्यातील वाईट गोष्टी दूर करण्याचा संकल्प करतात. नवीन वर्षाचा अर्थ प्रत्येकासाठी भिन्न आहेत.
प्रत्येकजण नवीन वर्षाची आतुरतेने वाट पाहत असतोच. नवीन वर्षात सर्वांना आशा आहे की येत्या वर्षात बरेच आनंद, उत्साह आणि उत्साह मिळेल. त्याच बरोबर, नवीन वर्ष अधिक खास करण्यासाठी, लोक आपल्या जवळच्या व्यक्ती, मित्र, नातेवाईक आणि शुभेच्छुकांना नवीन वर्षाच्या शुभेच्छा देतात आणि त्यांना सुखी आयुष्यासाठी शुभेच्छा देतात.
त्याचप्रमाणे आपल्या मानवधर्मातील सेवक नवीन वर्ष साजरा सेवक सम्मेलनाचा माध्यमातून करतात. प्रत्येक वर्षी परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर च्या अंतर्गत व हिंगणघाट शाखेच्या वतीने सर्व सेवकांचा सहकार्याने १ जानेवारी ला हिंगणघाट येथे मानवधर्माचे भव्य सेवक सम्मेलनाचे आयोजन केले जातात. या सेवक संमेलनात हजारोंच्या संख्येने सेवक- सैविका शहरातून, गावातून सहभागी होऊन भगवत कार्याचा लाभ घेतात. मानवधर्माचा सेवकांकरिता नववर्ष सेवक सम्मेलन भगवत कार्यात उत्साहाने साजरा करतात. काही सेवक नववर्षाच्या निमित्ताने आपल्या घरी हवनकार्य घडवितात. तर काही सेवक परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मानवधर्म आश्रम येथे भेट देऊन नववर्षाची सुरुवात करतात. नवीन स्वप्न, नविन अपेक्षा, नवा ध्येय भगवंता समोर ठेवून आपल्या विनंत्या करून आपले नववर्ष सुख-शांती समृद्धी व आनंदाचे जावो. अशी परमेश्वराला विनंती करून आपले कर्म करतात.
२०२१ येणारा नववर्ष सुख-शांती, समृद्धी व आनंदाचे जावो हीच परमेश्वराला विनंती आहे. आणि मागील वर्षी एकही कार्यक्रम पार पडले नाही. त्यामुळे आम्हा सेवकात निराशा व्यक्त झाली. येणार्या नववर्षात सर्व कार्यक्रम, सेवक सम्मेलन, चर्चा बैठक पून्हा सुरू व्हाव्यात अशी परमेश्वराला विनंती आहे. आपला आनंद उत्साह हा सेवक सम्मेलनातून चर्चा बैठकीतुन होत असतो. याची सर्व सेवकांना जानीव आहे. येणारा वर्षांचा पहिला कार्यक्रम २६ जानेवारी प्रजासत्ताक दिनी भव्य सेवक मेळावा मानवधर्म आश्रम मौदा येथे दर वर्षी उत्साहाने साजरा करण्यात येतो. लाखोंच्या संख्येने सेवक- सेविका उपस्थित राहुन भगवत कार्याचा लाभ घेतात. वनभोजन करून सेवकांसोबत भेटीगाठी होतात. त्यातच आमचा आनंद उत्साह आहे. सेवक सम्मेलन चर्चा बैठक यातच आम्हा सेवकांना सेवक शुभेच्छा देतात. या नववर्षात सर्व कार्यक्रम सुरू व्हावे अशी परमेश्वराला विनंती आहे. सर्व सेवक-सेविकांचे नववर्ष सुख-शांती समृद्धी व आनंदाचे जावो हीच परमेश्वराला विनंती आहे. नववर्षाच्या सर्व सेवक-सेविकांना हार्दिक शुभेच्छा...
येवो समृद्धि तुमच्या अंगणी,
नमस्कार...!
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Sunday, December 27, 2020
"परमेश्वरी कृपाप्राप्ती" का "साक्षात्कार एंव प्रचिती" सभी सेवक-सेविका अवश्य पढे।
"परमेश्वरी कृपाप्राप्ती" का "साक्षात्कार एंव प्रचिती"
सभी सेवक-सेविका अवश्य पढे। और अपने परिचित सेवकों में शेअर करें।
. "परमेश्वरी कृपाप्राप्ती"
"साक्षात्कार एवं प्रचिती"
त्रिताल हवन के पहले ही दिन जब दुसरा हवन कार्य चालु था निश्चित किये अनुसार बाबाके अनुज मारोतराव सोये थे। वह गहरी नींद में सोये हुये ही जोर-जोरसे चिल्ला रहे थे लंगोटी वाले बाबा की जय। यह शब्द जब बाबाके कानों पर पडे तब बाबाने एक कागजपर लिखकर घर के लोगों को उन्हे पुछताछ करने को कहा की ऐसा तू क्यों चिल्लाया? तब बाबा के बड़े भाई श्री. जागोबाजी ने उन्हें नींद से जगाया और वे उठ बैठने पर उनसे पुछा की तुने लंगोटीवाले बाबा की जय ऐसा क्यों कहा ? तब उन्होने सभी को बताया की, बाबा हनुमानजी सिरपर चांदी का ताज (मुकुट) पहने, दाहिने हाथ में चांदी की गदा लेकर घर के चारों ओर घुम रहे है। ऐसा दृश्य सपने में देखा। बाद में उन्होने बाबा को यह हकीकत बतायी दूसरा हवन समाप्त होने पर बाबाने विचार किया की परमेश्वर अब हमारी सुरक्षा करने हेतु तत्पर है।
इस त्रिताल हवन में श्री. जागोबाजी जगह की साफ सफाई करना। रंगोली रचना इत्यादि काम करते थे। तो हम सबकी आई (माता) सौ. वाराणसीबाई प्रसाद तैयार करती थी, इस प्रकार सात दिन त्रिताल हवन कर सातवे दिन सभीने भोजन करके उत्सव मनाया और बाबाने परमेश्वर की कृपा प्राप्त की।
इस परमेश्वरी कृपा का लाभ वे अन्य लोगो को भी कर देते थे। उनके यहाँ जो कोई दुःखी, परेशान लोग आते थे उनके दुःख मंत्र से तीर्थ बनाकर तथा मंत्रोच्चार से फुंक मारकर दूर करने लगे।
नमस्कार...!
लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में "भगवान बाबा हनुमानजी" और "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" को श्रमा मांगता हूं।
( टिप:- यह पोस्ट कोई भी कॉपी न करें। बल्की ज़्यादा से ज़्यादा शेअर करे। )
ऊपर लिखित आवरण "मानवधर्म परिचय पुस्तक" ( हिंदी ) सुधारित द्वितीय आवृत्ती से है।
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परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ वर्धमान नगर, नागपूर
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Sunday, December 20, 2020
"परमेश्वरी कृपाप्राप्ती" की "पहिली परिक्षा और प्रतिसाद"
"परमेश्वरी कृपाप्राप्ती" की "पहिली परिक्षा और प्रतिसाद"
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"पहिली परिक्षा और प्रतिसाद"
विधी के इक्कीसवे दिन दोपहर में बाबा घर में थे, उस समय उनके जेष्ठ बंधु श्री. नारायणराव उनके यहाँ आये और वह बताने लगे की " मेरी लड़की की तबियत बहुत खराब है। कुछ समझ में नहीं आता फिर भी तू मेरे साथ चल उसे देख और उसे हो रहे कष्टों से कैसे भी मुक्त कर।" तब बाबाने उन्हे बताया, "भैया मुझे कुछ भी नही
समझता। मैं केवल भोर में बाबा हनुमानजी को कपूर लगाकर मंत्र पढता हूँ" इतना कहकर बाबा उसके साथ उसके घर गये वे बाबा के मकान के सामने ही रहते थे ।
बाबाने उस लडकी को देखा तब उसे देखकर उन्हे बहुत दुःख हुआ। उस लडकी के संपुर्ण शरीर में बड़े बडे फोडे हुए थे। और वे फुटकर उससे संपुर्ण शरीर में खुन बह रहा था। संपूर्ण शरीर में लाल चिटियाँ लगी थी। उस लडकी के शरीर का छोटा सा हिस्सा भी खाली नही दिख रहा था। वह चिटियों से पूरा घेरा हुआ था। यह देखकर बाबा बहुत घबराये। वे चिंताग्रस्त हुए उनके मन में विचार आया की बाबा हनुमानजी को प्रसन्न करने हेतु विधी करना बहुतही मुश्किल है, ऐसी जो मान्यता है वह सच होगी। अब परमेश्वर हमें यह विधी पुर्ण करने नही देगा। विधी तो पूरी करना ही है, अन्यथा क्या कष्ट आयेगा, कहना कठीण है। एक तरफ खाई है तो दुसरी और कुआँ इस कहावत के अनुसार बाबा के समक्ष हालात निर्माण हुए थे, फिर भी बाबा का निर्धार मजबुत था वे नही डगमगाएँ। बाबा वहाँ कुछ भी न बोले और ना ही कोई उपचार किये बगैर घर वापस आये।
दुसरे दिन यानि विधी के बाईसवे दिन, नियत समयानुसार बाबा विधी करने मंदिर गये। वहाँ उन्होने बाबा हनुमानजी की मुर्ती का हमेशा की तरह स्नान कराया, कपूर एवं अगरबत्ती लगायी और बिनती की कि हे बाबा हनुमानजी आपने मुझ पर बहुत बडी विपत्ती लाकर रखी है, मै आपसे बिनती करता हूँ की मुझे पहले अपने चरणों में विलिन करें अन्यथा उस लडकी को मुक्त करें। तत्पश्चात इक्कीस प्रदक्षिणा लगाकर घर आये बाबा के मन में उस दिन कोई भी विचार नही आया था उनका वह दिन ऐसे ही बिता।
तेईसवे दिन बाबा सुबह-सवेरे (भोर) विधी निपटाकर घर आकर बाहर के कमरे में दरवाजे के पास ही बैठे थे। जिस लडकी को कष्ट था, वही लडकी उनके घर के आंगन में खेल रही थी। बाबा का ध्यान उस लड़की की ओर गया। उसे देखकर बाबा विस्मित हुए उस लडकी के सारे फोडे ठीक हए थे, यह देखकर बाबा को खुशी हुई। इस प्रकार परमेश्वरने बाबा की प्रथम परिक्षा ली और बाबा का परमेश्वर के प्रति रहनेवाला अत्याधिक प्रेम और श्रध्दा देखकर उनकी बिनती को परमेश्वर ने प्रतिसाद दिया। बाबा को पहिली सफलता मिली, परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के बाबा के प्रयत्न साकार होने की शुरुवात हुई। इस प्रकार बाबाने इकतालिस दिन का विधी पूर्ण किया तथा बयालिसवे दिन बाबानें परमेश्वर को शक्कर का भोग (नैवेद्य) लगाकर उसकी समाप्ति की। प्रसाद सबकों बांटा वह दिन रविवार ६ जनवरी १९४६ होकर बाजार का दिन था। इस समय बाबा सिर्फ २५ वर्ष के थे। इससे बाबा का एक और गुण ध्यान में आता है की परमेश्वर के विषय में उनके मन में अथाह आत्मियता और लगन थी।
बाबांने विधी समाप्त करने के बाद उसी दिन वे जिस व्यक्ती ने उन्हें मंत्र दिया था। उसके पास गये, उसने बाबां का मेहमान के नाते आदरतिथ्य किया। कुछ देर बैठने के बाद बाबांने उनसे कहा की इकतालिस दिन का विधी काल पूर्ण हुआ। और आज बयालिसवे दिन उस विधी की समाप्ति की। विधी सरलता से पूरा हुआ ऐसा कहकर बाबाने अगला कार्य बताने हेतु उन्हें विनती की।
अगले कार्य के बाबत बताते हुए उस व्यक्ती ने बाबा से कहा की, हररोज एक बार इस प्रकार ७,११,२१,३१,४१,५१,६१,७१,८१, ९१ और १०१ दिन उसी मंत्र से १०८ बार मंत्र कहकर उतनी ही बार हवन में घी और हवनपुडा इसकी आहुती डालनी पड़ती है। लेकीन वह संन्यासी त्रिताल (एक रात में तीन बार) हवन करता था। उसका विधी ऐसा की हवन सुर्योदय पूर्व समाप्त होने चाहिए। जगह साफ करना, स्नान करना, हवन की रचना कर १०८ बार मंत्रोच्चार करके आहुती डालना। पहला हवन समाप्त होते ही दूसरा हवन शुरु करने के पूर्व वही जगह साफ कर, स्नान कर, उसी जगह पर फिर से हवन की रचना करनी होगी। पुनः प्रसाद करना और हवन का विधी पूर्ण करनी होगी वह समाप्त होते ही तिसरा हवन उसी जगह पर वह जगह साफ कर एवं स्नान कर फिर से प्रसाद बनाके और हवन पूर्ण करना होगा। इस प्रकार तीन हवन एक ही रात में पूरा करना होता है। यह त्रिताल हवन ११,२१ से १०१ दिन करना पडता है।
हवन के लिए आवश्यक सामान याने रानगोवरी (खेत/वन में पाये जाने वाले सुखे गोबर के टुकडे) पिंपल, बरगद, संत्रा, मोसंबी, आम, उंबर, आदि पेड़ों में से पाँच पेडो की लकडियाँ, नरियल, फल, पान, सुपारी, हार, बेल, फुल, आहुती डालने हेतु घी (परिस्थिती को देखते हुए असली या वनस्पती) दही, दुध, केले, बाबा हनुमानजी की प्रतिमा वाला फोटो, गोमुत्र, चंदन चुरा, हवनपुडा, अबीर, सेंदुर, गुलाल इत्यादी सामान लगता है और प्रसाद के रूप में हलवा (कढई) करना पडता है।
यह सब लिखकर बाबा शाम को नागपुर वापस आये। तब घर के सभी लोग उनकी राह देख रहे थे। घर आने पर उन्होने उपरोक्त पूरी जानकारी सब को बतायी और कहा की यह खर्च की बात है। पहले ही हमारी आर्थिक परिस्थिती बहुत खराब है। इसलिए हम दिनभर बुनकरी करके शाम को मजदरी मिलने पर सामान की खरेदी कर रात को त्रिताल हवन करेंगे। उसी तरह त्रिताल हवन के कारण रातभर जागरण होगा इसलिए सभीने जागरण करना जरुरी नही क्योंकी सभीने जागरण किया तो दुसरे दिन बुनकाम न होने से, मजदूरी न मिलने से हवन का सामान न ला सकने के कारण हवन कार्य कर नहीं सकेंगे और हवन कार्य खंडीत होगा। इस पर सभी लोगोंने गंभीरतापुर्वक विचार किया और दुसरे दिन से सात दिन त्रिताल हवन करने का निश्चय किया।
निश्चित किये अनुसार दुसरे दिन सभीने बुनकरी कर शाम को मजदुरी मिलने पर बडी मुश्किल से सामान जुटाया और सायं ७ बजे प्रथम हवन की शुरुवात की। इस मार्ग के सेवक जिस प्रकार हवन की रचना करते है। उसी प्रकार उसकी रचना की और बताये अनुसार हवन कार्य प्रारंभ किया। पहला हवन समाप्त होते ही दुसरा, तिसरा हवन करते हुए पूरे सात दिन तक त्रिताल हवन किया। पहला हवन समाप्त होने पर भोजन करने के बाद में दुसरा हवन रात को ग्यारह बजे शुरु करते तिसरा हवन रातको तीन बजे शुरु करके तडके (भोर) पांच बजे समाप्त करते। पुनः द्सरे दिन दिनभर बुनकरी कर श्याम को सामान जुटाते। इस समय बहुत कष्ट होता था बाबा स्वयं हवन करते थे। उसके अलावा स्वयं ही हवन में आहुती डालते। अन्य किसी को भी हवन में आहुती डालने की अनुमती नही थी। हवन करते वक्त बाबा किसी से भी बात नही करते थे। किसी चीज की आवश्यकता पडने पर इशारा करते। जब कुछ पुछना हो तो स्लेटपर कलम से लिखकर या कागजपर पेन से लिखकर पुछते थे। इसप्रकार बाबानें लगातार सात दिन त्रिताल हवन किया।
नमस्कार..!
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